बेअंत सिंह: पंजाब का CM जिसकी हत्या से दहल उठा देश, हत्यारे की माफी पर SC ने केंद्र से पूछा है सवाल
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने 25 साल पहले पंजाब के मुख्यमंत्री बेअंत सिंह हत्याकांड (Beant Singh Murder) में मौत की सज़ा पाए बलवंत सिंह राजोआना की दया याचिका पर देरी को लेकर केंद्र से सवाल पूछा तो ये नृशंस हत्याकांड एक बार फिर सुर्खियों में आ गया है। सुप्रीम कोर्ट में मुख्य न्यायाधीश एसए बोबडे की अगुवाई वाली पीठ ने केंद्र की तरफ से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल केएम नटराज से पूछा कि आखिर बलवंत सिंह राजोआना (Balwant Singh Rajoana) की दया याचिका को राष्ट्रपति के पास कब भेजा जाएगा। पीठ में दूसरे जज न्यायमूर्ति ए एस बोपन्ना और न्यायमूर्ति वी रामासुब्रमणियन रहे।
सुप्रीम कोर्ट ने राजोआना की माफी पर पूछा सवाल
पिछले साल ही केंद्रीय गृह मंत्रालय ने पंजाब सरकार को सूचित किया था कि मुख्यमंत्री बेअंत सिंह हत्याकांड में दोषी बलवंत सिंह राजोआना की मौत की सजा को बदलकर उम्रकैद में किया जाएगा। तब से ही इस मामले को राष्ट्रपति के पास भेजे जाने का इंतजार किया जा रहा था। इसी मामले पर सुप्रीम कोर्ट ने पूछा कि दया याचिका को संविधान के अनुच्छेद 72 के तहत राष्ट्रपति के पास भेजने में देरी क्यों की जा रही है। सुप्रीम कोर्ट बलवंत सिंह राजोआना की माफी पर शीघ्र निस्तारण के लिए केंद्र को निर्देश देने के लिए दायर याचिका पर सुनवाई कर रही थी। बता दें कि बलवंत सिंह ने खुद से माफी की याचिका दायर नहीं की थी। इसे दूसरों की तरफ से दायर किया गया था।
लेकिन इस मामले में सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के बाद देश के सबसे चर्चित हत्याकांड में रहा बेअंत सिंह हत्याकांड एक बार फिर सुर्खियों में आ गया है। मुख्यमंत्री बेअंत सिंह को पंजाब में चरमपंथ के खिलाफ लड़ते हुए अपनी जान गंवानी पड़ी थी। अलगाववादियों ने बेअंत सिंह को चंडीगढ़ स्थित सचिवालय में ही बम से उड़ा दिया था। ये वो दौर था जब पंजाब सिख अलगाववाद की आग में जल रहा है।
सचिवालय में मानव बम से हुई सीएम की हत्या
पंजाब में अलगाववाद को काबू रखने के लिए लंबे समय तक राष्ट्रपति शासन लगा था। फिर 1992 में बेअंत सिंह ने पंजाब के मुख्यमंत्री की कुर्सी संभाली। बेअंत सिंह के सामने सबसे बड़ी चुनौती अलगाववादियों से निपटना था और उन्होंने उस पर काफी सफलता भी पाई। लेकिन इसकी कीमत उन्हें जान देकर चुकानी पड़ी।
तारीख थी 31 अगस्त 1995। मुख्यमंत्री बेअंत सिंह आम दिनों की तरफ मुख्यमंत्री सचिवालय के अंदर अपनी कार में मौजूद थे। इसी दौरान मानव बम बनकर पहुंचे एक खालिस्तानी चरमपंथी ने खुद को उनकी कार के ऊपर उड़ा लिया। धमाका इतना तेज था कि दूर तक इसकी आवाज सुनाई दी। जब धुएं का गुबार शांत हुआ तो वहां आस-पास चारों तरफ खून और मांस के चीथड़े बिखरे पड़े थे। हमले में मुख्यमंत्री बेअंत सिंह मारे जा चुके थे। उनके साथ ही 17 अन्य लोगों को भी अपनी जान गंवानी पड़ी थी। जिस शख्स ने खुद को मानव बम बनकर उड़ाया था वह पंजाब पुलिस का ही एक कर्मचारी था जिसका नाम दिलावर सिंह था।
मानव बम बनकर तैयार था राजोआना
घटना के तुरंत बाद बलवंत सिंह राजोआना को गिरफ्तार कर लिया गया था। वह वहां पर दूसरा मानव बम बनकर तैयार था कि किसी भी तरह से बेअंत सिंह बचने न पाए। योजना के मुताबिक अगर दिलावर किसी तरह चूक जाता उसे जाकर खुद को उड़ा लेना था। बाद में मुकदमा चला तो उसने 1997 में उसने अपना अपराध कबूल कर लिया था। 1995 में अपनी गिरफ्तारी के बाद राजोआना ने कभी भी अपने लिए वकील नहीं किया और न ही कभी दया याचिका दायर की।
हत्याकांड की पूरी साजिश खालिस्तान टाइगर फोर्स के स्वयंभू कमांडर जगतार सिंह तारा ने रची थी। घटना के बाद से ही वह फरार चल रहा था। 2005 में दिल्ली के एक सिनेमाहाल में विस्फोट के बाद पुलिस ने जब तलाशी अभियान शुरू हुआ तो पुलिस को बड़ी सफलता हाथ लगी। इसी दौरान जगतारा सिंह पुलिस के हत्थे चढ़ गया।
27 जुलाई 2007 को बेअंत सिंह की हत्या के मामले में 6 लोगों बलवंत सिंह, जगतारा सिंह, गुरमीत सिंह, लखविंदर सिंह, शमशेर सिंह और नसीब सिंह को दोषी करार दिया। एक आरोपी नवजोत सिंह को बरी कर दिया गया था।
2007 में सुनाई गई थी फांसी
31 जुलाई 2007 को कोर्ट ने इस चर्चित मामले में फैसला सुनाया। मास्टरमाइंड जगतारा सिंह और बलवंत सिंह राजोआना को सजा-ए-मौत दी गई जबकि तीन दोषियों गुरमीत, लखविंदर और शमशेर को उम्रकैद मिली। एक दोषी नसीब सिंह को 10 साल की जेल मिली। फैसले के खिलाफ पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट में अपील की गई जहां जगतारा की सज़ा उम्र कैद में बदल गई लेकिन बलवंत की सज़ा बरकरार रखी। तब से वह अपनी फांसी का इंतजार कर रहा था लेकिन पिछले साल गुरुपर्व के मौके पर केंद्रीय गृह मंत्रालय ने उसकी फांसी की सज़ा को उम्रकैद में बदलने का फैसला किया था। इसके तहत दया याचिका को राष्ट्रपति के पास भेजा जाना था जो अभी भी नहीं भेजी गई है।
बलवंत सिंह भी पंजाब पुलिस का सिपाही थी। 1987 में वह पुलिस में शामिल हुआ। लुधियाना के पास स्थित अपने गांव के नाम पर उसने अपने नाम में राजोआना जोड़ लिया था। 1990 आते-आते वह अलगाववादियों के असर में पूरी तरह आ गया था और वह बब्बर खालसा इंटरनेशनल (BKI) का सदस्य बन चुका था जो कि खालिस्तानी अलगाववादी संगठन था।
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