ब्रिटेन की कोर्ट मे विजय माल्या की दलील- भारत प्रत्यर्पित होने पर बन जाऊंगा 'बलि का बकरा'
लंदन। भगौड़ा कारोबारी विजय माल्या ने लंदन की कोर्ट से कहा है कि अगर उसको भारत प्रत्यर्पण किया जाता है तो वह बलि का बकरा बन जाएगा। हाई कोर्ट ने जस्टिस विलियम डेविस ने गृह सचिव के 4 फरवरी को भारत प्रत्यार्पित किए जाने वाले आदेश के खिलाफ की गई अपील के पक्ष में दिए गए अपील को खारिज कर दिया है। जज ने पांच पन्नों के आदेश में पांच फरवरी के आदेश के खिलाफ अपील करने की इजाजत देने से इनकार कर दिया।
खुली अदालत में आवेदन के लिए शुक्रवार तक का समय
इस आदेश में वेस्टमिंस्टर मजिस्ट्रेट कोर्ट के चीफ मजिस्ट्रेट एम्मा अर्बुथनॉट के दिसंबर 2018 के फैसले के खिलाफ दिए गए कई तर्क खारिज किए गए हैं, जिसमें दावा किया गया है कि भारत भारत-ब्रिटेन प्रत्यर्पण संधि के तहत दायित्वों का पालन नहीं करेगा। ऐसे में माल्या के पास ओपन अदालत में सुनवाई के लिए आवेदन करने के लिए शुक्रवार तक का समय है। ऐसे में अगर विजय माल्या अवेदन करेगा तो हाई कोर्ट के जज सुनवाई करेंगे। लेकिन मौजूदा हालात को देखते हुए विशेषज्ञों ने कहा है कि अब माल्य के पास सिमित विकल्प बचे हुए हैं।
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निक वेमस बोले-यह वास्तव में तगड़ा झटका है
क्राउन प्रॉसिक्यूशन सर्विस में प्रत्यर्पण के पूर्व प्रमुख निक वेमस ने कहा, अपील करने के उसके आवेदन को लिखित रूप से खारिज करना उसके लिए तगड़ा झटका है। ऐसा इसलिए क्योंकि अब अगर उसका मौखिक आवेदन भी खारिज कर दिया जाता है तो माल्या के पास प्रत्यर्पण के अलावा दूसरा कोई रास्ता नहीं बचेगा। बता दें कि निक वेमस ब्रिटेन की अदालती सुनवाई में भारत का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं।वेमस ने कहा कि मौखिक आवेदन के खारिज होने के बाद प्रत्यर्पण का आदेश आखिरी हो जाता है।
माल्या के पास मौखिक आवेदन आखिरी मौका
एक तरह से अगर कोर्ट माल्या के मौखिक आवेदन को खारिज करता है तो प्रत्यर्पण का आदेश अपने आप अंतिम आदेश हो जाता है। अगर कोर्ट माल्या का मौखिक आवेदन खारिज करता है तो उसके 28 दिन के भीतर भारत लौटना होगा, हालांकि उचित कारण होने पर उस अवधि को बढ़ाया भी जा सकता है। बता दें कि माल्या साल 2016 में भारत से भागकर ब्रिटेन चला गया तब से वो वहीं पर रह रहा है। माल्या ने कोर्ट के सामने दलील दी थी कि विशेषता नियम के तहत किसी शख्स को केवल उन्हीं आरोपों के तहत प्रत्यर्पित किया जाता है जिनके बारे में प्रत्यर्पण अनुरोध में जिक्र किया गया होता न कि दूसरे मामले में।
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