Gujarat Assembly Election 2017: गुजरात के ‘वोट कटवा' भी तैयारी में है, बिगाड़ सकते हैं BJP का खेल
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अमिताभ श्रीवास्तव
नई दिल्ली। किसी भी चुनाव में 'वोट कटवा' न हो ऐसा हो ही नहीं सकता। हर चुनाव में इनका अहम् रोल होता है। भले ही प्रमुख राजनीतिक दल इन्हें विघ्न संतोषी माने लेकिन ये हर चुनाव में अपनी भूमिका निभाते हैं और इनके जरिए प्रमुख राजनीतिक दल अपना हित भी साधते हैं। इनमें निर्दलीय तो बड़ी संख्या में होते ही हैं, वो क्षेत्रीय दल या संगठन भी रहते हैं जो भले ही उस राज्य में मजबूत न हो, पर खेल तो बिगाड़ ही सकते हैं। गुजरात में भी ये वोट कटवा सक्रिय होने को उतावले हैं और कांग्रेस-बीजेपी दोनों ही एक दूसरे का खेल बिगाड़ने के लिए इनके इस्तेमाल की रणनीति में जुटी हुई हैं।
आम आदमी पार्टी सबसे बड़ी वोट कटवा
गुजरात में वोट कटवा की भूमिका कौन कौन निभाने जा रहे हैं, ये जानना जरूरी है। इनमें आम आदमी पार्टी, शिवसेना, समाजवादी पार्टी, जनता दल यूनाइटेड,एनसीपी जैसे दल शामिल हैं तो गुजरात के शंकर सिंह बाघेला भी इस बार वोट कटवा चुनाव लड़ने के लिए तैयार हैं। सबसे पहले बात करते हैं आम आदमी पार्टी की। दिल्ली को छोड़कर पंजाब, हरियाणा, गोवा में पार्टी की क्या स्थिति रही, उसे सब जानते हैं लेकिन राजनीतिक दल एक तो अपनी भूमिका को व्यापक करने के लिए या फिर मोलभाव करने के लिए वोट कटवा बनना पसंद करते हैं। आप गुजरात में सबसे बड़ी वोट कटवा पार्टी बनने की सोच रही है। गुजरात में पार्टी का कामकाज देख रहे गोपाल राय की माने तो वो वहां 150 सीटों पर चुनाव लड़ने की सोच रहे हैं जहां बीजेपी कमजोर है। हालांकि बाद में पार्टी इससे मुकर भी गई। ये आप समझ सकते हैं कि आप क्या गुजरात में 150 सीटों पर लड़ने के लिए परिपक्व है यानि इन्हें केवल 5 हजार से 10 हजार वोट काटने की भूमिका निभानी है।
शंकर सिंह बाघेला अब वोट कटवा बनने को तैयार
दूसरे वोट कटवा हैं शंकर सिंह बाघेला, लेकिन कहते हैं कि हर किसी का वक्त होता है, उम्र का तकाजा होता है, उनके पास जितना अनुभव है बीजेपी और कांग्रेस में किसी के पास नहीं। गुजरात शायद इकलौता राज्य होगा जहां शंकर सिंह बाघेला जैसे नेता ने बीजेपी और कांग्रेस दोनों की कमान संभाली, दोनों को उन्होंने झुकाया, मनाया, शंकर सिंह बाघेला ने राजनीति में किसी दल या विचारधारा को नहीं समझा और सत्ता पर सवार हुए, लेकिन अब ऐसा नहीं है। मजबूरन अब वो वोट कटवा बनने को तैयार हो गए हैं, उन्हें जो गलतफहमी थी, वो भी दूर हो चुकी है। कांग्रेस को खत्म कर वो बीजेपी की कमान संभालने को उतावले हो रहे थे लेकिन उन्हें समझ आ गया कि अब वो जमाना नहीं रहा।
गुजरात चुनाव का मजा शिवसेना लेना चाहती है
शिवसेना गुजरात चुनाव से दूर ही रही है लेकिन इस बार वो दिलचस्पी दिखा रही है वो इसलिए, क्योंकि बीजेपी को कंट्रोल में रखा जा सके। महाराष्ट्र में जो संतुलन कायम रखना है, उसके लिए गुजरात चुनाव का मजा शिवसेना लेना चाहती है इसलिए उद्धव ठाकरे मुंबई में हार्दिक पटेल से मुलाकात भी कर लेते हैं। जब एनसीपी देखती है कि वो पावर गेम में कमजोर पड़ रही है तो प्रफुल्ल पटेल भी हार्दिक पटेल से मिलने चले जाते हैं। भले ही तमाम लोग हार्दिक पटेल को राजनीतिक बच्चा समझ रहा हो लेकिन राजनीति उसी के कंधे पर सवार होकर हो रही है और वोट कटवा भी उसके जरिए अपना जलवा दिखा दे रहे हैं।
समाजवादी पार्टी अपने उम्मीदवार उतारे
समाजवादी पार्टी भी वोट कटवा बनने को तैयार है कांग्रेस के लिए। जहां जहां कांग्रेस कहेगी, वहीं समाजवादी पार्टी अपने उम्मीदवार उतार देगी। इसमें कोई शक नहीं कि विधानसभा सीट पर 5 हजार से 10 हजार वोट के बीच सीट का नतीजा पलट जाता है और जहां राजनीतिक दल कमजोर हैं वहां वो किसी संगठन या व्यक्ति के सहार खेल बिगाड़ने की रणनीति बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ती। विधानसभा चुनाव में कई बार तो केवल नाम ही वोट कटवा की भूमिका निभा देता है। एक ही नाम के कई उम्मीदवार होते हैं और जब नतीजा निकलता है तो 10 हजार वोट तक वो उम्मीदवार पा जाते हैं जो केवल वोट काटने के लिए खड़े थे और प्रमुख दल का उम्मीदवार चुनाव हार जाता है। गुजरात में भी वोट कटवा तैयार हो रहे हैं, दलों, संगठनों और व्यक्तिगत तौर पर। वोट कटवा का रिजल्ट भी बताएगा कि उसने गुजरात में कितनी अहम भूमिका निभाई।