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श्रद्धा हत्याकांड: लिव इन में रहने वाली महिलाओं के पास क्या हैं क़ानूनी अधिकार

दिल्ली में एक लिव इन पार्टनर की हत्या के बाद इस रिश्ते को लेकर कई सवाल उठे हैं. जानिए इससे जुड़े क़ानूनी सवालों के जवाब.

By BBC News हिन्दी
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दिल्ली में वो फ्लैट जहां श्रद्धा अपने पार्टनर आफ़ताब के साथ लिव इन में रहती थीं
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दिल्ली में वो फ्लैट जहां श्रद्धा अपने पार्टनर आफ़ताब के साथ लिव इन में रहती थीं

दिल्ली के श्रद्धा हत्याकांड ने लोगों के दिलों को झकझोर कर रख दिया है.

आरोप है कि उनके साथ रहने वाले आफ़ताब पूनावाला ने उनकी बेरहमी से हत्या कर दी.

पुलिस के मुताबिक़, इस साल मई के महीने में आफ़ताब पूनावाला ने पहले 27 साल की श्रद्धा वालकर की हत्या की और फिर उनके शरीर के 35 टुकड़े करके जंगल में फेंक दिए.

दिल्ली की इस घटना ने एक बार फिर दुनिया को झकझोर कर रख दिया है और चारों तरफ इसके चर्चे हो रहे हैं.

हालाँकि पुलिस ने आफ़ताब को गिरफ़्तार कर लिया है और मामले की जाँच की जा रही है.

आफ़ताब पूनावाला और श्रद्धा दोनों मूल रूप से महाराष्ट्र के रहने वाले थे और फिर दिल्ली में बस गए.

दोनों लिव इन रिलेशनशिप में रह रहे थे.

इस घटना ने सामाजिक और मनोवैज्ञानिक स्तर पर एक बहस छेड़ दी है.

साथ ही सवाल उठ रहे हैं कि लिव इन रिलेशनशिप के क़ानूनी निहितार्थ क्या हैं. इसमें रहने वाली महिला के क्या अधिकार हैं और इस बारे में क़ानून क्या कहता है.

इस बारे में और जानकारी के लिए हमने पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट की सीनियर एडवोकेट रीटा कोहली से बात की.

रीटा कोहली का कहना है कि लिव इन रिलेशनशिप अवैध नहीं है, लेकिन क़ानून में कहीं भी यह परिभाषित भी नहीं है.

उनके मुताबिक, कोर्ट ने फ़ैसलों के साथ यही कहा है, 'दो वयस्क जो अपनी मर्जी से एक साथ ज़िंदगी बिताना चाहते हैं, वह लिव-इन रिलेशनशिप है.'

उनका कहना है, "समाज में इसकी कोई नैतिक मान्यता नहीं है, लेकिन संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत किसी भी व्यक्ति को उसके जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता है."

"इसके तहत इसे क़ानूनी कहा जा सकता है, लेकिन हमारा समाज अभी भी इसे नैतिक रूप में स्वीकार नहीं करता है."

अलग-अलग मामलों में अदालतों के अलग-अलग विचार

साल 2006 में सुप्रीम कोर्ट ने एक मामले में कहा था, "वयस्क होने के बाद इंसान किसी के भी साथ रहने या शादी करने के लिए स्वतंत्र है."

कोर्ट ने कहा था कि कुछ लोगों की नज़र में 'अनैतिक' माने जाने के बावजूद ऐसे रिश्ते में होना 'अपराध नहीं' है.

लेकिन इसके बावजूद अलग-अलग अदालतों ने इसे लेकर अलग-अलग रुख़ अपनाया है.

2021 के एक मामले में पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय ने कहा था, ''दरअसल, याचिकाकर्ता वर्तमान याचिका की आड़ में अपने लिव-इन रिलेशनशिप पर मंजूरी की मोहर लगाने की मांग कर रहे हैं. जो नैतिक और सामाजिक रूप से स्वीकार्य नहीं है और इसमें कोई सुरक्षात्मक आदेश पारित नहीं किया जा सकता है.''

दरअसल, इस मामले में 19 साल की लड़की और 22 साल के लड़के ने पंजाब पुलिस और तरनतारन ज़िला पुलिस को उनकी सुरक्षा के लिए निर्देश जारी करने के लिए हाईकोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया था.

इसी तरह, 2021 में, इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने लिव-इन रिलेशनशिप में रहने वाले दो वयस्क जोड़ों द्वारा पुलिस सुरक्षा की मांग को सही ठहराते हुए कहा कि यह "संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत जीवन के अधिकार" की श्रेणी में आता है.

कोर्ट ने अपने फैसले में स्पष्ट किया कि लिव-इन रिलेशनशिप को व्यक्तिगत स्वतंत्रता के नज़रिए से देखने की ज़रूरत है न कि सामाजिक नैतिकता की धारणाओं के नज़रिए से.

लिव-इन में रहने वाली महिला के अधिकार

लिव इन रिलेशनशिप
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लिव इन रिलेशनशिप

लिव-इन में रहने वाली महिलाओं के अधिकारों के बारे में बात करते हुए रीटा कोहली कहती हैं कि ''महिला हो या पुरुष किसी के लिए भी कोई क़ानूनी अधिकार नहीं हैं क्योंकि आप इसे एक तरह से स्वयं चुनते हैं.''

वह आगे कहती हैं, " जहां शादीशुदा महिलाओं को सुरक्षा और कई अधिकार मिलते हैं, वहीं लिव-इन महिलाओं के अधिकार में यह देखा जाता है कि उनका रिश्ता कितना पुराना और स्वीकार्य है."

वह आगे कहती हैं, "अगर कुछ महीनों के सहवास के बाद कोई महिला कोर्ट जाती है और शादीशुदा महिला के बराबर अधिकार मांगती है, तो वो उसे नहीं पा सकती हैं."

"लेकिन अगर रिश्ता काफ़ी पुराना है और समाज में वे पति-पत्नी के रूप में रह रहे हैं तो उस स्थिति में क़ानूनी रूप से विवाहित महिला (पत्नी) के रूप में अधिकार लिए जा सकते हैं."

रीटा कोहली यहाँ स्पष्ट करती हैं कि यह बात अदालतों ने भी समय-समय पर फ़ैसलों के साथ कही है.

लेकिन अगर हम क़ानूनी अधिकारों के साथ इसकी परिभाषा देखें, तो ऐसा नहीं है.

रीटा कोहली ने लिव इन रिलेशनशिप की स्वीकृति की अवधि के बारे में कहा कि ''ऐसी कोई समय सीमा नहीं है, जो कहे कि 2 या 5 साल बाद रिश्ते को क़ानूनी मान्यता मिल जाएगी.''

उनका कहना है, ''जिन कपल्स को समाज में पति-पत्नी की तरह माना जाता है और उनका रिश्ता पति-पत्नी जैसा होता है और समाज भी उन्हें स्वीकार करता है, ऐसे में वे कोर्ट जा सकते हैं और अपने हक़ की मांग कर सकते हैं. लेकिन इसके लिए कोई समय सीमा नहीं है."

घरेलू हिंसा के संबंध में अधिकार

भारत का सुप्रीम कोर्ट
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भारत का सुप्रीम कोर्ट

वकील रीटा कोहली का कहना है कि सभी महिलाएँ घरेलू हिंसा के दायरे में आती हैं और लिव इन में रहने वाली महिलाएँ भी इनमें शामिल हैं.

उनका कहना है, ''घरेलू हिंसा क़ानून के तहत अगर आप किसी के साथ घर साझा करते हैं और वो आपको परेशान करते है तो घरेलू हिंसा के तहत आपको क़ानूनी मदद मिल सकती है.'

रीटा कोहली कहती हैं कि मसलन ऐसा उस मामले में हो सकता है, जहाँ कोई भाई अपनी बहन को परेशान कर रहा हो.

इसलिए हर महिला को घरेलू हिंसा के लिए मदद मिलती है.

लिव-इन रिलेशनशिप में पैदा हुए बच्चे के अधिकार

इसी साल जून में सुप्रीम कोर्ट ने हिंदुओं के बीच संपत्ति के बंटवारे को लेकर अहम फ़ैसला सुनाया था.

सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले के मुताबिक़ लंबे समय तक बिना शादी के साथ रहने वाले दंपति से पैदा होने वाली संतान को पैतृक संपत्ति में हिस्सा मिलेगा.

रीटा कोहली का यह भी कहना है कि इस रिश्ते से पैदा हुए बच्चे के पूरे अधिकार हैं. "आप उसे नाजायज़ कहकर उसके अधिकारों से वंचित नहीं कर सकते."

लिव इन रिलेशनशिप में जाने से पहले एक महिला को किन बातों का ध्यान रखना चाहिए?

विवाह पूर्व अनुबंध

रीटा कोहली का कहना है कि सबसे पहले एक महिला को आर्थिक रूप से मज़बूत होना चाहिए.

वह कहती हैं, "आप कितना भी कहें कि लड़कियां स्मार्ट हो गई हैं, लेकिन जो उदाहरण हमें मिलते हैं, उनसे पता चलता है कि वे अभी भी भावनात्मक रूप से कमज़ोर हैं."

"हम उनके लड़कों के लिए पूरी तरह से समर्पित होने के उदाहरण देखते हैं और लड़कों के पास कई बहाने होते हैं."

"वास्तव में, लिव-इन में जाने से पहले, ज़्यादातर लड़कियां ऐसा समझती हैं कि आख़िरकार उनकी शादी हो जाएगी. वे अपने पार्टनर को अपना सब कुछ समर्पित कर देती हैं."

रीटा का सुझाव है कि अगर लड़के-लड़कियाँ एक-दूसरे को जानने के लिए लिव इन में रहना चाहते हैं तो उन्हें प्री-मैरिटल कॉन्ट्रेक्ट करना चाहिए.

"जिसमें सब कुछ लिखा और समझाया गया हो ताकि कोई किसी का अनुचित लाभ न उठा सके."

वे कहती हैं, ''अगर लिव-इन में रहते हुए पत्नी के हक की तर्ज पर कोर्ट जाना पड़ा तो फिर लिव-इन में रहने की क्या ज़रूरत थी, शादी कर लेते.''

"इसलिए लड़कियों को स्मार्ट होने की ज़रूरत है, ऐसा न हो कि समाज आपको बाद में स्वीकार करने से इनकार कर दे."

इसके अलावा रीटा कोहली का कहना है कि जो महिलाएँ लिव इन में रहती हैं उन्हें अपने निजी दोस्तों या परिचितों के संपर्क में रहना चाहिए.

वह आगे कहती हैं, "अगर वे रिश्ते को लेकर परेशान हैं तो कम से कम किसी से बात कर सकती हैं, सलाह ले सकती हैं."

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English summary
What are the legal rights of women living in live-in
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