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कश्मीर का वो यतीम बच्चा...

बेबसी और प्रामाणिक नेतृत्व के न होने से मायूसी और नफ़रत का जन्म हुआ है. नई नस्ल से भविष्य के सारे सपने ले लिए गए हैं और उन्हें गहरी मायूसी के दलदल में धकेल दिया गया है.

चरमपंथ में अब किसी लक्ष्य प्राप्ति की जगह युवाओं की गहरी मायूसी और बेबसी नज़र आती है. मौत पर अब मातम नहीं होता.

कश्मीर के मुद्दे की सबसे बड़ी विडंबना यही है कि हर पक्ष इसका हल ताक़त और हिंसा से करना चाहता है.

By BBC News हिन्दी
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Kashmir
AFP
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भारत प्रशासित कश्मीर के बारे में लोगों को ये तो मालूम है कि वहां 30 साल से जारी अस्थिरता में हज़ारों लोग मारे गए हैं लेकिन कश्मीर से बाहर कम लोगों को ये पता है कि इन घटनाओं से हज़ारों बच्चे अनाथ भी हुए हैं.

इस अस्थिर क्षेत्र में ऐसे हज़ारों बच्चे विभिन्न अनाथालयों में पल-बढ़ रहे हैं.

उनकी संख्या के बारे में राज्य में न तो सरकार के पास कोई सही आंकड़े हैं और न ही ग़ैर-सरकारी संगठनों और विभिन्न अधिकारों के लिए काम करने वालों के पास इसकी विस्तार से जानकारी है. विभिन्न संगठन इसकी अलग-अलग संख्या बताते हैं.

सिर्फ़ इतना कहा जा सकता है कि घाटी में ये संख्या हज़ारों में है.

कुछ साल पहले मैंने इन अनाथ बच्चों पर एक रिपोर्ट की थी. ये ऐसे बच्चों की व्यथा थी जो हालात का शिकार थे.

रिपोर्ट के दौरान सबसे ख़ास पहलू ये सामने आया कि टकराव और उदासीनता के इस दौर में भी कश्मीरियों में भी मदद और इंसानियत का जज़्बा असाधारण है.

बहुत से ऐसे लोग मिले जिन्होंने अपनी पूरी ज़िंदगी, अपनी सारी ताक़त और अपने संसाधन उन बच्चों की परवरिश, शिक्षा और कल्याण के लिए ख़र्च कर दिए.

अस्थिर घाटी का हर अनाथ बच्चा अपने आप में दुख और पीड़ा की एक कहानी है. मेरी मुलाक़ात अधिकतर कम उम्र के बच्चों से हुई थी. उनकी मासूम और नरम आवाज़ों उनकी आपबीती को और भी दुखद बना देती है. बाप के खोने और उनसे जुड़े कहानी का उन बच्चों के मन पर गहरा असर था.

श्रीनगर की एक संस्था में मुझे आठ-नौ साल के एक बच्चे ने बताया कि उसके पिता बॉर्डर सिक्योरिटी फ़ोर्स में कर्मचारी थे.

वह उन दिनों भारत की किसी पूर्वोत्तर राज्य में ड्यूटी पर थे. ईद की छुट्टियों में वह घर आए थे. रात में कुछ अनजान लोग घर आए और उसके पिता को लेकर चले.

कश्मीर
Getty Images
कश्मीर

सुबह घर से कुछ दूरी पर गोलियों से छलनी उनकी लाश मिली थी. कश्मीर की वह अनगिनत आवाज़ें जो अक्सर पीछा करती हैं उनमें ये नन्हीं आवाज़ें भी दिमाग़ में हलचल पैदा करती हैं.

घाटी में बहुत से लोग दूसरी नौकरियों की तरह रोज़ी-रोटी के लिए सुरक्षाबलों और पुलिस बलों में शामिल होते हैं.

इन संगठनों की जो ज़िम्मेदारियां और फ़र्ज़ होते हैं वह उन्हें ईमानदारी के साथ अदा करने होते हैं. पिछले दिनों शोपियां में तीन पुलिसकर्मियों को अग़वा करके उनकी हत्या कर दी गई थी.

चरमपंथियों ने कश्मीरियों को चेतावनी दे रखी है कि वह पुलिस और सुरक्षाबलों की नौकरी से इस्तीफ़ा दे दें.

पाकिस्तान से बातचीत रद्द होने के बाद कश्मीर का मुद्दा कई सालों से लटका हुआ है. सरकार और अलगाववादियों ने बातचीत के कई अच्छे अवसरों को खोया है.

बातचीत के सारे रास्ते बंद होने से कश्मीरी अलगाववादी नेतृत्व की प्रतिष्ठा भी समाप्त हुई है.

कश्मीर
Getty Images
कश्मीर

बेबसी और प्रामाणिक नेतृत्व के न होने से मायूसी और नफ़रत का जन्म हुआ है. नई नस्ल से भविष्य के सारे सपने ले लिए गए हैं और उन्हें गहरी मायूसी के दलदल में धकेल दिया गया है.

चरमपंथ में अब किसी लक्ष्य प्राप्ति की जगह युवाओं की गहरी मायूसी और बेबसी नज़र आती है. मौत पर अब मातम नहीं होता.

कश्मीर के मुद्दे की सबसे बड़ी विडंबना यही है कि हर पक्ष इसका हल ताक़त और हिंसा से करना चाहता है.

BBC Hindi
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English summary
The child of Kashmiri who is orphan
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