Ayodhya Verdict: सुप्रीम कोर्ट ने कहा- फैसले सबूतों से तय होते हैं, आस्था से नहीं
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने अयोध्या पर अपना फैसला सुनाते हुए कहा कि वर्तमान मामले के तथ्यों, सबूतों और मौखिक तर्कों ने इतिहास, पुरातत्व, धर्म और कानून के दायरे को तोड़ दिया है। अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि, कानून को इतिहास, विचारधारा और धर्म की राजनीति से अलग खड़ा होना चाहिए। पुरातात्विक सबूतों से भरे इस मामले के लिए, हमें यह याद रखना चाहिए कि यह वह कानून है जो उस अवसरों को प्रदान करता है जिस पर हमारा बहुसांस्कृतिक समाज टिकी हुई है।

सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि, कानून उसे आधार बनाता है जिस पर इतिहास, विचारधारा और धर्म के कई किस्से प्रतिस्पर्धा कर सकते हैं। अपनी सीमाओं का निर्धारण करके, इस न्यायालय को अंतिम मध्यस्थ के रूप में संतुलन की भावना को संरक्षित करना चाहिए। जिससे एक नागरिक की मान्यताएं दूसरे की स्वतंत्रता और विश्वासों के साथ हस्तक्षेप या हावी ना होती हों। कोर्ट ने कहा कि, फैसले सबूतों से तय होते हैं ना कि आस्था से।
कोर्ट ने कहा कि, 15 अगस्त 1947 को एक राष्ट्र के रूप में भारत ने आत्मनिर्णय के सपने को साकार किया। 26 जनवरी 1950 को हमने अपने समाज को परिभाषित करने वाले मूल्यों के प्रति अटूट प्रतिबद्धता के रूप में खुद को भारत का संविधान दिया। संविधान के केंद्र में कानून के शासन द्वारा समानता को बनाए रखने और लागू करने की प्रतिबद्धता है। हमारे संविधान के तहत, सभी धर्मों, विश्वासों और पंथों के नागरिक कानून के समक्ष समान हैं।
कोर्ट ने कहा कि, इस न्यायालय के प्रत्येक न्यायाधीश न केवल कार्य की बल्कि संविधान और उसके मूल्यों को बनाए रखने की भी शपथ लेता है। संविधान एक धर्म और दूसरे के विश्वास के बीच अंतर नहीं करता है। सभी प्रकार के विश्वास, पूजा और प्रार्थना समान हैं। जिनका कर्तव्य है कि वे संविधान की व्याख्या करें, इसे लागू करें।
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