Bihar Elections 2020: तीसरे चरण में सीमांचल बेहद खास, ओवैसी की AIMIM पर सबकी नजर
पटना। बिहार में दो चरण का चुनाव खत्म हो चुका है। तीसरे और आखिरी चरण की 78 विधानसभा सीटों के लिए 7 नवम्बर को वोट डाले जाने हैं। इसी चरण में सीमांचल की 24 सीटें हैं जिन पर सभी की नजर बनी हुई है। इस क्षेत्र की सबसे खास बात ये है कि यहां पर ओवैसी फैक्टर सभी को परेशान कर रहा है।
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सीमांचल में परंपरागत रूप से राजद, कांग्रेस और वामपंथी पार्टियों का प्रभाव रहा है। खासतौर पर मुस्लिम बहुल जिले किशनगंज, अररिया, कटिहार और पूर्णिया में मतदाता इन्हीं दलों के पक्ष में अधिक रहते आए हैं। सत्ताधारी जेडीयू ने 2015 का विधानसभा चुनाव आरजेडी के साथ मिलकर लड़ा था और उसे भी इस क्षेत्र में सफलता मिली थी। लेकिन इस बार इस क्षेत्र में परिस्थितियां बदली हुई हैं। जेडीयू जहां एक बार फिर से भाजपा के साथ एनडीए में शामिल होकर विधानसभा चुनाव के लिए ताल ठोंक रही है।
AIMIM
बिगाड़
सकती
है
खेल
वहीं
इस
चुनाव
में
असदुद्दीन
ओवैसी
की
आल
इंडिया
मजलिस
ए
इत्तेहादुल
मुस्लिमीन
(AIMIM)
कईयों
का
खेल
बिगाड़
सकती
है।
एआईएमआईएम
चुनाव
में
ग्रैंड
सेक्युलर
डेमोक्रेटिक
फ्रंट
का
हिस्सा
है।
जिसमें
उपेंद्र
कुशवाहा
की
रालोसपा,
मायावती
की
बसपा,
समेत
6
पार्टियां
हैं।
ओवैसी
इस
गठबंधन
को
बिहार
की
राजनीति
में
तीसरे
विकल्प
की
तरह
पेश
कर
रहे
हैं।
रालोसपा
प्रमुख
उपेंद्र
कुशवाहा
को
इस
गठबंधन
ने
अपना
मुख्यमंत्री
उम्मीदवार
घोषित
किया
है।
असदुद्दीन ओवैसी लंबे समय से बिहार की राजनीति में एआईएमआईएम की पैठ जमाने में लगे हैं। हालांकि उन्होंने 2015 के विधानसभा चुनाव में भी कैंडीडेट उतारे थे लेकिन पार्टी को पहली सफलता पिछले साल अक्टूबर में किशनगंज में मिली जब एआईएमआईएम के उम्मीदवार कमरुल होदा ने बीजेपी की प्रत्याशी स्वीटी सिंह को हराकर उपचुनाव जीत लिया। कांग्रेस ने किशनगंज से सिटिंग सांसद मोहम्मद जावेद की मां को उतारा था और वे तीसरे नंबर रही थीं। यही वजह है कि इस बार के चुनाव में एआईएमआईएम की क्षेत्र में पैठ को लेकर सभी दल नजर बनाए हुए हैं।
19
में
से
13
मुस्लिम
उम्मीदवार
ओवैसी
सीमांचल
में
पूरी
ताकत
लगा
रहे
हैं।
खासकर
मुस्लिम
वोटरों
की
निर्णायक
संख्या
वाली
19
सीटों
पर
जहां
उनकी
पार्टी
ने
प्रत्याशी
उतारे
हैं।
2015
के
विधानसभा
चुनाव
में
इन
19
सीटों
में
से
12
पर
आरजेडी
और
कांग्रेस
ने
कब्जा
जमाया
था।
अब एआईएमआईएम इस क्षेत्र में पैठ जमाकर पार्टी का प्रभाव हैदराबाद और महाराष्ट्र से आगे बढ़ाकर दूसरे क्षेत्रों तक पहुंचाने की कोशिश में है। यही वजह है कि बिहार में पार्टी को इकलौती सफलता दिलाने वाले होदा को ओवैसी के गढ़ हैदराबाद में सम्मानित किया गया था।
ओवैसी की कोशिश किशनगंज की रणनीति के सहारे सीमांचल के दूसरे विधानसभा क्षेत्रों में भी सफलता का परचम लहराना है। एआईएमआई को पता है कि सिर्फ मुस्लिम वोट बैंक के सहारे चुनाव नहीं जीता जा सकता। इसके लिए पिछड़े और दलितों के बीच भी अपनी पकड़ बनाए रखने होगी। यही वजह है कि एक तरफ पार्टी जहां 13 मुस्लिम उम्मीदवार उतारकर अल्पसंख्यक टैग को भुनाना तो चाह रही है वहीं 19 में से 6 कैंडीडेट गैर मुस्लिम उतारे हैं। ओवैसी ने विधानसभा चुनाव में जमकर प्रचार किया है। इस दौरान उन्हें वोट कटवा कहने वालों पर भी करारा हमला बोला है।
महागठबंधन
के
लिए
मुश्किल
वहीं
किशनगंज
उपचुनाव
में
हार
कांग्रेस
के
लिए
किसी
झटके
से
कम
नहीं
थी।
इसके
पहले
कांग्रेस
यहां
से
आठ
बार
अपने
उम्मीदवार
को
विधानसभा
भेज
चुकी
है।
किशनगंज
लोकसभा
बिहार
की
इकलौती
लोकसभा
सीट
थी
जहां
पर
2019
के
लोकसभा
चुनाव
में
महागठबंधन
की
तरफ
से
कांग्रेस
प्रत्याशी
ने
जीत
दर्ज
की
थी।
इसके
अलावा
सभी
39
सीटों
पर
महागठबंधन
का
कोई
भी
उम्मीदवार
जीत
का
स्वाद
नहीं
चख
सका
था।
इस
बार
विधानसभा
चुनाव
में
अगर
ओवैसी
की
पार्टी
मजबूत
चुनाव
लड़ती
है
तो
महागठबंधन
को
झटका
लगने
वाला
है।
2015 में एआईएमआईएम ने 6 सीटों पर चुनाव लड़ा था। हालांकि पार्टी को किसी भी सीट पर जीत नहीं मिली लेकिन कोचाधामन में 26 प्रतिशत, बैसी में 10.37 प्रतिशत और किशनगंज में 0.6 प्रतिशत वोट मिले थे।
ओवैसी अब तक कई जनसभाओं को संबोधित कर चुके हैं। उनके निशाने पर सिर्फ एनडीए ही नहीं बल्कि महागठबंधन भी है। ओवैसी कह रहे हैं कि महागठबंधन के नेताओं में एनडीए को हराने का दम नहीं है। वे मतदाताओं को किशनगंज लोकसभा सीट पर कांग्रेस की जीत की वजह भी समझाते हैं। वे कहते हैं कि कांग्रेस को सिर्फ किशनगंज से जीत क्यों मिली, बाकी जगहों पर वे क्यों नहीं जीते ? क्योंकि यहां हमने बीजेपी को रोकने में कामयाब रहे।
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