त्रिपुरा में भाजपा ने कैसे तोड़ा लेफ्ट का 25 साल पुराना वर्चस्व, जीत के 5 कारण
भाजपा ने त्रिपुरा का चुनाव जीतने के लिए काफी पहले से रणनीति बनानी शुरू कर दी थी। आइए जानते हैं भाजपा की जीत के वो कारण, जिन्होंने लेफ्ट का 25 साल पुराना किला ढहा दिया।
नई दिल्ली। पूर्वोत्तर के तीन राज्यों त्रिपुरा, मेघालय और नागालैंड के विधानसभा चुनावों में भारतीय जनता पार्टी ने त्रिपुरा और नागालैंड में शानदार प्रदर्शन किया है। इन तीनों राज्यों में त्रिपुरा के विधानसभा चुनाव को काफी अहम माना जा रहा था। त्रिपुरा में पिछले 25 साल से लेफ्ट की सरकार है और माणिक सरकार पिछले 20 सालों से राज्य के मुख्यमंत्री हैं। भाजपा ने त्रिपुरा का चुनाव जीतने के लिए काफी पहले से रणनीति बनानी शुरू कर दी थी। आइए जानते हैं भाजपा की जीत के वो कारण, जिन्होंने लेफ्ट का 25 साल पुराना किला ढहा दिया।
हिंदुत्व की लहर
भाजपा ने त्रिपुरा में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की सात रैलियां कराईं। पूर्वोत्तर के राज्य में हिंदी भाषी प्रदेश के मुख्यमंत्री की चुनावी रैलियां कराने का सीधा मकसद सीएम योगी की हिंदुवादी छवि के जरिए राज्य में हिंदुत्व की लहर चलाना था। जिन सात क्षेत्रों में सीएम योगी ने रैलियां की, उनमें से 5 में भाजपा ने जीत का परचम लहराया। त्रिपुरा का पूरा चुनाव दक्षिणपंथ बनाम वामपंथ के मुद्दे पर लड़ा गया, जिसमें भाजपा को जीत मिली।
आदिवासी इलाकों पर फोकस
त्रिपुरा में आदिवासी वोटों पर भाजपा ने विशेष ध्यान दिया। राज्य की 20 सीटें ऐसी हैं, जो आदिवासी बाहुल्य हैं और लेफ्ट का गढ़ रही हैं। राज्य में 30 फीसदी आदिवासी आबादी को देखते हुए भाजपा ने विशेष रणनीति के तहत त्रिपुरा में चुनाव प्रचार किया। भाजपा नेता और त्रिपुरा प्रभारी सुनील देवधर ने आदिवासी इलाकों में छोटी-छोटी काफी सभाएं की। आदिवासी इलाकों में की गई भाजपा की मेहनत रंग लाई और पार्टी ने शानदार प्रदर्शन किया।
बूथ लेवल पर शाह की अचूक रणनीति
2014 के लोकसभा और 2017 के यूपी विधानसभा में जीत तय करने वाले अचूक हथियार 'मजबूत बूथ कमेटी' को भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने त्रिपुरा में भी जीत की गारंटी बनाया। विधानसभा चुनाव का शंखनाद होने से काफी पहले ही अमित शाह ने बूथ लेवल के कार्यकर्ताओं से सीधा संवाद करना शुरू कर दिया। पन्ना प्रभारियों की नियुक्ति और बूथ कमेटी पर अमित शाह ने खुद नजर रखी। बूथ लेवल पर की गई शाह की मेहनत का ही परिणाम था कि भाजपा ने लेफ्ट के गढ़ में सेंध लगाई।
सत्ता विरोधी लहर
त्रिपुरा में पिछले 25 सालों से लेफ्ट की सरकार है। माणिक सरकार के खिलाफ उठी सत्ता विरोधी लहर ने भाजपा को यहां पैर जमाने में मदद की। माणिक सरकार ने राज्य में बुनियादी ढांचे पर तो ध्यान दिया, लेकिन युवा वोटरों के लिए कुछ खास नहीं कर पाए। नई नौकरियां पैदा करने के मामले में भी त्रिपुरा सरकार नाकाम साबित हुई। इसके अलावा सातवें वेतन आयोग की सिफारिशों को भी माणिक सरकार लागू नहीं कर पाई।
कांग्रेस की कमजोरी, बनी भाजपा की मजबूती
त्रिपुरा में कांग्रेस का खाता भी नहीं खुला है। कांग्रेस की कमजोरी ने यहां भाजपा को मजबूत होने में मदद की। पिछले विधानसभा चुनाव में 35 फीसदी वोट पाने वाली कांग्रेस के कई विधायकों ने इस चुनाव में पार्टी का साथ छोड़ दिया। कांग्रेस छोड़ने वाले कई विधायक भाजपा में शामिल हो गए और कांग्रेस के पास यहां कोई मजबूत चेहरा नहीं बचा। इसका सीधा फायदा भाजपा को मिला। त्रिपुरा की जनता को माणिक सरकार के खिलाफ भाजपा एक मजबूत विकल्फ के तौर पर नजर आई।