West Bengal:क्या कांग्रेस-लेफ्ट और ISF के गठबंधन से उलझ गया है मुस्लिम वोट का गणित ?
कोलकाता: पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनावों की घोषणा अगले कुछ दिनों में होने की संभावना है। मंगलवार में यह फाइनल हो गया कि मुसलमानों के लिए अहम दरगाह हुगली जिले के फुरफुरा शरीफ के प्रभावशाली मौलाना पीरजादा अब्बास सिद्दीकी की नई नवेली पार्टी इंडियन सेक्युलर फ्रंट (आईएसएफ) का कांग्रेस और लेफ्ट के साथ गठबंधन रहेगा। यही वजह है कि बंगाल कांग्रेस के अध्यक्ष अधीर रंजन चौधरी ने ताल ठोककर त्रिकोणीय चुनाव मुकाबले की संभावना की मुनादी कर दी है। कांग्रेस और लेफ्ट फ्रंट की उम्मीदें यूं ही परवान नहीं चढ़ी हैं। इसका प्रमुख कारण हैं मौलाना सिद्दीकी, जिनका खासकर बंगाली मुसलमानों में खासा प्रभाव है। लेकिन, बंगाल में मुस्लिम वोट बैंक की गुत्थी इतनी सुलझी हुई भी नहीं है।
बंगाल में मुस्लिम वोट बैंक का उलझा गणित
2019 के लोकसभा चुनावों में कांग्रेस और लेफ्ट पार्टियों को सिर्फ 12 फीसदी वोट मिले थे और इनके दो ही सांसद लोकसभा तक पहुंच पाए थे। लेकिन, फुरफुरा शरीफ वाले मौलाना पीरजादा अब्बास सिद्दीकी के साथ आने के चलते इन्हें लगता है कि हाल के वर्षों में इनकी जो सियासी जमीन खिसक गई है, उसे काफी हद तक वो वापस पा सकेंगे। लेकिन, तस्वीर इतनी साफ भी नही है। अभी यह देखना है कि हैदराबाद के सांसद असदुद्दीन ओवैसी की ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल-मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) कितनी सीटों पर चुनाव लड़ती है और उसका मुस्लिम वोट बैंक पर प्रभाव क्या पड़ता है?
दक्षिण बंगाल के मुसलमानों पर ममता का खासा प्रभाव
अगर बंगाल में पिछले कुछ चुनावों का ट्रेंड देखें तो खासकर दक्षिण बंगाल में 2011 से मुस्लिम वोट की सबसे ज्यादा फसल तृणमूल कांग्रेस को काटने का मौका मिला है। मुस्लिम धार्मिक नेता और प्रभावशाली मौलानाओं ने खुलकर ममता बनर्जी की सरकार और उनकी पार्टी का समर्थन किया है। इसके बदले में इस समुदाय को राज्य सरकार से तरह-तरह की सुविधाएं भी मिली हैं, जिसके चलते खासकर बीजेपी उसपर तुष्टिकरण का आरोप लगाती रही है। इसके ठीक उलट उत्तर बंगाल के मुस्लिम-बहुल मालदा, मुर्शिदाबाद और उत्तर दिनाजपुर कांग्रेस का गढ़ रहा है और यहां से अधीर रंजन चौधरी चुनाव जीतकर लोकसभा में दाखिल हुए हैं। उनकी बहरामपुर सीट मुर्शिदाबाद जिले का ही मुख्यालय है।
मौलाना के कांग्रेस का हाथ पकड़ने से ममता पर क्या असर?
अगर अब्बास सिद्दीकी की पार्टी आईएसएफ अकेले चुनाव मैदान में होती तो वह 50-60 सीटों पर चुनाव परिणामों को प्रभावित कर सकती थी। ऐसा होने पर बंगाल में मुस्लिम वोट सत्ताधारी टीएमसी, कांग्रेस-लेफ्ट और आईएसएफ में बंटने की पूरी संभावना थी। वह ओवैसी के समर्थन और बिना समर्थन के भी ऐसा करने का राजनीतिक माद्दा रखते थे। लेकिन, वह जब कांग्रेस- लेफ्ट के साथ मिल गए हैं तो इससे ममता बनर्जी को परोक्ष तौर पर फायदा ही मिलने के आसार हैं, क्योंकि इससे मुस्लिम वोट तीन जगह बंटने के मुकाबले दो ही जगह विभाजित होने की संभावना रहेगी।
ओवैसी का अगला स्टैंड क्या होगा?
जहां तक ओवैसी का सवाल है तो वह बिहार में पांच सीट जीतकर काफी हौसले के साथ बंगाल पहुंचे थे। लेकिन, बिहार और बंगाल में फर्क ये है कि यहां हिंदी बोलने वाले मुसलमानों की संख्या बिहार जितनी नहीं है। इसलिए, एआईएमआईएम ने सिद्दीको समर्थन देने की बात कही थी। अब देखने वाली बात है कि सिद्दीकी ओवैसी को लेकर क्या रुख अपनाते हैं, जिनपर उनकी नई सहयोगी पार्टियां उनसे दूरी बनाने का दबाव बना रही हैं। यह भी देखना बाकी है कि सिद्दीकी की पार्टी को गठबंधन से चुनाव लड़ने के लिए कितनी सीटें मिलती हैं और अगर आईएसएफ ओवैसी को झटका देता है तो उनका अगला स्टैंड क्या रहता है?
बीजेपी करेगी ध्रुवीकरण की कोशिश
पश्चिम बंगाल में विधानसबा की 294 सीटों के लिए चुनाव होने हैं। मौजूदा मुख्मंत्री ममता बनर्जी का कार्यकाल 26 मई, 2021को खत्म हो रहा है। 2016 में टीएमसी ने 211 सीटें जीती थी। जबकि कांग्रेस को 44, लेफ्ट को 26 और बीजेपी को सिर्फ 3 सीटें मिली थी। बहुमत के लिए 148 सीटों की जरूरत है। बीजेपी की नजर पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव पर टिकी है और वह 200 से ज्यादा सीटें जीतने का लक्ष्य लेकर चल रही है। अब देखने वाली बात है कि वह मुस्लिम वोट बैंक के लिए अपनी विरोधी पार्टियों की लड़ाई को किस तरह से अपने हक में ध्रुवीकरण करवा पाती है।
इसे भी पढ़ें- Visva Bharati Convocation: बोले PM मोदी- 'ज्ञान, विचार और स्किल स्थिर नहीं'