वो पाकिस्तानी, जिन्हें भारत पसंद आया लेकिन...
सरहद पार से राजस्थान में आकर बसे पाकिस्तानी लोगों को अब भी काग़ज़ों में भारतीय बनने का इंतज़ार है
'पाकिस्तान हमारा घोंसला हुआ करता था, जिसे छोड़कर हम भारत आ गए... ताकि हमारे बच्चे उड़ सकें.'
ये कहानी बंटवारे की नहीं. लेकिन मुश्किलें उससे कम भी नहीं.
पाकिस्तान में पैदा हुए, पढ़ाई-लिखाई, शादी-ब्याह, बच्चे-रिश्तेदार, सब पाकिस्तान में हुए लेकिन अब वो सब छोड़कर 'परदेस' में आ पहुंचे हैं और उसी को अपना घर बनाना चाहते हैं.
मजबूरी में सरहद पार से भारत आए ऐसे बहुत से लोग राजस्थान में रहते हैं.
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जोधपुर, जयपुर और बाड़मेर में पाकिस्तान से आए कुछ लोगों को भारत की नागरिकता दी गई लेकिन उदयपुर में कई साल से बसे ऐसे ही लोगों को नई पहचान अब तक नहीं मिली है.
इनका कहना है कि पाकिस्तान से आकर उदयपुर में बसे लोगों की संख्या तुलनात्मक रूप से कम है इसलिए अब तक यहां के लोग नागरिकता के लिए तरस रहे हैं.
इनमें से ज़्यादातर लोग पाकिस्तान के सिंध प्रांत से आए हिंदू हैं. पिछले साल दिसंबर में इनमें से कुछ को भारतीय नागरिकता की शपथ दिलाई गई. शपथ पत्र जयपुर भेज दिए गए हैं, अब प्रमाण पत्र का इंतज़ार है.
आसरे की तलाश में बलूचिस्तान से राजस्थान तक का सफ़र करने वाले प्रकाश से जब पूछा गया कि वो अपना मुल्क छोड़कर दूसरे देश क्यों आ बसे, तो उन्होंने उठती आशंकाओं को एक झटके में ख़त्म कर दिया.
उन्होंने बताया कि पाकिस्तान में कुछ भी बुरा नहीं था. जैसे यहां अलग-अलग लोग रहते हैं वैसे ही वहां भी रहते हैं.
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बलूचिस्तान के नौशिकी शहर से...
प्रकाश ने कहा, "मैं बलूचिस्तान के नौशिकी शहर में रहता था. पाकिस्तान, भारत जैसा ही है. वहां भी तरह-तरह के लोग रहते हैं. जैसे हम यहां मोहल्लों में रहते हैं वैसे ही वहां भी रहते थे."
"पाकिस्तान छोड़कर भारत आने की वजह आपको बड़ी लग सकती है और नहीं भी, लेकिन इतना ज़रूर है कि जब वहां किडनैपिंग शुरू हो गई तो मन में डर घर कर गया. जब घर से निकलते थे तो इस बात का कोई अंदाज़ा नहीं होता था कि वापस आ पाएंगे या नहीं."
अपहरण जैसी घटनाओं के अलावा बच्चों का भविष्य बनाने की चिंता भी थी.
उन्होंने कहा, "वहां पर बच्चों की बेहतर परवरिश एक बड़ा सवाल है. परवरिश का इतना मसला है तो करियर की बात ही क्या करें...हम लोग कई दफ़ा घूमने के भारत आए थे. यहां के हालात वहां से ठीक जान पड़े तो तय किया कि बच्चों की ख़ातिर पाक़िस्तान छोड़ने में ही भलाई है."
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पाकिस्तान में अल्पसंख्यक
इसके अलावा पाकिस्तान में अल्पसंख्यक होने के अपने नुक़सान भी थे. प्रकाश कहते हैं, "भारत में हमें अपने धर्म को मानने की आज़ादी है. वहां हम एक कमरे में बंद हो गए थे."
"हम अपना सबकुछ छोड़कर आए थे. सिर्फ़ कुछ बर्तन थे और कपड़े. खाने-पीने का सामान लेकर आए थे क्योंकि पता नहीं था कि यहां हमारे साथ क्या होने वाला है."
क्या घर की याद नहीं आती? इस सवाल के जवाब में प्रकाश कहते हैं, "वहां की याद तो आती है लेकिन अपने फ़ैसले से खुश हूं. तकलीफ़ ये है कि इतने साल बाद भी हम जिस देश को दिल से अपना चुके हैं, उसने कागज़ों में हमें बेगाना बना रखा है."
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कई सिंधी परिवार
उदयपुर के सिंधु धाम में पाकिस्तान से आकर बसे कई सिंधी परिवार हैं. प्रकाश की तरह जयपाल की कहानी भी अलग नहीं है.
उनका दावा है कि भारत के लोगों ने उन्हें अपना लिया है लेकिन काग़जों में वो अब भी पाकिस्तानी हैं.
जयपाल कहते हैं, "यहां आने के सात साल बाद 2012 में पेपर भी जमा करा दिए थे लेकिन नागरिकता नहीं मिली है. शपथ दिलवा दी गई है, लेकिन जब तक हाथ में कागज़ नहीं आ जाता, बेचैनी रहेगी."
"हम अपने पीछे बसा-बसाया घर छोड़कर आए. दोस्त, रिश्तेदार, पड़ोसी, काम-काज सब. जब यहां पहुंचे तो डर था मन में लेकिन धीरे-धीरे यहां के लोगों में हिलमिल गए. वहां और यहां के लोगों में कोई अंतर नहीं है."
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अब तक नागरिकता मिल जानी चाहिए थी...
प्रशासन का कहना है कि इन लोगों को अब तक नागरिकता मिल जानी चाहिए थी, लेकिन क्यों नहीं मिली ये साफ़ नहीं है.
उदयपुर के कलेक्टर विष्णु चरण मलिक ने बताया कि उन्होंने सरकार से 57 लोगों को नागरिकता दिए जाने की सिफ़ारिश की थी.
रिकॉर्ड के आधार पर उदयपुर में शॉर्ट टर्म वीज़ा पर कोई पाकिस्तानी नहीं है और लॉन्ग टर्म वीज़ा पर 156 लोग रह रहे हैं.
पीएमओ को चिट्ठी
राजस्थान सिंधी अकादमी के अध्यक्ष और प्रदेश के राज्य मंत्री हरीश राजानी का कहना है कि नागरिकता तो सात साल बाद ही मिल जानी चाहिए थी.
हरीश राजानी ने बताया कि जब ये मामला उनकी नज़र में आया तो उन्होंने पीएमओ को चिट्ठी लिखी, जिस पर कार्रवाई हुई और 15 दिन के भीतर कलेक्ट्रेट में 41 लोगों को नागरिकता की शपथ दिलाई गई.
राजानी ने कहा, "पाकिस्तानी होना आज भी एक हौव्वा है. पाकिस्तान से ठौर के लिए आए लोगों को आज भी यहां संदिग्ध की तरह समय-समय पर पुलिस को रिपोर्ट करनी पड़ती है."