कठुआ केस: एक स्थानीय निवासी की चिट्ठी, क्यों जरूरी है सीबीआई जांच?
नई दिल्ली। जम्मू कश्मीर के कठुआ में जिस तरह से 8 साल की मासूम के साथ रेप के बाद उसे मौत के घाट उतार दिया गया, उसके बाद लगातार इस मुद्दे को लेकर चर्चा चल रही है। इस घटना में अलग-अलग तरह के तथ्य निकलकर सामने आए हैं। इस बीच इस मामले में खुद कठुआ की स्थानीय निवासी अंकुश शर्मा ने एक पत्र के जरिए इस मामले से जुड़े कुछ तथ्यों को सामने रखा है और बताया है कि आखिर क्यों कठुआ मामले की सीबीआई जांच की मांग की जा रही है।
अंकुश शर्मा, स्थानीय निवासी, कठुआ
पिछले कुछ दिनों में मेरे गृह क्षेत्र कठुआ में हर कोई परेशान है, लोग यहां हुई घटना के बारे में जिस तरह से मीडिया ने रिपोर्ट किया और कठुआ को बदनाम किया है उसको लेकर काफी निराश हैं। इस घटना के बाद अलग-अलग क्षेत्र से जुड़े लोगों ने यह कहना शुरू कर दिया हैवह हिंदू होने पर शर्मिंदा हैं। इस घटना के बाद जस्टिस फॉर **** का हैशटैग अभियान सोशल मीडिया पर चलाया जा रहा है। लेकिन इस बीच लोग यह भूल गए कि इस मामले में दूसरा पक्ष भी इंसाफ की ही मांग कर रहा है, उनका मानना है कि इस मामले में सिर्फ सीबीआई ही सही जांच कर सकती है। कठुआ के लोग अपनी राय रखने से काफी डर रहे हैं, क्योंकि उन्हें इस बात का खतरा है कि लोग उन्हें फिर से रेपिस्ट का समर्थक करार दे देंगे।
इसी वजह से मैं यह पत्र लिखने पर मजबूर हुआ हूं जिसे राष्ट्रीय मीडिया ने पूरी तरह से दरकिनार कर दिया है। इस मामले में सीबीआई जांच की मांग एक अहम मांग है, जो लोग भी यह कह रहे हैं कि इसकी मांग करने वाले बलात्कारियों के समर्थक हैं वह गलत हैं। किसी ने यह नहीं पूछा कि आखिर क्यों ये लोग सीबीआई जांच की मांग नहीं कर रहे हैं। लोग सिर्फ यह जानते हैं कि वकीलों ने इस मामले में चालान का विरोध किया, लेकिन लोग इस मामले से जुड़ा एक अहम तथ्य भूल गए।
इस घटना की शुरुआत से ही पीडिता के माता-पिता मामले की सीबीआई जांच की मांग कर रहे हैं। पीड़िता की मौत के बाद जांच की हर कोई मांग कर रहा है। लेकिन राज्य सरकार ने इस मांग को अस्वीकार करते हुए आखिरकार मामले की क्राइम ब्रांच से जांच कराने का फैसला लिया। इसी दिन से लोगों के भीतर गांव में दहशत है। क्राइम ब्रांच ने लोगों को उठाना शुरू किया और इन्हे प्रताड़ित किया गया, ऐसे भी उदाहरण हैं जब पुलिस ने लोगों के नाखून तक उखाड़ दिए हैं। भारतीय संविधान में अनुच्छेद 20 के तहत आरोपी खुद को आरोपी नहीं घोषित कर सकता है, लेकिन पुलिस की प्रताड़ना की वजह से लोगों में खौफ है, लोग अपना घर छोड़कर यहां से पलायन को मजबूर हैं। जो लोग गांव में हैं उन्हें हमेशा इस बात का डर है कि पुलिस उन्हें गिरफ्तार कर लेगी।
पुलिस की इसी प्रताड़ना की वजह से लोग इस मामले में सीबीआई जांच की मांग कर रहे हैं। लेकिन इस मांग को यह कहते हुए खारिज कर दिया गया है कि ये लोग बलात्कारियों का साथ दे रहे हैं। इस मांग को लेकर लोग तीन महीने तक प्रदर्शन करते रहे लेकिन किसी भी मीडिया संस्थान ने इसे कवर नहीं किया, सिर्फ स्थानीय मीडिया ने इसे कवर किया। लेकिन राष्ट्रीय मीडिया ने इस घटना की जानकारी लिए बगैर, घटनास्थल पर आए बगैर इस मामले में पूरे हिंदू समुदाय से जोड़ दिया।
इस मामले में यह बात भी अहम है कि क्राइम ब्रांच में एक ऐसा सदस्य भी है जिसने एक साल तक जेल की सजा काटी है, उसपर आरोप था कि वह हुर्रियत का सदस्य है। क्राइम ब्रांच में ऐसे सदस्य हैं जो कश्मीर से एक समुदाय विशेष से आते हैं। यह घटना दो समुदाय के बीच की बन गई है, लेकिन बावजूद इसके इसमें हिंदू समुदाय के लोगों का प्रतिनिधित्व नहीं है। हालांकि लोगों को इस बात से कोई दिक्कत भी नहीं थी क्योंकि शुरुआत में यह घटना धर्म आधारित नहीं थी। लेकिन इस घटना ने डरावना मोड़ उस वक्त लिया जब क्राइम ब्रांच ने अपने चालान दाखिल किया और लोगों ने इसे इश्वर का सत्य मान लिया और मीडिया और लोग इस पूरी घटना को इसी चालान के हिसाब से पेश करने लगे। इस पूरी घटना को सांप्रदायिक रंग दे दिया गया।
हर तरफ यह फैलाया गया कि यह पूर्व नियोजित घटना थी, इसे एक बाहुल्य समुदाय के लोगों ने अंजाम दिया है, ताकि वह यहां से एक विशेष आदिवासी जाति के लोगों को भगा सके। लेकिन एक बार को अगर साजिश की बात को मान भी लेते हैं तो तो क्या पूरे समुदाय के लोग एक जगह पर इकट्ठा हुए और फिर उन लोगों ने 8 साल की मासूम के अपहरण का फैसला लिया, पिर उसका बलात्कार करने का फैसला लिया। इसके बाद मंदिर के पुजारी को एक मौका रेप का दिया जाएगा। यह सबकुछ एक मंदिर में किया जाएगा, क्या इसपर भरोसा किया जा सकता है।
हमारे देश में कुल 80 फीसदी आबादी हिंदू आबादी है, हमारा देश हमेशा से सेक्युलर रहा है और अंग्रेजों के समय से हमने अल्पसंख्यकों के साथ मिलजुलकर रहने की मिसाल पेश की है। मैं हर किसी को यह बताना चाहता हूं कि यहां रहने वाले आदिवासी पूरी तरह से बहुसंख्यक लोगों पर निर्भर हैं, वह लोगों के खेत में अपने पशु चराते हैं और उन्हे दूध बेचते हैं। अगर वाकई में बहुसंख्यक समुदाय इन्हे यहां से भगाना चाहता तो ऐसा क्यों करता, इन लोगों ने उनसे दूध खरीदना बंद कर दिया होता।
बाद में यह दावा किया गया कि सबकुछ मंदिर के भीतर हुआ और मंदिर में ही शव को छिपाकर रखा गया। पहले यह बताया गया था की शव को गोशाला में छिपाकर रखा गया था। लोगों का कहना था कि ऐसा जानबूझकर किया गया ताकि इस मुद्दे को सांप्रदायिक रंग दिया जा सके। लेकिन जिसने भी इस घटना को अंजाम दिया कि वह शव को मंदिर में नहीं छिपाएगा जहां हर रोज इतने लोग आते हैं। यह किसी का कमरा नहीं होता है यहां काफी लोग पूजा करने के लिए आते हैं। आखिर क्यों आरोपी पीड़िता को अपने घर के पास फेंकेगा बजाए इसके कि वह उसे अपने ही घर में दफना देगा।
हाल में इस मामले की सुनवाई के दौरान आरोपी के नार्को टेस्ट की मांग नहीं की गई। आरोपी के एक वकील ने खुद कहा कि हमे पुलिस के चालान की कॉपी नहीं दिया जाना अपने आप में इस मामले में विलंब कर रहा है। साधारण तौर पर फास्ट ट्रैक कोर्ट में नार्को टेस्ट की मांग पीड़ित पक्ष की ओर से की जाती है, लेकिन इस मामले में उल्टा हुआ है। पीड़ित का कहना है कि उसे बेरहमी से पीटा गया ताकि वह जुर्म को कबूल कर ले। लोगों को इस बात का शक है कि आखिर कैसे पिता और बेटा इस अपराध में एक साथ शामिल हो सकते हैं। आरोपी सांझी राम की बेटी का दावा है कि लड़की के माता-पिता की मृत्यु हो गई थी और उसके नाम संपत्ति छोड़ गए थे। इस मामले में जायदाद ही विवाद की जड़ है क्योंकि हाल ही में लड़की के घर को भी जला दिया गया था। बाद में लड़की का कहना है कि इस मामले में 236 लोगों के बयान पर भी क्या शक किया जाएगा।
इन तमाम शंकाओं के बीच कठुआ के लोग इस मामले की निष्पक्ष जांच चाहते हैं और वह चाहते हैं कि आरोपी को सख्त से सख्त सजा दी जाए। वह नहीं चाहते हैं कि किसी भी आरोपी को छोड़ा जाए। लेकिन ये लोग क्राइम ब्रांच में अपना भरोसा खो चुके हैं क्योंकि इन लोगों ने फर्जी तरीके से तथ्यों को तोड़ा मरोड़ा। यही वजह है कि लोग इस मामले में सीबीआई जांच की मांग कर रहे हैं, ताकि मृत पीड़िता को इसाफ मिल सके।
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