गुजरात दंगों में वायरल हुई थी यह तस्वीर, जान लीजिए इसकी हकीकत
यह दोनों चेहरे देश के लोगों के मन में 2002 के दंगों की एक याद के रूप में बस गए हैं, लेकिन वास्तव में इन दोनों का गुजरात के 2002 के दंगों से कोई संबंध ही नहीं था।
अहमदाबाद। गुजरात में 2002 में हुए दंगों के दो चेहरे थे अशोक परमार (अशोक मोची) और कुतुबुद्दीन अंसारी के। इन दोनों की एक तस्वीर भी वायरल हुई थी, जिसमें अशोक परमार अपने हाथों में लोहे की रॉड लिए खड़े थे और कुतुबुद्दीन अंसारी हाथ जोड़कर दया की भीख मांगते हुए डर से कांप रहे थे। विडंबना यह है कि यह दोनों चेहरे देश के लोगों के मन में 2002 के दंगों की एक याद के रूप में बस गए हैं, लेकिन वास्तव में इन दोनों का गुजरात के 2002 के दंगों से कोई संबंध ही नहीं था।
क्या कहते हैं सरकारी रिकॉर्ड
सरकार के रिकॉर्ड के अनुसार न तो अशोक परमार 2002 के गुजरात दंगे के आरोपी हैं और न ही कुतुबुद्दीन अंसारी उन दंगों के पीड़ित हैं। अशोक परमार की तस्वीर शाहपुर में उस वक्त कैमरे में कैद हुई, जब गोधरा में दंगे अपने चरम पर थे। इसके बाद उनकी तस्वीर नेशनल और इंटरनेशनल मीडिया में दिखाई जाने लगी और वह गुजरात में मुस्लिम समुदाय के लोगों से नफरत करने के एक प्रतीक बन गए। आपको बता दें कि गुजरात के गोधरा में अयोध्या से आ रही साबरमती एक्सप्रेस की एक बोगी को हिंसक भीड़ ने आग के हवाले कर दिया था, जिसकी वजह से 59 यात्रियों की मौत हो गई थी, जिनमें कारसेवक भी शामिल थे। ये भी पढ़ें- इलाहाबाद: 52 सेकंड में बदमाशों ने लूट ली ज्वैलरी शाॅप, देखें वीडियो
परमार ने बताई उस दिन की सच्चाई
अशोक परमार (42) एक मोची हैं, जो कुछ आस पास के लोगों के अनुसार शाहपुर में फुटपाथ पर रहते हैं। अशोक परमार ने कहा- मैंने गलत जगह पर भाव दिखाए। मुझे उस तरह से खड़ा होने के लिए कहा गया था। दंगों से मेरा कोई लेना-देना नहीं है। बल्कि मोची दंगों के किसी भी केस में आरोपी नहीं हैं। हालांकि, अभी भी वह गुजरात दंगे के एक चेहरे के तौर पर जाने जाते हैं।
अंसारी की तस्वीर की ये है हकीकत
वहीं दूसरी ओर, अंसारी गुजरात में मुसलमानों पर होने वाले अत्याचार का प्रतीक बने, जब उनकी हाथ जोड़कर रोते हुए डरी हुए एक तस्वीर वायरल हुई। इस तस्वीर में वह रैपिड एक्शन फोर्स से गुहार लगा रहे थे कि राखियाल में उनके परिवार को दंगाइयों से बचाया जाए। अंसारी के परिवार को बचा लिया गया। इसी के बाद अंसारी को गुजरात दंगों में एक पीड़ित चेहरे के तौर पर जाना जाने लगा। अंसारी (49) एक दर्जी हैं, जो 2005 में अहमदाबाद गए थे। उनके तीन बच्चे हैं और वह मौजूदा समय में राखियाल में ही एक छोटी सी कपड़े सिलने की दुकान चलाते हैं। ये भी पढ़ें- ABVP से भिड़ने के बाद अब दिल्ली छोड़ रही है गुरमेहर कौर, कैंपेन से भी खुद को किया अलग
सरकार अंसारी को नहीं मानती पीड़ित
अंसारी ने जिला कलेक्टर के ऑफिस में दंगे से हुए नुकसान की जानकारी दी, लेकिन क्योंकि वह एक किराए के घर में रहते थे, इसलिए सरकार के पास उनके नुकसान का कोई रिकॉर्ड नहीं था। अंसारी का कहना है कि दंगों की वजह से उनका सब कुछ तबाह हो गया था, जिसकी कीमत करीब 60,000 रुपए बताई, लेकिन सरकार की तरफ से उन्हें कोई मुआवजा नहीं दिया गया। इतना ही नहीं, उनका नाम कभी दंगे के पीड़ितों में शामिल ही नहीं किया गया।