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सोनम मलिक: ओलंपिक मेडल जीतने का सपना देखने वाली पहलवान

ओलंपिक पदक विजेता साक्षी मलिक को सोनम ने लगातार दो बार हराकर सनसनी फैला दी है.

By BBC News हिन्दी
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सोनम मलिक
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सोनम मलिक ने भले ही कभी ओलंपिक मेडल ना जीता हो लेकिन उन्होंने ओलंपिक पदक विजेता पहलवान को पटखनी जरूर दी है और वो भी एक बार नहीं दो-दो बार.

सोनम ओलंपिक खेलों में नहीं खेली हैं लेकिन वो ओलंपिक में कास्य पदक विजेता साक्षी मलिक को हरा चुकी है.

किसी खिलाड़ी के लिए बाहर के देशों के खिलाड़ी को अपना आदर्श मानना एक आम बात है लेकिन सोनम मलिक को अपनी प्रेरणा के लिए किसी बाहरी देश की खिलाड़ी की ओर नहीं देखना पड़ा.

हरियाणा की यह पहलवान बचपन से ही राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर के खिलाड़ियों से घिरी रही हैं.

18 साल की सोनम मलिका का जन्म 15 अप्रैल 2002 को हरियाणा के सोनीपत के मदीना गांव में हुआ. वो बचपन से ही कुश्तीबाजी के बारे में सुनते हुए बड़ी हुई हैं कि कैसे एक कुश्तीबाज को पेश आना चाहिए और कैसे एक अच्छा खिलाड़ी बनने के लिए अच्छी आदतें अपनानी चाहिए.

ओलंपिक पदक जीतने की ख्वाहिश उनके मन में बहुत कम उम्र में ही आ गई थी.

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सपनों को मिली उड़ान

सोनम मलिक के पिता और उनके कई चचेरे भाई-बहन कुश्तीबाजी के खेल में पहले से ही थे. इसने शायद उनकी किस्मत पहले ही तय कर दी थी. उन्होंने बहुत कम उम्र में इस खेल को अपना लिया था.

उनके पिता के एक दोस्त ने कुश्तीबाजी की एक एकैडमी की शुरुआत की थी जिसमें सोनम ने जाना शुरू कर दिया था.

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शुरुआत में एकैडमी में रेसलिंग मैट तक नहीं था. उन्हें ज़मीन पर ट्रेनिंग लेनी होती थी लेकिन बरसात के दिनों में वहाँ किचड़ हो जाता था. तब उस वक्त ट्रेनिंग लेने वाले प्रैक्टिस और फिटनेस बरकरार रखने के लिए सड़कों पर आ जाते थे.

संसाधनों की कमी के बावजूद एकैडमी ने शुरुआत में उन्हें बहुमूल्य ट्रेनिंग दी. उनका परिवार भी मज़बूती से उनके साथ खड़ा था.

सोनम ने 2016 में खेले गए राष्ट्रीय खेलों में स्वर्ण पदक जीता. इस जीत ने उनके आत्मविश्वास को कई गुना बढ़ा दिया.

इस उपलब्धि के साथ ही उन्हें यह एहसास भी हुआ कि अगर वो और प्रैक्टिस करें तो और बेहतर कर सकती हैं और देश के लिए मेडल जीत सकती हैं.

साल 2017 में उन्होंने यह साबित कर दिया कि उनमें दम है. उन्होंने उस साल वर्ल्ड कैडेट रेसलिंग चैम्पियनशिप में स्वर्ण पदक जीता और इसके साथ ही आउटस्टैंडिंग परफॉर्मेंस का अवार्ड भी जीता.

इस जीत ने उनके लिए एक बेहतर भविष्य की नींव डाली और उन्हें स्पॉन्सरशिप हासिल हो गई. और ओलंपिक के ट्रायल में हिस्सा लेने का मौका भी मिला.

इसके साथ ही सोनम मलिक का नाम अपने राज्य के कई महत्वपूर्ण भारतीय कुश्तीबाजों में स्थापित हो गया.

संकट की घड़ी

जब सोनम ने मैट पर अपनी मजबूत पकड़ बनानी शुरू की थी तभी साल 2017 में लगी एक चोट ने उनके करियर को लगभग खत्म ही कर दिया था.

एथेंस में हुए वर्ल्ड कैडेट रेसलिंग चैम्पियनशिप में स्वर्ण पदक जीतने के बाद उन्हें एक राज्य स्तरीय कुश्ती प्रतियोगिता के फाइनल में चोट लग गई थी. डॉक्टरों ने बताया कि उनके नसों में समस्या आ गई है. उन्हें पूरी तरह से ठीक होने में डेढ़ साल लग गए. यह एक उभरते हुए खिलाड़ी के करियर को खत्म करने वाला भी साबित हो सकता था.

यह उनकी जुनून, निश्चय और धैर्य की परीक्षा थी. आखिरकार वो इस इम्तेहान में पास हुई और उन्होंने फिर से ट्रेनिंग शुरू की.

जब उन्होंने रियो ओलंपिक की कांस्य पदक विजेता साक्षी मलिक को 62 किलोग्राम भार श्रेणी में साल 2020 के जनवरी और फरवरी में दो बार हराया तब उनकी कामयाबी में चार चांद लग गया.

दूसरी बार की जीत के साथ सोनम मलिक ने टोक्यो ओलंपिक के क्वालीफायर्स के लिए क्वालीफाई कर लिया.

सोनम मलिक ना सिर्फ ओलंपिक में क्वालीफाई करने को लेकर उम्मीद से भरी हुई हैं बल्कि वो मेडल जीतने को लेकर भी आशान्वित हैं.

सोनम को हमेशा अपने पिता और घरवालो का साथ मिला है. वो कहती हैं कि सभी परिवार को अपनी बेटियों को उनके मकसद में कामयाब होने के लिए समर्थन देना चाहिए.

(यह लेख बीबीसी को ईमेल के ज़रिए सोनम मलिक के भेजे जवाबों पर आधारित है.)

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English summary
Sonam Malik: wrestler who dreams of winning Olympic medal
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