राजस्थान: जब एक नर्तकी के प्रेम में पड़े महाराज अपनी जीत का नतीजा नहीं सुन सके
नई दिल्ली। राजस्थान में आजादी के बाद चुनावों में भी लगातार राजघरानों का प्रभाव रहा है। इस चुनाव में भी राजघरानों के कई लोग लड़ रहे हैं। राजस्थान में एक महाराजा ऐसे भी हुए हैं, जिनका जिक्र हर चुनाव में सूबे के लोगों की जुबान पर आ जाता है, ये थे महाराजा हनवंत सिंह राठौड़। हनवंत सिंह ने 1952 में अपनी पार्टी बनाकर चुनाव लड़ा था और उस समय अकेला विकल्प समझा जा रही कांग्रेस को जोधपुर में करारी शिकस्त दी लेकिन चुनाव परिणाम आने से पहले उनकी मौत हो गई थी। हनवंत सिंह ना सिर्फ 1952 में कांग्रेस को हराने के लिए याद किए जाते हैं बल्कि एक मुसलमान नर्तकी से प्यार में पड़कर पूरे घराने से बागवत के लिए भी लोग उन्हें याद करते हैं।
मारवाड़ राज परिवार के थे हनवंत सिंह
राजस्थान के मारवाड़ राज परिवार की इस विधानसभा चुनाव में कोई सीधी सक्रियता नहीं है लेकिन इस परिवार के महाराजा हनवंत सिंह की जुबैदा से प्रेम कहानी के किस्से चुनावों के समय अक्सर लोगों को याद आ जाते हैं। 1952 में पहले आम चुनाव में कांग्रेस के तमाम विरोध के बावजूद हनवंत सिंह ने पार्टी बनाई और चुनाव लड़ा। वो खुद तत्कालीन मुख्यमंत्री जयनारायण व्यास के खिलाफ चुनाव में उतरे और व्यास को उन्होंने हरा दिया। मतगणना के दौरान जब उन्हें अपनी भारी बढ़त का पता चला तो वो अपनी बीवी जुबैदा के साथ हवाई जहाज की सैर को निकले। ये उनकी जिंदगी की आखिरी सैर साबित हुई। जहाज दुर्घटना का शिकार हुआ और उनकी मौत हो गई। इस हादसे की वजह कभी सामने नहीं आई।
एक बच्चे की मां जुबैदा को दिल दे बैठे थे हनवंत सिंह
मारवाड़ रियासत के उत्तराधिकारी के रूप में हनवंतसिंह का जन्म 16 जून 1923 को हुआ। हनवंत सिंह की शादी 1943 में ध्रांगदा की राजकुमारी कृष्णा कुमारी से हुआ था। जून 1947 में वो मारवाड़ के राजा बने। महाराज बनने के बाद उन्होंने 1948 में इंग्लैंड की सैंडा मैकायार्ज से शादी कर ली। हालांकि डेढ़ साल बाद सैंडा इंग्लैंड लौट गईं, महाराज उन्होंने मनाने पहुंचे लेकिन वो नहीं लौटीं। महाराज लौटे तो मुंबई से आई एक नर्तकी जुबैदा पर फिदा हो गए।
एक समारोह में देखा था जुबैदा को
मारवाड़ राजभवन में 1949 में एक महफिल में महाराज ने जुबैदा को देखा, जो मुंबई से आईं थीं। महाराज ने जुबैदा को देखा और उनसे शादी की बात कह दी। जुबैदा का तलाक हो चुका था और उनका एक बच्चा था। परिवार ने इसका विरोध किया लेकिन हनवंत सिंह नहीं माने। 1950 में जुबैदा ने हिन्दू धर्म अपनाया और उन्होंने जुबैदा से शादी कर ली। उन्होंने उम्मेद भवन छोड़ दिया और जुबैदा जो शादी के बाद विद्या कुमारी हो गईं थीं, के साथ मेहरानगढ़ के किले में रहने लगे। 1952 में दोनों की विमान हादसे में मौत हो गई।
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जिन्ना से थी हनवंत सिंह की करीबी
हनवंत सिंह जिस समय 1947 में, मारवाड़ की रियासत के राजा बने, वो समय देश की आजादी और बंटवारे का था। अंग्रेज देश से जा रहे थे और एक नई सरकार आ रही थी। हनवंत सिंह जिन्ना के करीबी थे, वो चाहते थे कि मारवाड़ रियासत पाकिस्तान के साथ मिल जाए। जिन्ना ने उनका सभी शर्ते भी मान लेने की बात कही थी। हालांकि उस वक्त के गृहमंत्री सरदार वल्लभभाई पटेल ने दबाव डालकर उन्हें भारत के साथ रहने और अपनी रियासत के विलय के लिए मना लिया।
28 साल की उम्र में बनाई पार्टी
देश का निजा बदला तो महाराज ने चुनाव में उतरने का फैसला किया। 1952 के लोकसभा और विधानसभा चुनाव से पहले उन्होंने पार्टी बनाई। ऊंट के निशान पर उनकी पार्टी ने चुनाव लड़ा। पूरे मारवाड़ में लोकसभा और विधानसभा चुनाव में अपने प्रत्याशी उतारे। कांग्रेस ने इसका जोरदार विरोध किया और उन्हें चेतावनी दी कि वे नतीजे भुगतने को तैयार रहे। इसके बावजूद उन्होंने अपने प्रत्याशी मैदान में उतारे और उनके प्रत्याशियों ने ज्यादातर सीटों पर जीत हासिल की लेकिन अपनी इस जीत को देखने के लिए वे जिंदा नहीं रहे। विमान दुर्घटना में उनके निधन के कारण देश में लोकसभा का पहला उपचुनाव जोधपुर में कराना पड़ा था।
परिवार की राजनीति में सक्रियता
महाराज की मौत के बाद उनकी पत्नी कृष्णा कुमारी की राजनीति में सक्रियता रही। इस साल जुलाई में ही कृष्णा कुमारी की मौत हुई है। इंदिरा गांधी ने जब राजघरानों का प्रिवीपर्स तोड़ा तब विरोध स्वरूप राजमाता कृष्णा कुमारी भी जोधपुर से लोकसभा का चुनाव लड़कर जीती थीं। वह 1977 में भी जीतीं। उनके बेटे महाराज गज सिंह 1990 में राज्यसभा के लिए चुने गए। उनकी बड़ी बेटी चंद्रेश कुमारी 2009 में जोधपुर से सांसद बनी और मनमोहन सरकार में मंत्री भी रहीं। चंद्रेश 1984 में कांगड़ा से सांसद रहीं। वह हिमाचल प्रदेश में मंत्री भी रहीं।
हनवंत सिंह और जुबैदा की प्रेम कहानी पर बनी फिल्म
श्याम बेनेगल ने 2001 में जुबैदा और हनवंत सिंह की प्रेम कहानी और शादी पर जुबैदा नाम से फिल्म बनाई थी। 2001 में मनोज बाजपेयी, रेखा और करिश्मा कपूर अभिनीत यह फिल्म रिलीज हुई। इसे राष्ट्रीय फिल्म अवॉर्ड भी मिला था। फिल्म में वाजपेयी ने महाराज, करिश्मा कपूर ने जुबैदा और रेखा ने कृष्णा कुमारी का रोल किया था।
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