पिता की संपत्ति में बेटी के हक की बात, पढ़िए इस पर क्या कहता है कानून
नई दिल्ली। हमारे देश में बेटियां अपने अधिकारों को लेकर हमेशा से सघर्ष करती आई हैं। पितृसत्तात्मक व्यवस्था में वो कई अधिकारों से अभी भी वंचित हैं लेकिन वक्त के साथ साथ जिस तरह से उन्होंने अपनी लड़ाई को आगे बढ़ाया है उससे ना केवल उन्होंने अपने अधिकार पाए हैं बल्कि समाज की सोच में भी काफी हद तक बदालव लाने में कामयाबी हासिल की है। कानून के तहत भी देश में बेटियों के कई अधिकारों को लेकर विसंगति रही है और ऐसा ही एक कानून पिता की संपत्ति में बेटियों के अधिकार का था। देश में हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम 1956 के अंतर्गत संपत्ति में बेटे और बेटियों के अधिकार अलग-अलग थे। अधिनियम के तहत बेटों को पिता की संपत्ति पर पूरा हक मिला हुआ था जबकि बेटियों का सिर्फ शादी होने तक ही इस पर अधिकार था। शादी के बाद बेटी को पिता के नहीं पति के परिवार का हिस्सा माना जाता था।
2005
में
मिला
बेटियों
को
हक
हिंदू
उत्तराधिकार
अधिनियम
1956
मूल
रूप
से
बेटियों
को
पैतृक
संपत्ति
में
समान
अधिकार
नहीं
देता
था।
लेकिन
9
सितंबर
2005
को
हिंदू
उत्तराधिकार
अधिनियम
2005,
जिसके
तहत
हिंदुओं
के
बीच
संपत्ति
का
बंटवारा
होता
है
में
संशोधन
करके
इस
असमानता
को
हटाया
गया।
अब क्या है बेटी का अधिकार ?
हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम 1956 में संशोधन के बाद अब हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम 2005 के मुताबिक लड़की चाहे कुंवारी हो या शादीशुदा, वो पिता की संपत्ति में हिस्सेदार मानी जाएगी। बेटी को पिता की संपत्ति का प्रबंधक भी बनाया जा सकता है। 2005 के इस संशोधन के बाद बेटियों को भी वही अधिकार मिल गए हैं जो पहले सिर्फ बेटों के पास थे।
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कब मिलेगा अधिकार ?
हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम 1956 में हुए इस संशोधन का लाभ हालांकि बेटियों को तभी मिल सकता है जब उनके पिता का निधन 9 सितंबर 2005 के बाद हुआ हो। इसके अलावा बेटी पिता की पैतृक संपत्ति में एक सहभागिता तब बन सकती है जब पिता और बेटी दोनों 9 सितंबर 2005 को जीवित हों।
पुश्तैनी संपत्ति में भी समान अधिकार
पुश्तैनी
संपत्ति
में
अधिकार
की
जब
बात
आती
है
तो
इसमें
सबसे
पहले
ये
समझना
जरूरी
है
कि
सहदायिक
यानी
समान
उत्तराधिकारी
में
आता
कौन
है।
सहदायिक
में
परिावार
का
सबसे
बुजुर्ग
सदस्य
और
परिवार
की
तीन
पीढ़ियां
आती
हैं।
अगर
उदहारण
से
इसे
समझें
तो
सहदायिक
में
पहले
बेटा,
पिता,
दादा
और
परदादा
ही
आते
थे।
लेकिन
अब
परिवार
की
महिला
सदस्य
भी
समान
उत्तराधिकारी
है।
पैतृक
संपत्ति
पर
सभी
लोगों
का
हिस्सा
होता
है।
लेकिन
खुद
से
अर्जित
की
हुई
संपत्ति
में
शख्स
को
ये
अधिकार
होता
है
कि
वो
वसीयत
के
जरिए
इसका
बंटवारा
कर
सकता
है।अगर
कोई
व्यक्ति
वसीयत
बनाये
बिना
मर
जाता
है,
तो
आप
जहां
रहते
हैं
उस
राज्य
में
लागू
कानून
से
ये
तय
होगा
कि
आपकी
संपत्ति
का
आपकी
मौत
पर
कैसे
बंटवारा
किया
जाए।
तो
हिंदू
उत्तराधिकार
संशोधित
अधिनियम
2005
के
बाद
ये
साफ
है
कि
पिता
की
संपत्ति
पर
एक
बेटी
भी
बेटे
के
समान
अधिकार
रखती
है।
लेकिन
इस
कानून
की
धारा
6
(5)
में
ये
स्पष्ट
है
कि
इस
कानून
के
पास
होने
के
पूर्व
में
हो
चुके
बंटवारे
इस
कानून
से
अप्रभावित
रहेंगे।
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