Delhi vs Centre : अधिकारियों की ट्रांसफर-पोस्टिंग कौन करेगा ? सुप्रीम कोर्ट की पीठ करेगी फैसला
दिल्ली में अधिकारों के बंटवारे को लेकर विवाद की स्थिति भी सुर्खियों में रहती है। ताजा घटनाक्रम में इस मामले में सुप्रीम कोर्ट केस की सुनवाई के लिए तैयार हो गया है।
नई दिल्ली, 12 जुलाई : केंद्र शासित प्रदेश दिल्ली में भले ही चुनी हुई सरकार है, लेकिन कई मामलों में केंद्र सरकार और अरविंद केजरीवाल की सरकार के बीच शक्तियां बंटी हुई हैं। इस कारण दिल्ली में अधिकारों के बंटवारे को लेकर विवाद की स्थिति भी सुर्खियों में रहती है। ताजा घटनाक्रम में इस मामले में सुप्रीम कोर्ट केस की सुनवाई के लिए तैयार हो गया है।
ट्रांसफर पोस्टिंग पर किसका अधिकार ?
देश की सबसे बड़ी अदालत में मामले की सुनवाई के बाद यह तय किया जाएगा कि अधिकारियों की नियुक्ति के संबंध में केंद्र और राज्य सरकार के अधिकार क्षेत्र क्या होंगे ? ट्रांसफर पोस्टिंग के मामले में केंद्र सरकार का फैसला अंतिम होगा या राज्य की अरविंद केजरीवाल सरकार का ? शीर्ष अदालत इस पर भी फैसला सुना सकती है। याचिका में दिल्ली के एडमिनिस्ट्रेटिव सर्विसेज कंट्रोल को लेकर भी फैसले की अपील की गई है।
केजरीवाल सरकार की याचिका
दरअसल, सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व वाली दिल्ली सरकार की याचिका पर सुनवाई के लिए सहमति व्यक्त की। याचिका में कहा गया है कि राष्ट्रीय राजधानी में अधिकारियों का ट्रांसफर और पोस्टिंग के अलावा दिल्ली में प्रशासनिक सेवाओं को कौन नियंत्रित करेगा ? इस पर स्पष्टता होनी चाहिए। दिल्ली सरकार की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने इस मामले को शीर्ष अदालत के समक्ष तत्काल सूचीबद्ध करने का उल्लेख किया। एएनआई की रिपोर्ट के मुताबिक 2019 में कोर्ट के विभाजित फैसले (split verdict) के कारण केजरीवाल सरकार ने यह याचिका दायर की है।
संविधान पीठ में होनी थी सुनवाई
चीफ जस्टिस (CJI) एनवी रमना, न्यायमूर्ति कृष्ण मुरारी और न्यायमूर्ति हेमा कोहली की पीठ ने इस मामले को सूचीबद्ध करने पर सहमति जताई। CJI ने केंद्र सरकार से अदालत की कार्यवाही में सहयोग करने को कहा। एएनआई की रिपोर्ट में कहा गया, इस मामले की सुनवाई संविधान पीठ में होनी थी, क्योंकि तीन-न्यायाधीशों की पीठ ने इसी साल मई में केंद्र के अनुरोध पर इसे एक बड़ी पीठ को भेजने का फैसला किया था।
2019 में SC का बंटा हुआ फैसला
गौरतलब है कि 14 फरवरी 2019 को, शीर्ष अदालत की दो-न्यायाधीशों की पीठ ने नेशनल कैपिटल टेरिटरी दिल्ली की सरकार की शक्तियों (powers of GNCTD) और केंद्र सरकार की शक्तियों के सवाल पर विभाजित फैसला दिया था। पीठ ने मामले को तीन-न्यायाधीशों की पीठ को भेज दिया था।
मतभेद होने पर लेफ्टिनेंट गवर्नर...
सुप्रीम कोर्ट में न्यायमूर्ति अशोक भूषण ने अपने फैसले में कहा था कि प्रशासनिक सेवाओं के मामले में दिल्ली सरकार के पास कोई अधिकार नहीं है। हालांकि, न्यायमूर्ति एके सीकरी ने कहा था कि केंद्र सरकार केवल नौकरशाही (संयुक्त निदेशक और ऊपर) के शीर्ष क्षेत्रों में अधिकारियों का ट्रांसफर या नियुक्ति कर सकती है। जस्टिस सीकरी के मुताबिक संयुक्त निदेशक से नीचे की रैंक वाले अन्य नौकरशाहों से संबंधित मामलों पर मतभेद होने पर लेफ्टिनेंट गवर्नर का विचार ही मान्य होगा।
2014 के बाद केंद्र vs दिल्ली सरकार !
बता दें कि केंद्र और दिल्ली सरकार के बीच लंबे समय से चल रहे संघर्ष (Centre and Delhi government conflict) से संबंधित छह मामलों पर सुनवाई कर रही दो-न्यायाधीशों की पीठ ने सेवाओं पर नियंत्रण (control of services) को छोड़कर शेष पांच मुद्दों पर सर्वसम्मति से आदेश दिया था। गौरतलब है कि 2014 में आम आदमी पार्टी (AAP) के सत्ता में आने के बाद से राष्ट्रीय राजधानी के शासन में केंद्र और दिल्ली सरकार के बीच सत्ता के संघर्ष से जुड़ी मीडिया रिपोर्ट अक्सर सामने आती रही हैं।
सुप्रीम कोर्ट में 2018 का ऐतिहासिक फैसला
विगत फरवरी 2019 में सुप्रीम कोर्ट में दो जजों की पीठ के फैसले से पहले, 4 जुलाई 2018 को सुप्रीम कोर्ट की पांच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ राष्ट्रीय राजधानी के गवर्नेंस के लिए व्यापक मानदंड निर्धारित किए थे। 2018 के ऐतिहासिक फैसले में, सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने सर्वसम्मति से कहा था कि दिल्ली को एक राज्य का दर्जा नहीं दिया जा सकता। हालांकि, पीठ ने लेफ्टिनेंट गवर्नर की शक्तियों में यह कहते हुए कटौती की थी कि उनके पास "स्वतंत्र निर्णय लेने की शक्ति" नहीं है, ऐसे में उन्हें चुनी हुई सरकार की सहायता करते हुए सलाह पर काम करने हैं।
सरकार की सलाह पर काम करें LG
देश की सबसे बड़ी अदालत ने उपराज्यपाल (Lieutenant Governor) के अधिकार क्षेत्र को भूमि, पुलिस और सार्वजनिक व्यवस्था (land, police and public order) से संबंधित मामलों तक सीमित कर दिया था। अन्य सभी मामलों पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि लेफ्टिनेंट गवर्नर को दिल्ली में चुनी हुई सरकार की मंत्रिपरिषद की सहायता करनी होगी और सरकार की सलाह पर कार्य करना होगा।