जानिए क्या है जमानत? कब और किसे मिलेगी ? कितने हैं इसके प्रकार ?
नई दिल्ली। कई बार जीवन में इंसान से कोई अपराध हो जाता है या फिर रंजिश के चलते कोई किसी को झूठे मामले में फंसाता है और पुलिस उसे गिरफ्तार कर लेती है। तो ऐसे में उस शख्स को कानून में जमानत लेने का अधिकार दिया गया है। लेकिन ये बात याद रखनी होगी कि कई मामले ऐसे होते हैं जिनमें जमानत मिल सकती है और कई ऐसे जिनमें नहीं मिल सकती। जब कोई इंसान किसी अपराध के कारण जेल जाता है तो उस शख्स को जेल से छुड़वाने के लिए कोर्ट या पुलिस से जो आदेश मिलता है उस आदेश को जमानत या फिर बेल कहते हैं।
बेल के लिए आवेदन करने से पहले ये जानना जरूरी है कि अपराध क्या हुआ है और इसे लेकर जमानत के प्रावधान क्या हैं। कानून के मुताबिक अपराध दो तरह के होते हैं। ये हैं जमानती और गैर जमानती अपराध।
जमानती और गैर जमानती अपराध
जमानती अपराध
जमानती अपराधों में मारपीट, धमकी, लापरवाही से मौत , लापरवाही से गाड़ी चलाना, जैसे मामले आते हैं। दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) में एक पूरी सूची बनाई गई है। ये वैसे मामले हैं जिसमें तीन साल या उससे कम की सजा हो। सीआरपीसी की धारा 436 के तहत जमानती अपराध में कोर्ट द्वारा जमानत दे दी जाती है। कुछ परिस्थितियों में सीआरपीसी की धारा 169 के तहत थाने से ही जमानत दिए जाने का भी प्रावधान है। गिरफ्तारी होने पर थाने का इंचार्ज बेल बॉन्ड भरवाने के बाद आरोपी को जमानत दे सकता है।
गैर जमानती अपराध
गैर जमानती अपराधों में रेप, अपहरण, लूट, डकैती, हत्या, हत्या की कोशिश, गैर इरादतन हत्या, फिरौती के लिए अपहरण जैसे अपराध शामिल हैं। इस तरह के मामलों में अदालत के सामने तथ्य पेश किए जाते हैं और फिर कोर्ट जमानत पर फैसला लेता है। जब कोई शख्स गैर-जमानती अपराध करता है तो मामला मजिस्ट्रेट के सामने जाता है। अगर मजिस्ट्रेट को लगता है कि मामले में फांसी या फिर उम्रकैद तक की सजा हो सकती है तो वो बेल नहीं देता। लेकिन इससे कम सजा के प्रावधान वाले केस में मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट कोर्ट केस की मेरिट के हिसाब से जमानत दे सकता है।
ध्यान देने वाली बात ये है कि सेशन कोर्ट किसी भी मामले में बेल की अर्जी स्वीकार कर सकता है। सेशन कोर्ट में अगर उम्रकैद या फांसी की सजा के प्रावधान वाले केस में सीआरपीसी की धारा-437 के अपवाद का सहारा लेकर जमानत अर्जी लगाई गई हो तो उस आधार पर कई बार जमानत मिल सकती है। लेकिन बता दें ये याचिका कोई महिला या शारीरिक या मानसिक रूप से बीमार व्यक्ति ही लगा सकता है लेकिन बेल देने का आखिरी फैसला कोर्ट का ही होगा।
जमानत के प्रकार
अग्रिम जमानत
अग्रिम जमानत से मतलब है कि अगर किसी आरोपी को पहले से आभास है कि वो किसी मामले में गिरफ्तार हो सकता है तो वो गिरफ्तारी से बचने के लिए सीआरपीसी की धारा 438 के तहत अग्रिम जमानत की अर्जी कोर्ट में लगा सकता है। कोर्ट अगर अग्रिम जमानत दे देता है तो अगले आदेश तक आरोपी व्यक्ति को इस मामले में गिरफ्तार नहीं किया जा सकता ।
रेग्युलर बेल
जब किसी आरोपी के खिलाफ ट्रायल कोर्ट में मामला पेंडिंग है तो उस दौरान आरोपी सीआरपीसी की धारा-439 के तहत अदालत से जमानत मांग सकता है । यहां ट्रायल कोर्ट या हाईकोर्ट केस की स्थिति के आधार पर अपान फैसला देता है। इस धारा के अंतर्गत आरोपी को रेगुलर बेल या फिर अंतरिम जमानत दी जाती है। इसके लिए कोर्ट आरोपी से मुचलका भरवाता है और आरोपी को जमानत के दौरान कोर्ट द्वारा दिए गए निर्देशों का पालन करना होता है।
सीआरपीसी की धारा 436 (ए)
अगर कोई आरोपी किसी मामले में अंडर ट्रायल है और जेल में है और उस पर लगे आरोप में जितने दिन की सजा हो सकती है और वो उससे आधा या आधे से ज्यादा समय जेल में बीता चुका है तो वो सीआरपीसी की धारा 436 (ए) के तहत कोर्ट में जमानत के लिए अपील कर सकता है।
चार्जशीट
दाखिल
ना
होने
पर
बेल
कानून
में
प्रावधान
है
कि
अगर
पुलिस
समय
पर
चार्जशीट
दाखिल
नहीं
करती
है
तो
भी
आरोपी
को
जमानत
दी
जा
सकती
है,
चाहे
मामला
कितना
ही
गंभीर
क्यों
न
हो।
ऐसे
अपराध
जिसमें
10
साल
या
उससे
ज़्यादा
की
सजा
का
प्रावधान
है,
उनमें
आरोपी
की
गिरफ्तारी
के
90
दिनों
के
अंदर
चार्जशीट
दाखिल
करना
जरूरी
है।
इस
तय
समय
में
अगर
चार्जशीट
दाखिल
नहीं
होती
है
तो
आरोपी
को
सीआरपीसी
की
धारा-167
(2)
के
तहत
जमानत
दिए
जाने
का
प्रावधान
है।
वहीं
10
साल
कैद
की
सजा
से
कम
वाले
मामलों
में
60
दिनों
के
भीतर
चार्जशीट
दाखिल
करना
जरूरी
है।
इस
समय
में
चार्जशीट
दाखिल
नहीं
करने
पर
जमानत
का
प्रावधान
है।
इस
दौरान
अगर
चार्जशीट
दाखिल
कर
दी
जाती
हो
तो
जमानत
केस
की
मेरिट
के
आधार
पर
ही
तय
होती
है।
इन
कारणों
से
भी
नहीं
मिल
सकती
बेल
अदालत
में
बेल
पर
सुनवाई
के
दौरान
मामले
की
गंभीरता,
आरोपी
द्वारा
गवाहों
को
प्रभावित
किए
जाने
का
अंदेशा,
आरोपी
के
भाग
जाने
की
आशंका
आदि
कई
ऐसी
बाते
हैं
जिने
के
आधार
पर
कोर्ट
जमानत
देने
से
इनकार
कर
सकता
है।
आरोपी
अगर
आदतन
अपराधी
है
तो
भी
बेल
नहीं
मिलती।
केस
की
किस
स्टेज
पर
जमानत
दी
जाए
इसके
लिए
कोई
तय
मापदंड
नहीं
है।
अंतिम
फैसला
सिर्फ
अदालत
का
मामला
अगर
गंभीर
हो
और
गवाहों
को
प्रभावित
किए
जाने
की
आशंका
हो
तो
चार्ज
फ्रेम
होने
के
बाद
भी
बेल
नहीं
मिलती।
केस
के
ट्रायल
के
दौरान
मुख्य
गवाहों
के
बयान
अगर
आरोपी
के
खिलाफ
हों
तो
भी
आरोपी
को
जमानत
मिलाना
मुश्किल
है।
उदहारण
के
तौर
पर
महिला
के
साथ
दुष्कर्म
के
केस
में
पीड़िता
अगर
सुनवाई
के
दौरान
दुष्कर्म
होने
की
बात
से
मुकर
जाए
तो
आरोपी
को
जमानत
मिल
सकती
है
लेकिन
अगर
आरोपी
के
खिलाफ
बयान
दे
दे
तो
जमानत
मिलने
की
संभावना
लगभग
समाप्त
हो
जाती
है।
यही
स्थिति
दूसरे
गंभीर
मामलों
में
भी
है।
गैर
जमानती
अपराध
में
किसे
बेल
दी
जाए
और
किसे
नहीं,
ये
फैसला
पूरी
तरह
अदालत
का
रहता
है।
(नोट- हमारी सलाह ये कि कानून की जानकारी जरूर रखिए लेकिन सबसे जरूरी ये कि उसका पालन भी करें ।)
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