Demonetisation Economic Massacre, सुप्रीम कोर्ट का फैसला 'आर्थिक आतंकवाद और नरसंहार' का समर्थन : सामना
नोटबंदी सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद वैध मान ली गई है। पांच जजों की संविधान पीठ ने भले ही 4-1 के बहुमत से नोटबंदी की प्रक्रिया को अवैध मानने से इनकार कर दिया, लेकिन विपक्षी दल अभी भी सवाल खड़े कर रहे हैं।
Demonetisation पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर कड़ा विरोध जताते हुए शिवसेना ने बुधवार को अपने मुखपत्र 'सामना' में कहा कि सरकार के फैसले को 'वैध' कहने का मतलब 'देश के आर्थिक नरसंहार का समर्थन' करना है। संपादकीय में नोटबंदी को ''आर्थिक आतंकवाद'' करार दिया गया। इसमें देश की सबसे बड़ी अदालत के फैसले की तीखी आलोचना की गई और कहा गया, ''फैसला देश के आर्थिक नरसंहार का समर्थन करने जैसा है। इसका मतलब लोगों को सुप्रीम कोर्ट के फैसले के सामने झुकना पड़ेगा और यह कहना पड़ेगा कि नोटबंदी का फैसला वैध है, मोदी सही हैं।"
संपादकीय में आगे तर्क दिया गया कि नोटबंदी एक तरह का "आर्थिक आतंकवाद और नरसंहार" था। शिवसेना ने कहा, "यह एक आर्थिक नरसंहार था। बैंकों के बाहर कतारों में खड़े सैकड़ों लोग मारे गए। इस आर्थिक नरसंहार के कारण उद्योग और व्यापार को झटका लगा। हजारों-लाखों लोग बेरोजगार हो गए। देश की अर्थव्यवस्था चरमरा गई। फिर भी हमारे सर्वोच्च न्यायालय ने सोमवार को फैसला सुनाया, 'नोटबंदी के फैसले में कुछ भी गलत नहीं था।'
सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ में शामिल न्यायमूर्ति बीवी नागरत्ना ने चार जजों से असहमति दिखाई और उन्होंने नोटबंदी को वैध नहीं माना। इस पर 'सामना' में लिखा गया, देश को जस्टिस नागरत्ना पर "गर्व" है। उन्होंने आरबीआई अधिनियम की धारा 26 (2) के तहत केंद्र की शक्तियों के बिंदु पर बहुमत के फैसले से असहमति जताई और कहा कि 500 रुपये और 1,000 रुपये की श्रृंखला के नोटों को कानून के माध्यम से बंद किया जाना था, न कि अधिसूचना का सहारा लेकर।
शिवसेना की राय माने जाने वाले सामना में लिखा गया, "पांच न्यायाधीशों में से सिर्फ जस्टिस नागरत्ना ने नोटबंदी के फैसले के खिलाफ स्पष्ट राय दी। उन्होंने इसे सरकार का अवैध फैसला बताया। उनकी राय ही देश की राय है।" 'सामना' में आगे लिखा गया कि केंद्र सरकार द्वारा उठाया गया कदम पूरी तरह से विफल रहा क्योंकि इससे कई लोग आत्महत्या कर रहे हैं और व्यवसाय नष्ट हो रहे हैं।
संपादकीय में लिखा गया, "प्रधानमंत्री मोदी 8 नवंबर, 2016 को 1000 और 500 रुपये के नोटों को चलन से रद्द करने की घोषणा करने के लिए अचानक टीवी पर दिखाई दिए। पीएम ने नकली करेंसी नोटों के प्रवाह को हमेशा के लिए रोकने और कश्मीर में आतंकवादियों की टेरर फंडिंग पर अंकुश लगाने और ड्रग पेडलर्स की कमर तोड़ने के लिए यह झटका दिया गया। हालांकि, छह साल बाद भी, नोटबंदी का एक भी मकसद पूरा नहीं हुआ।
सामना में यह भी दावा किया गया कि 2016 में 500 रुपये और 1000 रुपये के नोटों पर प्रतिबंध के बजाय नकली नोट अभी भी चलन में हैं। संपादकीय में तर्क दिया गया, "काला धन, आतंकवाद, नशीले पदार्थों का कारोबार बेरोकटोक चल रहा है और लाखों, हजारों करोड़ रुपये के ड्रग्स गुजरात बंदरगाह पर जब्त किए गए हैं। ये सभी अवैध गतिविधियां नोटबंदी के बाद भी जारी हैं। यह फैसला एक तरह की मनमानी थी।"
गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को नोटबंदी पर फैसले में कहा, 500 और 1000 रुपये के बैंक नोट पर सरकार का फैसला कार्यपालिका की आर्थिक नीति है। इस कारण सरकार के फैसले को उलटा नहीं जा सकता। शीर्ष अदालत ने 58 याचिकाओं के एक बैच पर विमुद्रीकरण के फैसले को 4:1 के बहुमत से सही ठहराया और कहा कि नोटबंदी को इस आधार पर खारिज नहीं किया जा सकता है कि इससे नागरिकों को कठिनाई हुई। यह नोटबंदी को अवैध ठहराने के लिए पर्याप्त कारण नहीं।
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याचिकाओं में दावा किया गया था कि नोटबंदी के लिए जरूरी उचित प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया। मनमाने फैसले के कारण भारतीय नागरिकों के अधिकारों का उल्लंघन हुआ। न्यायमूर्ति नागरत्ना ने दलीलों को सुनने के बाद चार जजों से अलग राय दी और कहा कि काले धन की जमाखोरी और भ्रष्टाचार के साथ जालसाजी जैसी प्रथाएं हमारे समाज और अर्थव्यवस्था के "महत्वपूर्ण तत्वों को खा रही हैं।" उन्होंने कहा कि इन कुरीतियों पर प्रहार करने के इरादे से किए गए किसी भी उपाय की सराहना होनी चाहिए।