Rajasthan:क्या अशोक गहलोत के बहुमत का दावा झूठा है, देखिए आंकड़े
नई दिल्ली- सोमवार को मुख्यमंत्री आवास में और मंगलवार को राजस्थान की राजधानी जयपुर के फेयरमोंट होटल दोनों जगहों पर हुई कांग्रेस विधायक दल की बैठक में उप मुख्यमंत्री सचिन पायलट और उनके समर्थक विधायक नहीं पहुंचे। कल की बैठक के लिए दावा किया गया था कि उसमें सीएम अशोक गहलोत के समर्थन में 107 विधायक शामिल हुए थे। लेकिन, उस कहानी में बड़ा झोल नजर आ रहा है। कुछ तो बहुमत के बावजूद विधायकों के अपने राज्य और अपनी सरकार होने के बाद भी होटल में छिपाए रखने को लेकर आशंका पैदा हो रही है और रही-सही कसर आंकड़ों का बहुत बड़ा घालमेल पूरा कर दे रहा है। आइए देखते हैं कि कांग्रेस के गहलोत खेमे के दावों और आंकड़ों की असलियत में कितना बड़ा अंतर है।
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107 विधायकों के समर्थन का दावा कितना सही ?
सोमवार को जयपुर में अशोक गहलोत के मुख्यमंत्री आवास में कांग्रेस विधायक दल की जो बैठक हुई, उसके बारे में सीएम के मीडिया सलाहकार ने दावा किया कि उसमें 107 विधायक शामिल हुए थे। यानि यह आंकड़ा बताने का मतलब ये हुआ कि 200 सदस्यों वाले राजस्थान विधानसभा में कांग्रेस की गहलोत सरकार के पास पूर्ण बहुमत से भी ज्यादा विधायक हैं। लेकिन, टाइम्स ऑफ इंडिया में छपी एक खबर के मुताबिक सीएम आवास में हुई बैठक में कांग्रेस के अपने सिर्फ 87 विधायक ही पहुंचे थे। यानि उप मुख्यमंत्री और प्रदेश अध्यक्ष सचिन पायलट और उनके समर्थक कम से कम 20 विधायक उस बैठक में शामिल नहीं हुए थे। ऐसे आंकड़े कई और जगहों से भी सामने आए हैं। इन तथ्यों के आधार पर आइए समझते हैं कि गहलोत सरकार को कम से कम 107 विधायकों के समर्थन प्राप्त होने का दावा कैसे गलत है।
गहलोत सरकार को स्पष्ट बहुमत नहीं ?
कांग्रेस के गहलोत खेमे ने खुद ही दावा किया है कि उन्हें 13 में से 10 निर्दलीय विधायकों का ही समर्थन प्राप्त है। इसके अलावा सीपीएम के दो विधायकों का समर्थन हासिल होने का उनका दावा भी सही हो सकता है। यही नहीं अकेले आरएलडी विधायक का भी गहलोत सरकार को समर्थन के दावे में कोई झोल नहीं नजर आता। लेकिन इसके बाद भी गहलोत सरकार के समर्थक विधायकों की संख्या को जोड़ें तो आंकड़े इस प्रकार आते हैं:- कांग्रेस (गहलोत खेमा): 87+निर्दलीय:10+सीपीएम:2+आरएलडी: 01 = कुल 100. जबकि 200 सदस्यों वाली विधान सभा में स्पष्ट बहुमत के लिए जादुई आंकड़ा होना चाहिए कम से कम 101. यानि गहलोत सरकार के पास पूर्ण बहुमत क्या स्पष्ट बहुमत के लायक भी आंकड़ा अभी तक नजर नहीं आ रहा है।
गहलोत विरोधी विधायकों का आंकड़ा
अब जरा विधानसभा में गहलोत विरोधी विधायकों की संख्या को भी जोड़ लेते हैं। भाजपा के पास सदन में 72 विधायक हैं और उसकी सहयोगी आरएलपी के पास 3 विधायक। जबकि, पायलट समेत उनके समर्थक विधायकों की संख्या अबतक कम से कम 20 बताई जा रही है। इस तरह से गहलोत विरोधी वोटों को जोड़ें तो यह आंकड़ा होता है:- बीजेपी+आरएलपी: 75 + पायलट गुट: 20+ निर्दलीय: 03 (गहलोत खेमे के दावे को ही मानते हुए)+भारतीय ट्राइबल पार्टी: 02 = 100. यानि गहलोत खेमे के दावे के मुताबिक भी उनके पास अगर 100 विधायकों का समर्थन है तो उनके विरोध में भी 100 ही विधायक हैं। इसलिए, सोमवार को मुख्यमंत्री आवास पर 107 विधायक कैसे जुट गए ये एक सवाल (अगर उसमें बीटीपी के दो आ भी गए होंगे तो भी) जरूर है।
भारतीय ट्राइबल पार्टी के विधायक बचाएंगे सरकार ?
अलबत्ता कांग्रेस अभी भारतीय ट्राइबल पार्टी के दो सदस्यों के भी समर्थन का दावा जरूर कर रही है। लेकिन, गुजरात आधारित इस पार्टी ने सोमवार रात को ही यह साफ कर दिया है कि वो न तो अशोक गहलोत को समर्थन देगी और न ही सचिन पायलट को। वैसे ऐसी खबरें भी हैं कि सीएम गहलोत के लोग पार्टी के दोनों विधायकों को बसपा के 6 विधायकों की तरह ही अपने खेमे में करने में जुटे हुए हैं। अगर ऐसा करने में गहलोत कामयाब भी हो जाते हैं तो उनकी सरकार (102 विधायकों के साथ) ज्यादा दिनों तक स्थिर नहीं रह पाएगी। राजस्थान में विपक्ष लगातार यह मुद्दा उठा रहा है कि गहलोत सरकार के पास बहुमत है या नहीं इसका फैसला संविधान के तहत सदन के फ्लोर पर होना चाहिए न कि मुख्यमंत्री आवास के लॉन में।
पायलट की अगली रणनीति पर सबकी नजर
यही नहीं खबरें ये हैं कि अगर पायलट और उनके समर्थक अभी भी गहलोत के सामने नतमस्तक नहीं हुए तो पार्टी उनके खिलाफ कार्रवाई कर सकती है। प्रश्न उठता है कि मौजूदा परिस्थिति में पार्टी क्या कर सकती है। कांग्रेस सभी बागी विधायकों को पार्टी विरोधी गतिविधियों के लिए पार्टी से निकाल ही सकती है। लेकिन, यह कांग्रेस के लिए अपने पैर में कुल्हाड़ी मारने जैसा होगा। क्योंकि, जबतक ये विधायक सदन में व्हिप का उल्लंघन नहीं करते, तबतक संवैधानिक तौर पर उनकी विधायकी खत्म नहीं की जा सकती; और अगर गहलोत सरकार ने सदन में शक्ति प्रदर्शन का सहारा लिया तो तब तक राजस्थान की राजनीति किस ओर मुड़ेगी इसका अंदाजा लगाना मुश्किल है। क्योंकि, अगर अपनी ही सरकार में मुख्यमंत्री समर्थक विधायकों को बसों में बिठाकर इधर से उधर सुरक्षित स्थानों पर घुमाना पड़ रहा है तो वहां कहीं न कहीं आत्मविश्वास की कमी जरूर है। जबकि, इसके ठीक उलट अगर पायलट खेमा लगातार डटा हुआ है तो उसने कुछ न कुछ रणनीति जरूर बना रखी है। बहरहाल, सियासत का ये खेल बड़ा दिलचस्प है और देखते जाइए कि इसका अंतिम परिणाम क्या निकलता है।
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