अशोक गहलोत के वे तीन वफ़ादार जिनसे चिढ़ी है कांग्रेस
पिछले पाँच दिनों में राजस्थान में जो कुछ भी हुआ है, उसे लेकर यहाँ के विश्लेषकों का कहना है कि अशोक गहलोत की छवि कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व के बीच कमज़ोर हुई है.
राजस्थान कांग्रेस एक बार फिर नेतृत्व परिवर्तन को लेकर जूझ रही है. प्रदेश के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत बुधवार देर शाम दिल्ली पहुँचे. उनकी मुलाक़ात पार्टी प्रमुख सोनिया गांधी से होनी है. अशोक गहलोत के प्रतिद्वंद्वी माने जाने वाले सचिन पायलट भी दिल्ली में ही हैं.
अशोक गहलोत कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष बनने की रेस में सबसे आगे बताए जा रहे थे, लेकिन अब स्थिति जटिल हो गई है.
कांग्रेस ने उदयपुर चिंतन शिविर में एक व्यक्ति, एक पद का संकल्प-पत्र पास किया था. दूसरी तरफ़ अशोक गहलोत पार्टी अध्यक्ष पद के लिए मुख्यमंत्री की कुर्सी नहीं छोड़ना चाहते थे या फिर सचिन पायलट को देने पर सहमत नहीं थे.
पिछले हफ़्ते रविवार को अशोक गहलोत के आवास पर कांग्रेस विधायक दल की बैठक बुलाई गई थी. इस बैठक में शामिल होने दिल्ली से पर्यवेक्षक के तौर राज्यसभा में कांग्रेस के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे और कांग्रेस महासचिव अजय माकन जयपुर पहुँचे थे. अजय माकन राजस्थान के प्रभारी भी हैं. इसी बैठक में नए नेतृत्व पर बात होनी थी.
कांग्रेस विधायक दल की बैठक मुख्यमंत्री के आवास पर थी और विधायक गहलोत के विश्वासपात्र मंत्री शांति धारीवाल के आवास पर पहुँचने लगे. शांति धारीवाल गहलोत सरकार में संसदीय कार्यमंत्री हैं
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माकन थोपना चाहते थे सचिन पायलट को: धारीवाल
शांति धारीवाल ने बीबीसी से कहा कि उनके घर पर 90 से ज़्यादा विधायक पहुँच गए थे. शांति धारीवाल के घर पर जुटने के बाद ये विधायक राजस्थान विधानसभा के अध्यक्ष सीपी जोशी के आवास पर पहुँचे थे और यहाँ उन्होंने अपना इस्तीफ़ा सौंप दिया था.
शांति धारीवाल कहते हैं कि अजय माकन सचिन पायलट को थोपना चाहते थे और विधायक इससे सहमत नहीं थे.
उन्होंने कहा, ''विधायक दल की बैठक में नेता चुना जाता है न कि अजय माकन को चुनना था. विधायकों की इच्छा के ख़िलाफ़ आप अपने मन से नेता नहीं चुन सकते. हमलोग सचिन पायलट को स्वीकार नहीं कर सकते हैं.''
अजय माकन और मल्लिकार्जुन खड़गे के लिए बहुत ही असहज स्थिति हो गई. मजबूरी में उन्हें वापस दिल्ली जाना पड़ा. इन दोनों ने पूरे मामले पर सोनिया गांधी को रिपार्ट सौंपी.
इस रिपोर्ट के आधार पर शांति धारीवाल, राजस्थान विधानभा में कांग्रेस के चीफ़ व्हिप महेश जोशी और राजस्थान पर्यटन विकास निगम के चेयरमैन धर्मेंद्र राठौर के ख़िलाफ़ पार्टी ने कारण बताओ नोटिस जारी किया. इन्हें 10 दिनों के भीतर जवाब देने के लिए कहा गया है.
इस रिपोर्ट में अशोक गहलोत पर शक़ नहीं किया गया है और उन्हें क्लीन चिट मिल गई है. लेकिन क्या अशोक गहलोत वाक़ई इन घटनाक्रमों से बेख़बर थे जबकि जिन तीनों नेताओं को कारण बताओ नोटिस दिया गया है, वे सभी गहलोत के ही वफ़ादार हैं.
गहलोत की सहमति के बिना ऐसा नहीं होता, इस बात से शायद ही कोई सहमत ना हो. अगर अशोक गहलोत को सब पता था तो वह इसे होने से रोक भी सकते थे. लेकिन उन्होंने इसे होने दिया. ऐसे में अशोक गहलोत को क्लीन-चिट क्यों मिली?
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केंद्रीय नेतृत्व नहीं चाहता टकराव
दरअसल, कांग्रेस का केंद्रीय नेतृत्व अभी अशोक गहलोत से सीधे टकराना नहीं चाहता.
दैनिक भास्कर के नेशनल एडिटर एलपी पंत कहते हैं, ''अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच ऐसी लड़ाई है, जिसे गहलोत के विधायक लड़ रहे हैं. वह सीधे तौर पर सामने नहीं आए लेकिन इससे इनकार नहीं किया जा सकता कि उनके विश्वासपात्र विधायक बिना सहमति के आलाकमान को चुनौती दे रहे हैं.''
एलपी पंत कहते हैं, ''अशोक गहलोत नहीं चाहते हैं कि सचिन पायलट मुख्यमंत्री बनें. इसीलिए विधायकों को आगे करने की रणनीति गहलोत जैसे मंझे हुए राजनेता के लिए सबसे स्वाभाविक और आसान था. सचिन पायलट राजस्थान कांग्रेस के ऐसे नेता बन गए हैं, जिन्हें सिरे से ख़ारिज करना गहलोत जैसे बड़े नेता के लिए भी मुमकिन नहीं है.''
गहलोत की सहमति थी तो कांग्रेस ने उन्हें कारण बताओ नोटिस क्यों नहीं दिया?
एलपी पंत कहते हैं, ''राजस्थान इकलौता राज्य है, जहाँ कांग्रेस सरकार पिछले चार सालों से पूरी ताक़त से काम कर रही है. यही नहीं गहलोत ही एकमात्र कांग्रेसी नेता भी हैं, जिन्होंने पिछले कुछ सालों में केंद्र सरकार के सामने अपना एक मॉडल पेश किया है. ऐसे में कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व को यह भी देखना है कि राजस्थान कांग्रेस में विवाद बढ़ाने के बजाय उसे नियंत्रित किया जा सके क्योंकि अगले साल ही चुनाव है. अगर आलाकमान गहलोत को दोषी ठहराता तो आने वाले दिन कांग्रेस के लिए और मुश्किल भरे हो जाते.''
एलपी पंत कहते हैं, ''हालाँकि उनके तीन क़रीबियों को कारण बताओ नोटिस दिया जाना भी गहलोत के पक्ष में फ़ैसला नहीं है. आलाकमान ने संदेश दे दिया है कि वे भी कार्रवाई के दायरे में हैं. 30 सितंबर कांग्रेस के अध्यक्ष पद के लिए नामांकन की आख़िरी तारीख़ है. गहलोत अब भी दावेदार हैं. अगर उन्हें नामांकन भरने से रोका गया तो साफ़ हो जाएगा कि गहलोत को आलाकमान को चुनौती देने की क़ीमत चुकानी पड़ी. अशोक गहलोत के लिए ये अगले 48 घंटे बेहद अहम हैं.''
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गहलोत की छवि हुई कमज़ोर
पिछले पाँच दिनों में राजस्थान में जो कुछ भी हुआ है, उसे लेकर यहाँ के विश्लेषकों का कहना है कि अशोक गहलोत की छवि कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व के बीच कमज़ोर हुई है. अब तक अशोक गहलोत की छवि इंदिरा गांधी के ज़माने से ही गांधी परिवार के प्रति एक समर्पित सिपाही की रही है. कई लोगों का कहना है कि हालिया घटनाक्रम ने उनकी इस छवि को धूमिल किया है.
राजस्थान यूनिवर्सिटी में सामाजिक विज्ञान के प्रोफ़ेसर रहे राजीव गुप्ता कहते हैं, ''अशोक गहलोत अब कोई राइजिंग स्टार नहीं हैं. जितने लोकप्रिय वह अपने पिछले दो कार्यकालों 1998 और 2008 में थे, उतने अब नहीं हैं. बेशक सचिन पायलट उनके सामने अभी कुछ नहीं हैं लेकिन अशोक गहलोत अब इससे ऊपर नहीं जाएंगे. अशोक गहलोत ने अपनी क़ाबिलियत और मेहनत से गांधी परिवार का भरोसा जीता था लेकिन हालिया घटनाक्रम से उनकी स्थिति ज़रूर कमज़ोर हुई है.''
प्रोफ़ेसर राजीव गुप्ता कहते हैं, ''इससे सचिन पायलट को फ़ायदा हुआ है. सचिन पायलट ने इस बार सब्र दिखाया है. पूरे मामले पर चुप रहकर उन्होंने बढ़त हासिल कर ली है. 2020 में जिस तरह से कुछ विधायकों के साथ वह मानेसर चले गए थे, वह उनकी राजनीति के लिए धब्बा था. लेकिन इस बार उन्होंने समझदारी दिखाई है.''
कहा जा रहा है कि अब अशोक गहलोत ख़ुद को कांग्रेस प्रमुख बनकर ही साबित कर सकते हैं न कि राजस्थान में उनके लिए कुछ साबित करने के लिए बचा है.
अशोक गहलोत के जिन तीन वफ़ादारों को कांग्रेस ने कारण बताओ नोटिस दिया है, उनकी क्या हैसियत है?
शांति धारीवाल
मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के क़रीबियों में शांति धारीवाल को सबसे ख़ास माना जाता है. अशोक गहलोत जब 2008 से 2013 तक मुख्यमंत्री थे तब उन्होंने शांति धारीवाल को प्रदेश का गृह विभाग सौंपा था.
शांति धारीवाल उत्तरी कोटा से विधायक चुने जाते हैं. वह कोटा से लोकसभा सांसद भी रहे हैं.
2018 में जब अशोक गहलोत फिर से मुख्यमंत्री बने, तो उन्होंने शांति धारीवाल को एक साथ कई विभाग सौंप दिए. अभी राजस्थान सरकार में शांति धारीवाल संसदीय कार्यमंत्री, क़ानून मंत्री और शहरी विकास मंत्री हैं.
1998 में जब गहलोत पहली बार राजस्थान के मुख्यमंत्री बने, तभी शांति धारीवाल भी पहली बार विधायक का चुनाव जीतकर विधानसभा पहुँचे. सचिन पायलट के ख़िलाफ़ गहलोत की तरफ़ से बोलने वालों में शांति धारीवाल सबसे मुखर रहते हैं. शांति धारीवाल स्पष्ट रूप से कह रहे हैं कि सचिन पायलट को वे स्वीकार नहीं करेंगे.
धर्मेंद्र राठौर
धर्मेंद्र राठौर को भी कांग्रेस ने कारण बताओ नोटिस दिया है. इसी साल धर्मेंद्र राठौर को अशोक गहलोत ने राजस्थान पर्यटन विकास निगम का अध्यक्ष बनाया था.
हाल के वर्षों में धर्मेंद्र राठौर भी अशोक गहलोत के लिए संकटमोचक के तौर पर उभरे हैं. गहलोत के दूसरे कार्यकाल में राठौर राजस्थान बीज निगम के अध्यक्ष थे.
कहा जाता है कि अशोक गहलोत के बेटे वैभव को चुनावी राजनीति में लाने का ज़िम्मा राठौर को ही दिया गया था. लेकिन इसमें कामयाबी नहीं मिली थी. वैभव को गजेंद्र सिंह शेखावत ने 2019 के लोकसभा चुनाव में जोधपुर से दो लाख 74 हज़ार 440 वोटों से हराया था.
गजेंद्र सिंह शेखावत अभी मोदी सरकार में जल शक्ति मंत्री हैं. अशोक गहलोत अपने बेटे के कैंपेन में जोधपुर छह बार गए और डोर टू डोर कैंपेन किया था लेकिन फिर भी जीत नहीं मिली थी.
जोधपुर लोकसभा क्षेत्र में कुल आठ विधानसभा सीटें हैं और कांग्रेस के यहाँ से छह विधायक हैं. लेकिन किसी भी विधानसभा क्षेत्र में वैभव गहलोत को बढ़त नहीं मिली थी.
कहा जाता है कि अगर वैभव चुनाव जीत जाते, तो गहलोत खेमे में धर्मेंद्र राठौर का क़द और ऊंचा हो जाता. 2020 में जब सचिन पायलट ने गहलोत के ख़िलाफ़ बग़ावत की तब भी इसे नाकाम करने में धर्मेंद्र राठौर की अहम भूमिका थी.
इस दौरान आयकर विभाग ने धर्मेंद्र राठौर के ठिकानों पर रेड मारी थी. इस रेड को भी राठौर के बढ़ते कद से जोड़ा गया. इस रेड के लिए राठौर सचिन पायलट को ज़िम्मेदार मानते हैं.
धर्मेंद्र राठौर ने बीबीसी से कहा कि सचिन पायलट ने ही केंद्रीय एजेंसियों को ग़लत सूचना दी थी. धर्मेंद्र प्रधान सचिन पायलट को ग़द्दार बता रहे हैं.
वे कहते हैं कि अशोक गहलोत ही राजस्थान के मुख्यमंत्री रहेंगे और सचिन पायलट को स्वीकार नहीं किया जाएगा. धर्मेंद्र राठौर राजपूत जाति से हैं और उन्हें राजपूतों को कांग्रेस के पक्ष में गोलबंद करने की ज़िम्मेदारी गहलोत देते हैं.
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महेश जोशी
महेश जोशी राजस्थान में कांग्रेस के चीफ़ व्हीप हैं. वह जयपुर के हवा महल विधानसभा क्षेत्र से विधायक हैं. 2009 में जोशी जयपुर लोकसभा सीट से सांसद भी चुने गए थे.
जोशी पर आरोप है कि उन्होंने ही कांग्रेस विधायक दल की बैठक से पहले शांति धारीवाल के घर पर गहलोत समर्थक विधायकों को लामबंद किया था.
कांग्रेस से कारण बताओ नोटिस मिलने पर उन्होंने कहा है कि वह परिणाम भुगतने के लिए तैयार हैं.
जोशी आर्थिक रूप से गहलोत की रीढ़ माने जाते हैं. यहाँ के पत्रकारों का कहना है कि नौकरशाहों और अधिकारियों की नियुक्तियों में महेश जोशी की अहम भूमिका होती है.
एक वरिष्ठ पत्रकार ने नाम नहीं छापने की शर्त पर कहा कि किसी भी अधिकारी के ट्रांसफर पोस्टिंग महेश जोशी की अनुमति ज़रूरी होती है.
कहा जाता है कि इन्हें ब्यूरोक्रेसी को हैंडल करने का अनुभव है. महेश जोशी जयपुर में अशोक गहलोत के सबसे ख़ास हैं क्योंकि यह शहर बीजेपी और आरएसएस का गढ़ माना जाता है.
इसके अलावा महेश जोशी राजस्थान कांग्रेस में ब्राह्मण चेहरा के तौर पर भी देखे जाते हैं.
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