Corona के चलते हुए 21 दिन के LOCKDOWN से निकल कर आईं ये 7 पॉजिटिव चीजें
नई दिल्ली। इन दिनों विश्व भर में कोरोना वायरस का खौफ़ उफान पर है। इस वैश्विक महामारी ने विकसित, अर्ध विकसित या कहें तो विकासशील जैसे तमाम देशों को घुटने पर ला दिया है। वैश्विक महाशक्तियां इस आपदा के आगे अभीतक शक्तिहीन हैं। हर जगह अभी बस इसकी ही चर्चा हो रही है। अपने देश में भी अभी लॉकडाउन है। हम सब अपने-अपने घरों में एक तरह से खुद के लिए और अपनों के हित के लिए कैद हैं। दरअसल यह लॉकडाउन जनता कर्फ्यू का ही अगला चरण है जिसकी कसौटी आत्मसंयम है। इस आपदा के समय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी सबों से इसी आत्मसंयम को साधने की अपील की है जो इस युध्द में निर्णायक है।
टीवी से लेकर सोशल मीडिया तक में कोरोना की खबरें ही प्राथमिकता में हैं। इस वायरस से बचने के तरीकों को जिस तरह से घर-घर पहुँचाया गया है उससे इसकी भयावहता का अंदाजा अबतक लग ही चुका है। इस वायरस से उत्पन्न परिस्थितियों से हम सब जूझ रहे हैं और सरकार भी इसपर काबू पाने की हर संभव कोशिश कर रही है। कहते हैं न कि जहां अंधेरा होता है वहां उजाला भी होता है। जहां दुःख की बदरी होती है वहां खुशियों की बरसात भी होती है और जहां नकारात्मकता होती है वहीं से सकारात्मकता भी अपनी राह खोज लेती है। हम कोरोना वायरस के इस नकारात्मकता से निकल कर आईं सकारात्मकता की बातें करेंगे जो आपके बहुत काम की हैं।
बुजुर्ग हमारे जीवन का एक अंग हैं
जब कहने को हम आधुनिक हो रहे हैं और हमारी जिंदगी हमारी जरूरतों के हिसाब से ज्यादा भागमभाग वाली हो गई है तब कोरोना वायरस की वजह से किए गए लॉकडाउन ने हमें अपने बुजुर्गों के प्रति अधिक सचेत किया है। हमें उनके साथ रहने और उन्हें फिर से समझने का एक मौका दिया है। हम उनके स्वास्थ्य के प्रति व्यक्तिगत रूप से ज्यादा सजग हुए हैं। यह रिश्तों में मिठास के घुलने जैसा है। इस लॉक डाउन ने हमें अपने बुजुर्गों की सर्वाधिक परवाह करना सिखाया है साथ ही यह भी कि वे परित्यक्त नहीं बल्कि हमारी ख़ुशहाली की जरूरतें हैं। पारिवारिक ढांचा हमारे मूल्य हैं और यह खुशी देता है।
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हम अपनी छुट्टियां अपने घरों में अपनों के साथ मना सकते हैं
इस कोरोना की वजह से हुए लॉक डाउन ने हम सबों को एक छत के नीचे पर्याप्त समय के लिए ला दिया है। विभिन्न ऑफिसों में या किसी भी महकमे में काम करने वाले लोग छुट्टियों के बारे में सोचते ही कहीं बाहर से लेकर विदेश तक घूमने का प्लान करने को प्राथमिकता देते हैं। मगर इन परिस्थितियों से हमें यह अहसास हो रहा है कि छुट्टियों की खुशियां केवल बाहर घूमने या विदेश जाकर ही मुकम्मल नहीं होती। ऐसी खुशियां हम अपने घर में अपनों के साथ मिलकर भी पा सकते हैं। अपने घर की छत पर चांद की रौशनी तले अपने परिवार के साथ डिनर करके भी खुशियों को सेलिब्रेट कर सकते हैं और इसमें इतना तो तय है कि यह अपनों का प्यार और गाढ़ा ही करेगा।
फालतू का खर्च कम और कम में गुजारा
जब हम घरों में रहते हैं और ऐसी स्थिति होती है कि हमें संसाधनों का सीमित उपयोग ही करना होता है तो हम उस परिस्थिति से तालमेल बैठाना सीख जाते हैं। लॉकडाउन से कुछ हद तक ऐसी परिस्थिति उत्पन्न हुई भी हैं। हम धीरे धीरे रोजमर्रा के फालतू खर्चों को कम कर चुके हैं। और हमें इससे ज्यादा कुछ दिक्कतें भी नहीं आ रही हैं। कहते हैं ना कि आदमी से बड़ा एडाप्टेशन करने वाला और कोई नहीं है। इस सब के बावजूद हमारे लाइफ स्टाइल में सुधार ही हुआ है। धन की जरूरतें किस चीज में है और कहां इसका व्यय किए बगैर बचा जा सकता है, यह इस लॉकडाउन से उत्पन्न स्थितियों में सीख सकते हैं।
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जंक फूड खाए बगैर भी हम रह सकते हैं
अब जब इतनी बातें हो गई हैं तो स्वास्थ्य के लिहाज़ से इस लॉकडाउन में क्या सकारात्मक बातें उभर कर आईं हैं इसपर भी गौर कर ही लेते हैं। जंक फूड आज हमारे खान पान का एक हिस्सा बन गया है, यह सच है। ऑफिस में हों या फिर कहीं घूमने ही निकले और तो और हम अपने घरों पर भी इसे मंगाते रहे हैं। जब अपने रूटीन के खाने से अलग कुछ खाने का मूड हुआ तो तुरंत हम जंक फूड की तरफ रुख करते हैं यह जानते हुए भी कि हमारे स्वास्थ्य के लिहाज से यह खाना सही नहीं है। मोटापा, अनिंद्रा, थकान, दिल संबंधित बीमारियां आदि में जंक फूड की भूमिका अच्छी खासी होती है। इस लॉकडाउन ने जंक फूड के कारोबार को रोक दिया है। जिसकी वजह से हम इससे दूर हैं और अपने सामान्य खान-पान के साथ हर रोज रह रहे हैं। तो इसका मतलब यह है कि अगर चाहें तो जंक फूड से तौबा कर हम अपना स्वस्थ जीवन जी सकते हैं। यह लॉक डाउन इस बात का लिटमस टेस्ट भी है कि हम चाहें तो जंक फूड से दूर रह सकते हैं।
भौतिक सुख सुविधा बस एक टूल है, हासिल नहीं
जब हम सफलता पाते हैं। अच्छी कमाई करने लगते हैं, इसके लिए प्रचलित सीधे शब्दों में कहें तो तरक्की करते हैं तब हम भौतिक सुख सुविधाओं के पीछे भागने लगते हैं। कभी यह जरूरत होती तो कभी यह स्टेटस सिंबल बन जाता है। लोग एक दूसरे से तुलना करने लगते हैं। उसके पास इतनी बड़ी गाड़ी है तो मेरे पास भी उससे बड़ी होगी। उसका घर इतना बड़ा है तो मैं भी उससे कम नहीं हूँ, मैं भी बड़ा घर ले लेता हूँ, जैसी भावनाएं अपने आसपास भौतिक सुख सुविधाओं का टीला खड़ा कर देता है। लेकिन जब प्रकृति अपने पर आती है तो इन चीजों के मायने शून्य हो जाते हैं। इस लॉकडाउन से हम यह आसानी से समझ सकते हैं कि भौतिक सुख सुविधा हमारे लाइफ स्टाइल को थोड़ा लक्ज़री बनाने के एक टूल मात्र भर हैं, हासिल नहीं। इसलिए इसके पीछे बेतहाशा भागना ही जीवन का अभीष्ट ना हो। हम खुद को हमेशा इवॉल्व करने की प्रक्रिया में रखें।
गरीबों और जरूरतमंदों की सहायता हम भी कर सकते हैं
भारत जैसे देशों में जहां प्रति व्यक्ति आय अपेक्षाकृत कम है और आबादी का एक महत्वपूर्ण भाग गरीबी रेखा के नीचे है वहां कोरोना वायरस का प्रकोप किसी त्रासदी से कम नहीं है। इसके चलते हुए लॉकडाउन ने इन तबको को सबसे पहले प्रभावित किया है। उनके सामने पेट मे अन्न न होने की समस्या उत्पन्न हो गई है। हालांकि सरकार हर स्तर पर इससे निपटने का हर संभव प्रयास कर रही है लेकिन सरकार का यह प्रयास हमारे सहयोग के बिना मुकम्मल नहीं हो सकता क्योंकि यह हम ही हैं जो अपने आसपास के जरूरतमंदों की मदद सबसे पहले कर सकते हैं। इस त्रासदी में हर तरफ से सहयोग के ये हाथ बढ़े हैं जिसकी वजह से उन अभावग्रस्त लोगों में यह आस्था बनी हुई है कि हम इस जंग को जीतेंगे महामारी से उपजी परिस्थितियों ने हमें यह दिखाया है कि हम उनकी मदद कर सकते हैं जिन्हें इनकी जरूरत है और यह हमें खुशी देती है। वैसे भी लोगों का काम है लोगों के काम आना।
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प्रकृति सुप्रीम बॉस है, हमें इसकी कद्र करनी चाहिए
प्रकृति मानव के उद्दाम चाहतों से हुए खुद के नुकसान को सहती है। वह इसे सहते जाती है लेकिन जब प्रकृति का संतुलन बिगड़ता है तब वह खुद को समायोजित करती है। अपने इस समायोजन में तब वह निष्ठुर होती है। सुनामी हो या अकाल हो या फिर कोई महामारी, प्रकृति के ये टूल्स हैं। किसी हानिकर वायरस का अस्तित्व में आना यह बताता है कि हमने प्रकृति के मूल स्वभाव के साथ छेड़छाड़ की है। हमने पर्यावरण से छेड़छाड़ कर कंक्रीट का अंबार लगा दिया है। इस बदलते पर्यावरण ने जानवरों के निवास को भी बदल दिया है। उनके रहने खाने और जीने के ढंगों में भी बदलाव आया है। ये भी वो कारक हैं जो बीमारियों को जन्म देते हैं। कोरोना वायरस की इस त्रासदी से जब हम सब घरों में कैद हैं तब जरूरत है कि हम सब इसपर सोचें और प्रकृति को समझें भी। प्रकृति जरूरत भर दोहन करने की इजाजत खुद ही देती है लेकिन जरूरत भर ही।