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क्या हो रही है जातीय ध्रुवीकरण की कोशिश?

आज़ाद भारत के इतिहास में ये पहली बार हुआ है - एक बंद की प्रतिक्रिया में दूसरा बंद.

मंगलवार यानी 10 अप्रैल को दलितों के दो अप्रैल के बंद के विरोध में सवर्णों और पिछड़ी जाति से तालुक रखनेवाली कुछ संस्थाओं ने 'भारत बंद' की अपील की.

'क्रिया की प्रतिक्रिया?' यही बात सुनने को मिली हर उस इलाक़े से जो दलित-बंद के दौरान या बाद में हिंसा का शिकार हुए थे.

By BBC News हिन्दी
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दलितों का प्रदर्शन
SAM PANTHAKY/AFP/Getty Images
दलितों का प्रदर्शन

आज़ाद भारत के इतिहास में ये पहली बार हुआ है - एक बंद की प्रतिक्रिया में दूसरा बंद.

मंगलवार यानी 10 अप्रैल को दलितों के दो अप्रैल के बंद के विरोध में सवर्णों और पिछड़ी जाति से तालुक रखनेवाली कुछ संस्थाओं ने 'भारत बंद' की अपील की.

'क्रिया की प्रतिक्रिया?' यही बात सुनने को मिली हर उस इलाक़े से जो दलित-बंद के दौरान या बाद में हिंसा का शिकार हुए थे.

साधारण शब्दों में, एक संदेश गया कि दलितों ने बंद के दौरान हिंसा की जिसकी प्रतिक्रिया में सर्वसमाज की तरफ़ से जवाब में हिंसा हुई (यहां सवर्णों को सर्वसमाज कहा जा रहा है).

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फिर से चलन में आई 2002 की अभिव्यक्ति

गुजरात 2002 के बाद, क्रिया-प्रतिक्रिया की अभिव्यक्ति एक बार फिर से चलन में नज़र आ रही है. हालांकि जिन 10 से अधिक लोगों की इससे जुड़ी हिंसा में मौत हुई उनमें से ज़्यादातर दलित थे.

भीलवाड़ा स्थित दलित और मानवधिकार कार्यकर्ता भंवर मेघवंशी कहते हैं, "चाहे कुछ भी बोला जाए, आंकड़े तो कुछ और ही बात कह रहे हैं. अगर दलितों ने ही हिंसा की है तो मरनेवालों में दलितों की संख्या अधिक कैसे है!"

राजस्थान के करैली के हिन्डौन में तो एक पूर्व मंत्री भरोसी लाल जाटव और ख़ुद भारतीय जनता पार्टी की शहर की वर्तमान विधायक राजकुमारी जाटव के घरों में आग लगा दी गई.

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दलितों के प्रदर्शन के विरोध में रैली
PRAKASH SINGH/AFP/Getty Images
दलितों के प्रदर्शन के विरोध में रैली

सवर्णों और दलितों के बीच की खाई

दलित छात्रावासों में आग लगा दी गई, मोटरसाइकिलों को आग लगाई गई, कई जगह आंबेडकर की प्रतिमाओं को खंडित किया गया.

समाजशास्त्री राजीव गुप्ता का कहना है कि "इस बार उच्च जाति और दलितों के बीच जो खाई बन गई है उसको पाटना अब शायद संभव नहीं होगा."

हालांकि राजीव गुप्ता का कहना है कि इस दूरी की पृष्ठभूमि लंबे समय से तैयार हो रही थी. वो कहते हं, "दलितों में जहां शिक्षा और आरक्षण ने एक मध्यम वर्ग की स्थापना की, वहीं वैश्वीकरण और कम होती सरकारी नौकरियों ने उनमें निराशा और आक्रोश को जन्म दिया है."

निजी क्षेत्र में जो रोज़गार के अवसर खुले हैं उनमें दलित वर्ग सदियों से व्याप्त सामाजिक और आर्थिक कारणों से जगह नहीं बना सकता था.

दूसरी ओर सवर्णों में ये प्रचारित होता रहा कि शिक्षा और नौकरियों में आरक्षण ने उच्च जातियों के लिए अवसरों को कम कर दिया है. राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ प्रमुख ख़ुद कई बार कह चुके हैं कि आरक्षण की समीक्षा होनी चाहिए.

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दलितों का प्रदर्शन
PRAKASH SINGH/AFP/Getty Images
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दलित नेता और गंगापूर के पूर्व विधायक रामकृष्ण मीणा कहते हैं, "बंद और रैलियां तो पहले भी होती रही हैं तो उसके ख़िलाफ़ तो कभी कोई प्रतिक्रिया नहीं हुई. इस बार क्यों? मैं कहता हूं प्रशासन ने करवाया."

वो अपने शहर का उदाहरण देते हैं जहां पहले से नोटिस दिया गया था और रूट तक तय हो गया था लेकिन आख़िरी समय में दलितों की दो अप्रैल की रैली का रूट बदल दिया गया.

कई शहरों जैसे मध्य प्रदेश के भिंड में तो लोगों ने बिना प्रशासन की इजाज़त के ही दो अप्रैल के दलित बंद के विरोध में विरोध प्रदर्शन की कोशिश की और इसी दौरान मध्य प्रदेश सरकार में एक मंत्री लाल सिंह आर्य के घर में आग लगा दी गई.

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दलितों का प्रदर्शन
SAM PANTHAKY/AFP/Getty Images
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राजनीति शास्त्र के प्रोफेसर एपीएस चौहान कहते हैं, "कुछ लोग जैसे जवाब देने का मन बनाकर बैठे थे."

भंवर मेधवंशी कहते हैं, "बंद को कुछ लोगों ने दलितों की बग़ावत के तौर पर देखा और सोच थी कि इनको कुचल देना है."

पहले से आग्रह के बावजूद जब दुकानदारों ने बंद से मना किया तो कई जगहों पर हील-हुज्जत हुई, जो अक्सर हो जाती है.

कोशिश हो रही है जातीय ध्रुवीकरण की

राजीव गुप्ता के मुताबिक़ बिल्कुल हिंदू-मुस्लिम दंगों में जो स्थिति कुछ लोग तैयार करते हैं, "दूसरे पक्ष को उकसाओ और अगर उधर से मामूली-सी प्रतिक्रिया हो जाए तो तिल का ताड़ बनाकर भारी हिंसा फैला दो."

दलित बंद और उसके इर्दगिर्द जो कुछ भी हुआ उसकी ख़ुद बीजेपी के कुछ दलित नेता निंदा कर रहे हैं और ये मामला वो ख़ुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तक पहुंचाने की भी कोशिश कर रहे हैं.

लेकिन एक विचार ये भी है कि एससीएसटी उत्पीड़न क़ानून में सुप्रीम कोर्ट की तरफ़ से जो दिशा-निर्देश जारी हुए उसमें केंद्र सरकार की सुस्ती जानबुझकर रही.

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दलितों का प्रदर्शन
SANJAY KANOJIA/AFP/Getty Images
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राजीव गुप्ता और भंवर मेघवंशी दोनों कहते हैं कि रोहित वेमुला, उना, सहारनपुर और उन जैसी घटनाओं के बाद से ये साफ़ हो गया है कि दलित 2014 में भले ही बीजेपी के साथ रहे हों लेकिन वो शायद अब उसका साथ ना दें, तो अब कोशिश है जातीय ध्रुवीकरण की.

इसका मतलब ये कि दलित साथ तो होंगे नहीं तो अपने परंपरागत वोटरों को तो नाराज़ न करो, मैसेज पहुंचाओं कि हम हैं तो एससीएसटी उत्पीड़न क़ानून में बदलाव हो सकते हैं, आरक्षण खत्म हो सकते हैं वरना...

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English summary
What is going on trying ethnic polarization
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