PNB घोटाला: ऐसे किया गया 11500 करोड़ का सबसे बड़ा बैंकिंग स्कैम
Recommended Video
नई दिल्ली। देश की दूसरी सबसे बड़ी बैंक पीएनबी में भारतीय बैंकिंग इतिहास का सबसे बड़ा घोटाला सामने आया है। 11 हजार करोड़ से अधिक के इस घोटाले में सीबीआई ने डायमंड करोबारी नीरव मोदी के खिलाफ मनी लॉड्रिंग और धोखाधड़ी का केस दर्ज किया है। शुरुआती जांच में पता चला है कि नीरव मोदी और उनके सहयोगी पीएनबी से 'बायर्स क्रेडिट' लिया करते थे। इसी से इस घोटाले की पोल खुली। केंद्रीय जांच एजेंसी सीबीआई के मुताबिक बैंक से उसे दो शिकायतें मिलीं हैं जिनमें आरोप लगाया गया कि बैंक ने 11400 करोड़ रुपये से अधिक के फर्जी लेन-देन का पता चला है जिसमें मोदी और उनसे जुड़ी आभूषण कंपनियां शामिल हैं।
पूरे घोटाले की शुरुआत साख पत्र (लेटर ऑफ अंडरटेकिंग) से हुई
इस पूरे घोटाले की शुरुआत साख पत्र (लेटर ऑफ अंडरटेकिंग) से हुई। यह एक तरह की गारंटी होती है, जिसके आधार पर दूसरे बैंक खातेदार को पैसा उधार देते हैं। अब यदि खातेदार डिफॉल्टर हो जाता है तो एलओयू मुहैया कराने वाले बैंक को संबंधित बैंक के पैसे का भुगतान करना होता इससे नीरव मोदी ने विदेशों में निजी एवं सार्वजनिक क्षेत्र के विभिन्न बैंकों से रुपया भुनाया। यह सब 2011 से काम कर रहे उप-महाप्रबंधक के स्तर के अधिकारियों के साथ साठगांठ कर किया गया।
नीरव मोदी पीएनबी से ‘बायर्स क्रेडिट' लिया करते थे
नीरव मोदी पीएनबी से ‘बायर्स क्रेडिट' लिया करते थे। बायर्स क्रेडिट 90 से 180 दिन का उधार होता है जो इंटरनेशनल बैंक, इंपोटर्स को देते हैं। इससे इंपोर्ट के लिए पेमेंट करने में आसानी होती है। बायर्स क्रेडिट का आधार होता है बैंक अपने कस्टमर को लेटर ऑफ अंडरटेकिंग देती है। ‘लेटर ऑफ अंडरटेकिंग' से कस्टम की क्रेडिट हिस्ट्री का पता चलता है। रिपोर्ट के मुताबिक नीरव मोदी और उनके सहयोगियों की तीन कंपनियों- Diamonds R US, Steller Diamonds और Solar Exports ने पीएनबी से जनवरी के महीने में ‘लेटर ऑफ अंडरटेकिंग' की मांग की थी।
बैंक के रिकॉर्ड में पुराने ‘लेटर ऑफ अंडरटेकिंग' नहीं मिले तो हुआ शक
बैंक अधिकारियों ने लेटर ऑफ अंडरटेकिंग (एलओयू) देने से पहले 100% कैश मार्जिन मांगा। इस पर कंपनी की ओर से कहा गया कि उनको पहले से भी ‘लेटर ऑफ अंडरटेकिंग' मिलते रहे हैं। इसके बाद बैंक ने इसकी छानबीन की तो उन्हें बैंक के रिकॉर्ड में पुराने ‘लेटर ऑफ अंडरटेकिंग' नहीं मिले। तो इससे कर्मचारियों को शक हुआ। जांच में पता चला है कि बैंक के दो कर्मचारियों की मिलीभगत से फर्जी ‘लेटर ऑफ कम्फर्ट' जारी हो रहे थे जिसके आधार पर नीरव मोदी और उनके सहयोगियों की कंपनी इंटरनेशनल बैंक की शाखाओं से ‘लेटर ऑफ क्रेडिट' लेती रहीं।