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दुश्मनों के लिए ख़तरनाक साबित होगी भारत की ये तोप?

लेफ्टिनेंट जनरल पीआर शंकर बताते हैं, "कारगिल युद्ध के दौरान भारतीय सेना ने 12 बोफोर्स रेजिमेंट्स भेजे थे. हर कोई जानता है कि उस वक़्त हमने किस तरह का कहर बरपाया था. अब 'धनुष' के आने से रेंज और रेजिमेंट्स की संख्या के मामले में कितनी ताकत बढ़ जाएगी."

वे कहते हैं, "मुझे ये कहने में संकोच नहीं है कि गनर्स एक वैश्विक ताकत के रूप में उभरेंगे. 'धनुष' और ऐसे अन्य स्वदेशी प्रयासों के बेहतर दूरगामी परिणाम होंगे."

By BBC News हिन्दी
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जब पुलवामा हमले के पैमाने और तीव्रता की जांच की जा रही थी तब 18 फरवरी को रक्षा मंत्रालय में एक महत्वपूर्ण फैसला लिया गया.

पहली बार भारत सरकार द्वारा संचालित एक विशाल औद्योगिक प्रतिष्ठान ऑडिर्नेस फैक्ट्री बोर्ड (ओएफबी) को भारत में ही बड़े पैमाने पर हथियार बनाने का काम सौंपा गया. इसी सप्ताह सोमवार को ऑडिर्नेस फैक्ट्री को पहली बार 114 स्वदेशी 155एमएम x 45 कैलिबर की तोप के निर्माण के लिए बड़े स्तर पर उत्पादन को हरी झंडी दी गई - ये तोप है 'धनुष' जिसके आर्टिलरी गन भी कहते हैं.

दूर तक मार कर सकने वाली ये तोप मुश्किल से मुश्किल रास्तों पर आसानी से चल सकती है और दिन के उजाले के साथ-साथ रात में भी सटीक निशाना लगा सकती है.

रक्षा मंत्रालय का ये कदम दूरगामी निर्णय क्यों हैं, ये जानने के लिए हमें पहले 'धनुष' की पृ​ष्ठभूमि के बारे में जानना होगा.

1999 में हुई करगिल की लड़ाई के हालात 'धनुष' की कहानी को समझने में मदद कर सकते हैं.

करगिल युद्ध के दौरान पहाड़ी इलाकों में भारतीय सेना की लंबी तोपें फैली हुई थीं. उनसे धुंआधार गोले बरस रहे थे ताकि पाकिस्तान समर्थित घुसपैठियों को वहां से भगाया जा सके.

ये बोफोर्स तोपें थीं, जिन्हें लेकर बाद में भ्रष्टाचार के आरोप भी लगाए गए थे और आज भी ये मसला उठता रहता है.

'धनुष' की कहानी बोफोर्स और युद्ध के बाद उत्पन्न हुईं पेचीदा परिस्थितियों के बाद से ही शुरू होती है.

बोफोर्स तोप
Getty Images
बोफोर्स तोप

अधूरा दस्तावेज़ और 'धनुष' की शुरुआत

लेकिन, इसके लिए जो शुरुआती कदम माना सकता है वो 1980 के 'प्रौद्योगिकी स्थानांतरण (ट्रांसफ़र ऑफ़ टेक्नोलॉजी)' का एक अधूरा दस्तावेज़ है जब भारत ने 410 बोफोर्स तोपें खरीदीं थीं.

लेकिन, बोफोर्स तोपों को लेकर भ्रष्टाचार के आरोप लगने के बाद इस संबंध में कुछ भी आगे होना संभव नहीं था.

जब इस सौदे को लेकर सब कुछ थमा हुआ था तब उस बीच कारगिल युद्ध हो गया.

इस युद्ध में पता चला कि ये तोप क्या कर सकती है. साथ ही ये भी सामने आया कि भारत के पास मौजूद हथियार कितने पुराने हो चुके हैं.

बोफोर्स 39 कैलिबर की तोप थी और इसमें 155 मीमी. गोले बारूद का इस्तेमाल किया गया था. इसकी रेंज सिर्फ 29 किमी. तक थी. जबकि उस वक़्त तकनीक 45 कैलिबर तक पहुंच चुकी थी और वो ज़्यादा दूरी तक मार करती थी.

बोफोर्स को अपग्रेड करने के भारत के प्रयास सफल तो हुए लेकिन उसकी रेंज 30 किमी. से ज़्यादा नहीं बड़ सकी.

आखिरक़ार अक्टूबर 2011 में धनुष के निर्माण का रास्ता साफ हो गया.

बोफोर्स तोप
Getty Images
बोफोर्स तोप

जांचे गए तोप के नूमने

तोप का उत्पादन करना और भारतीय सेना को इसकी आपूर्ति करना वो सफलता थी जो 'धनुष' को हासिल हुई थी.

नवंबर 2012 तक 'धनुष' के नमूने बनाकर उन्हें बदलती जलवायु परिस्थितियों और इलाकों में जांचा गया. ओएफबी के मुताबिक़ ये तोप रेगिस्तान, मैदानी इलाकों और सियाचीन बेस कैंप के पास की स्थितियों में 4599 राउंड फायर कर सकती है.

इस कार्यक्रम की क्षमता, गति और गुणवत्ता पर सवाल किए गए थे. इतना ही नहीं साल 2017 में सीबीआई ने इस तोप के निर्माण में कम गुणवत्ता वाले चीन से लाए गए पुर्जों का इस्तेमाल किये जाने के आरोपों की जांच भी शुरू की थी.

हालांकि, 18 फरवरी को टीम धनुष को इसके उत्पादन की अनुमति मिलने को विकास की ओर बढ़ते कदम और उत्पादन की शुरुआत के तौर पर देखा जाना चाहिए.

भारतीय सेना
AFP
भारतीय सेना

भारतीय सेना को 'धुनष' से क्या फायदा होगा?

मानदंड

बोफोर्स

धनुष

रेंज

29 किमी.

38 किमी.

नेटवर्क

ऑपरेशन स्वचालित नहीं होते

हर तोप में एक कंप्यूटर है और ये स्वचालित है और इसमें नेटवर्क है

गोला बारूद

सिर्फ पुराने गोला बारूद को चला सकता है

पुरानी और नई पीढ़ी के गोला बारूद चलाने में सक्षम

उत्पादन सहयोग

आयाति​त प्रणाली और पुरानी तकनीक

स्थानीय रूप से लिए गए 80 प्रतिशत पुर्जों के साथ भारत में डिजाइन की गई और निर्मित

इसका वजन 13 टन है और प्रत्येक तोप की कीमत 13 करोड़ रूपये है. 'धनुष' एक स्व-चालित बंदूक है जिसमें गोली चलाने और खुद भागने की क्षमता है ताकि जवाबी कार्रवाई से बचा जा सके. धनुष अपनी भाप पर 5 किमी. प्रति घंटे की रफ़्तार से चल सकती है.

'धनुष' प्रोजेक्ट से 2012 से जुड़े जबलपुर आधारित गन कैरिज फैक्ट्री (जीसीएफ) के वरिष्ठ निदेशक राजीव शर्मा कहते हैं, "हम 18 तोपों से शुरुआत कर रहे हैं जो हम सेना को दिसंबर 2019 तक देंगे. हमारा लक्ष्य साल 2022 तक बाकी की तोपों की डिलीवरी करना है."

वह कहते हैं, "इन 114 तोपों की डिलीवरी पूरी होने से पहले ही धनुष के भविष्य की संभावनाएं बढ़ जाएंगी. तोप प्रणाली के 155 मीमी. परिवार की ओर क्रमिक रूप से बढ़ने के सेना के फैसले का मतलब है ​कि धनुष के बढ़ने की वाकई गुंजाइश है."

आज इस चरण में एक अधूरा टीओटी दस्तावेज़ लाना ओएफबी, भारतीय सेना और संबद्ध संगठनों द्वारा किए प्रयासों पर भरोसा जताना है. हालांकि, तोपों के पैमाने और जटिलता को देखते हुए उत्पादन प्रक्रिया को स्थिर करना और सेना को समर्थन सुनिश्चित करना एक पूरी तरह से अलग बात है.

फिर भी सेना मुख्यालय में पूर्व महानिदेशक (डीजी) लेफ्टिनेंट जनरल पीआर शंकर (सेवानिवृत्त) के शब्दों में 'धनुष' भारतीय सेना की ताकत के मुख्य आधार के रूप में उभरेगा. यह कई आर्टिलरी परियोजनाओं में से केवल एक है, लेकिन सफल होने वाली है.

145 एम777 ए2 अल्ट्रा लाइट होवित्ज़र और के9 वाजरा तोपें
Getty Images
145 एम777 ए2 अल्ट्रा लाइट होवित्ज़र और के9 वाजरा तोपें

कुछ अन्य तोपें

पिछले नवंबर में 145 एम777 ए2 अल्ट्रा लाइट होवित्ज़र (155एमएम x 39 कैलिबर की तोप) लाई गई. इसका वजन 4.5 टन से कम है और इसे आसानी से किसी भी इलाके में तुरंत भेजा जा सकता है.

एम777 ए2 के साथ दस के9 वज्रा, ट्रैक सहित स्वाचालित तोप (155एमएम x 52 कैलिबर) को भी लाया गया है जिसे रेगिस्तान और मैदानी इलाकों में इस्तेमाल किया जा सकता है. ऐसी 100 तोपें भारतीय सेना का हिस्सा बनेंगी.

लेफ्टिनेंट जनरल पीआर शंकर बताते हैं, "कारगिल युद्ध के दौरान भारतीय सेना ने 12 बोफोर्स रेजिमेंट्स भेजे थे. हर कोई जानता है कि उस वक़्त हमने किस तरह का कहर बरपाया था. अब 'धनुष' के आने से रेंज और रेजिमेंट्स की संख्या के मामले में कितनी ताकत बढ़ जाएगी."

वे कहते हैं, "मुझे ये कहने में संकोच नहीं है कि गनर्स एक वैश्विक ताकत के रूप में उभरेंगे. 'धनुष' और ऐसे अन्य स्वदेशी प्रयासों के बेहतर दूरगामी परिणाम होंगे."

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English summary
This Cannon is very dangerous for the enemy of india
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