तीस्ता की बेल पर SC ने कहा-मर्डर नहीं किया जो जमानत देने से मना किया जाए
नई दिल्ली, 01 सितंबर:गुजरात दंगे मामले में सबूतों से छेड़छाड़ और धोखाधड़ी के आरोपों में गिरफ्तार सामाजिक कार्यकर्ता तीस्ता सीतलवाड़ की जमानत याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई। सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को कहा है कि तीस्ता पर कोई यूएपीए जैसे आरोप नहीं हैं जिनमे जमानत ना दी जाए। ये साधारण सीआरपीसी, आईपीसी की धाराएं हैं। हालांकि सरकार की ओर पेश वकील ने कहा कि, ये हत्या की धारा से भी ज्यादा गंभीर है।
सीजेआई यू यू ललित, जस्टिस एस रवींद्र भट और जस्टिस सुधांशु धुलिया की बेंच ने आज तिस्सा सीतलवाड़ के बेल याचिका पर सुनवाई की। तिस्ता की ओर से पेश हुए वकील कपिल सिब्बल ने अपनी दलीलें पेश की। कोर्ट ने सॉलिसिटर जनरल से पूछा- तीस्ता के खिलाफ न तो यूएपीए और न ही पोटा का केस दर्ज है, फिर भी दो महीने से आपने उन्हें कस्टडी में रखा है। ये साधारण सीआरपीसी धाराएं हैं। ये महिला अनुकूल फैसले की हकदार हैं। शुक्रवार को दोपहर 2 बजे फिर इस मामले में सुनवाई होगी।
तीस्ता की जमानत का विरोध करते हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि मामला हाईकोर्ट में है, इसलिए आप वहीं सुनवाई होने दें। उन्होंने यह भी कहा कि सुप्रीम कोर्ट पूरी तरह आँखें बंद करके ना रखे, लेकिन आँखें पूरी खोले भी नहीं। गुजरात सरकार ने तीस्ता की जमानत का विरोध करते हुए कहा है कि सीतलवाड़ ने वरिष्ठ राजनीतिक नेता के इशारे पर साजिश रची और इसके लिए उसे बड़ी रकम मिली थी।
सुप्रीम कोर्ट ने सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से सवाल करते हुए पूछा, मान लीजिए हम तीस्ता को अंतरिम राहत दे देते हैं और मामले की सुनवाई होने देते हैं, तो?" इस पर मेहता ने कहा " मैं इसका विरोध करूँगा। गुजरात दंगों के बाद तीस्ता साजिश में शामिल थी और ये आईपीसी की धारा 302(हत्या) से भी ज्यादा गंभीर है।
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सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट द्वारा 6 हफ्ते का वक्त देने पर भी सवाल उठाए और कहा कि तीन अगस्त को नोटिस जारी कर 19 सितंबर को केस की सुनवाई तय की। क्या बेल मामले में 6 हफ्ते का समय देना चाहिए? मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि ये एक महिला का क्या मामला है। यह हमे चिंतित कर रहा है कि हाईकोर्ट ने 6 हफ्ते बाद केस लगाया। क्या हम आंखें बंद कर लें अगर हम अंतरिम जमानत दे दें तो?