राकेश झुनझुनवालाः बाज़ार के माहिर खिलाड़ी क्यों उड़ाने चले हैं 'आकासा'
आम तौर पर शेयर बाज़ार कारोबारी एयरलाइंस में पैसा लगाने से बचते हैं. फिर राकेश झुनझुनवाला ने क्या सोचकर एयरलाइंस कारोबार में पैसा लगाया है?
शेयर बाज़ार में सट्टेबाज़ों की नज़र तो अक्सर एयरलाइंस के शेयरों पर पड़ती रहती है. कभी तेज़ी तो कभी मंदी के सौदे करते रहते हैं.
लेकिन लंबे समय तक पैसा लगाकर बड़ा पैसा कमानेवालों या बड़ा पैसा कमाने के लिए धीरज के साथ पैसा लगाने यानी वैल्यू इन्वेस्टिंग करनेवालों की ज़ुबान पर इनका नाम आसानी से नहीं आता. ज्यादातर का कहना यही होता है कि अच्छी एयरलाइंस में सफर करो, आनंद उठाओ लेकिन इनमें पैसा लगाने का जोखिम नहीं लेना चाहिए.
लेकिन ऐसे में भारत के वॉरेन बफेट कहलानेवाले सबसे मशहूर वैल्यू इन्वेस्टर राकेश झुनझुनवाला किसी चलती एयरलाइंस में पैसा लगाने से भी आगे बढ़कर एक नई एयरलाइंस शुरू करने क्यों निकले हैं?
भारत के आकाश पर रविवार से उड़ान भरनेवाली इस नई एयरलाइंस का नाम है आकासा.
राकेश झुनझुनवाला के साथ इसमें कम से कम छह संस्थापकों के नाम सामने हैं. इनमें पहला नाम विनय दुबे का है जो जेट एयरवेज़ और गो एयर के सीईओ रहे हैं और कहा जाता है कि आकासा एयर का विचार भी उन्हीं का है और इसमें पैसा लगाने के लिए राकेश झुनझुनवाला को राज़ी करने से लेकर बाकी संस्थापकों को साथ जोड़ने का काम भी उन्होंने ही किया है.
विनय ही आकासा के सीईओ भी होंगे, यानी एयरलाइंस चलाने की ज़िम्मेदारी उनपर ही है. कंपनी की वेबसाइट उनके साथ पांच और को फाउंडरों के नाम गिनाती है. लेकिन फाउंडिंग टीम की जो तस्वीर है उसमें नौ चेहरे दिख रहे हैं. राकेश झुनझुनवाला का चेहरा यहां नहीं है. लेकिन जो हैं उनमें सबसे खास नाम है आदित्य घोष का जिन्हें इंडिगो को भारत की सबसे तेज़ी से बढ़नेवाली और देश की सबसे बड़ी एयरलाइंस बनाने के लिए जिम्मेदार माना जाता है.
शायद विनय और आदित्य जैसे नाम ही इस बात के लिए भी ज़िम्मेदार है कि बिग बुल राकेश झुनझुनवाला इस जोखिम भरे कारोबार में उतरने के लिए तैयार हो गए हैं.
यह मानने की कोई वजह नहीं है कि झुनझुनवाला को हवाई सेवा चलाने के जोखिम या इसमें नुकसान होने के डर की खबर नहीं है. दुनिया भर के उदाहरण तो छोड़ दें, भारत में ही 77,000 करोड़ के घाटे में डूबी एयर इंडिया से सरकार ने कैसे जान छुड़ाई वो भी सामने है और जेट एयरवेज़ के नरेश गोयल और किंगफिशर के विजय माल्या का हाल भी.
उससे पहले भी सहारा, एनईपीसी, मोदीलुफ्त और ऐसे ही न जाने कितने छोटे बड़े नाम.
दुनिया भर में कारोबार का जो हाल दिख रहा है और बार बार मंदी की आशंका खड़ी हो रही है उससे भी क्या इन्हें डर नहीं लगता? क्या वजह है कि वो एक ऐसे कारोबार में कूद रहे हैं जहां पिछले कई सालों से कोई अच्छी खबर नहीं आई है?
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2014 में नरेंद्र मोदी सरकार बनने के बाद से यह पहली नई एयरलाइंस है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ राकेश झुनझुनवाला की मुलाकात की तस्वीरों को मीडिया और सोशल मीडिया में खासी जगह मिली थी. और उस मुलाकात के बाद ही आकासा को सरकार की हरी झंडी मिलने की खबर भी आई थी.
आकासा एयर की शुरुआत भी धमाकेदार नज़र आ रही है. 400 कर्मचारियों के साथ शुरू हो रही कंपनी में मार्च तक हर महीने पौने दो सौ भर्तियों के साथ 2,000 कर्मचारी रखने की तैयारी है. मार्च तक ही एयरलाइंस के पास 18 विमानों का बेड़ा तैयार होगा यह दावा भी है.
बड़ी बात है क्योंकि अब तक सबसे तेज़ी से इस आकार पर पहुंचनेवाली इंडिगो को भी 18 विमान जोड़ने में डेढ़ साल लगे थे. और बाकी विस्तारा, एयर एशिया और स्पाइस जेट को तो तीन से पांच साल लगे. फिलहाल कंपनी दो बोइंग 737 मैक्स विमानों के साथ उड़ान शुरू कर रही है. और आगे चलकर पांच साल में वो 72 विमानों का बेड़ा उड़ाना चाहती है.
कंपनी की शुरुआत विनय दुबे और उनके दो भाइयों ने की थी. लेकिन अब दो दौर में पैसा जुटाने के बाद कंपनी में उनकी हिस्सेदारी घटकर 31% से कुछ ऊपर रह गई है. अब सबसे बड़े हिस्सेदार राकेश झुनझुनवाला के परिवार और उनके ट्रस्टों के पास कंपनी में 45.97% शेयर हैं.
साफ है कि राकेश झुनझुनवाला ने यह बड़ा दांव खेला है. कुछ महीने पहले एक इंटरव्यू में वो कह भी चुके हैं कि " एयरलाइंस शुरू करने के फैसले पर बहुत से लोग सवाल उठा रहे हैं. उसका जवाब देने के बजाय मैं यही कहना चाहता हूं कि मैं नाकामी के लिए तैयार हूं. कुछ न करने से अच्छा है कि कुछ करके नाकाम हुआ जाए."
सवाल उठानेवाले भी गलत नहीं हैं. एयर इंडिया की बर्बादी की कहानी को तो राजनीति, नौकरशाही और मैनेजमेंट में दखलंदाज़ी के नाम लिखा जा सकता है. लेकिन एयर सहारा के घाटे का सिलसिला और आखिरकार जेट एयरवेज़ के हाथों बिक जाने तक की वजह तो घाटा ही था.
जेट एयरवेज़ 2019 में जिस घाटे के बोझ में दबकर बंद हो गई उसकी वजह भी ज्यादातर लोग सहारा की खरीद के सौदे को ही मानते हैं. भारत में ऐशो आराम के प्रतीक रहे किंग ऑफ गुड टाइम्स के नाम से मशहूर विजय माल्या बैंकों के जिस कर्ज को न चुका पाने के कारण भगोड़े बनकर विदेश में पनाह तलाश रहे हैं उसके पीछे उनकी किंगफिशर एयरलाइंस का डूबना ही सबसे बड़ा कारण है.
लेकिन सिक्के का दूसरा पहलू भी है. एविएशन के कारोबार में दुनिया में सबसे ज्यादा पैसा कमानेवाले प्रोमोटर भी भारतीय ही हैं. इंडिगो के राहुल भाटिया और राकेश गंगवाल के पास चार चार अरब डॉलर से ज्यादा की संपत्ति है जो उन्होंने सिर्फ एयरलाइंस के कारोबार से बनाई है.
इंडिगो भारत की सबसे बड़ी एयरलाइंस भी है और सबसे ज्यादा मुनाफा भी कमाती है.
उसके पूरे सफर की खासियत है कम से कम पैसे में टिकट, हवाई अड्डों पर विमान उतरने से उड़ने के बीच कम से कम समय लगना और टिकट के अलावा सीट से लेकर नाश्ते तक अलग-अलग चीज़ों पर तरह-तरह से कमाई का इंतज़ाम. इंडिगो एक लो कॉस्ट एयरलाइंस है, लेकिन आजकल किसी भी रूट पर उसके किराए आम तौर पर विस्तारा जैसी फुल सर्विस एयरलाइंस को टक्कर देते ही दिखते हैं.
अब आकासा का दावा है कि वो एक यूएलसीसी या अल्ट्रा लो कॉस्ट कैरियर है. यानी सस्ते से भी सस्ती एयरलाइंस. साफ है कि भारतीय आकाश पर कब्ज़े की लड़ाई में वो सस्ते सफर को हथियार बनाना चाहती है. भारत सरकार इस वक्त देश के कोने कोने को हवाई उड़ान से जोड़ने और हवाई चप्पल वालों को हवाई सफर करवाने के अभियान में जुटी है. ऐसे में मौसम आकासा के लिए अनुकूल दिख रहा है.
दूसरी तरफ कोरोना की मार झेलने के बाद व्यापार, कारोबार और हवाई सफर में फिर तेज़ी आती दिखाई दे रही है. इसलिए जहां एक तरफ यह आशंका जायज है कि मंदी के डर के बीच एक नई एयरलाइंस शुरू करना काफी जोखिम भरा दांव है वहीं दूसरी ओर यह भी कहा जा सकता है कि एक नई एयरलाइंस के लिए शायद यही वक्त है जब आसमान पर छाई धुंध छंट रही है और आगे मौसम साफ दिख रहा है.
व्यापार कैसा चलेगा और आकासा में पैसा लगानेवालों का क्या होगा इस सवाल का जवाब मिलने में तो अभी वक्त है.
लेकिन फिलहाल नज़र इस बात पर रखनी होगी कि क्या भारत में हवाई यात्रियों के लिए आकासा के साथ एक बार फिर सस्ते टिकट और जोरदार ऑफरों की बारिश होगी. वैसे ही जैसे इंडिगो और स्पाइस जेट ने बाज़ार पर कब्जा करने के लिए किया था.
और उसके साथ सवाल उठेगा कि अगर आकासा, इंडिगो, स्पाइस और गो एयर इस मुकाबले में लग गए तो फिर फुल सर्विस के नाम पर विस्तारा और एयर इंडिया क्या करेंगी कि यात्री उनसे मुंह न मोड़ लें.
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