लोकसभा चुनाव 2019: रामटेक लोकसभा सीट के बारे में जानिए
नई दिल्ली: महाराष्ट्र की रामटेक लोकसभा सीट से मौजूदा सांसद शिवसेना के कृपाल बालाजी है। साल 2014 के लोकसभा चुनाव में उन्होंने कांग्रेस के दिग्गज नेता मुकुल वासनिक को 17,57,91 वोटों से हराया था। कृपाल बालाजी तुमाने को इस चुनाव में 51,98,92 मत मिले थे जबकि मुकुल वासनिक को 34,41,01 मतों पर संतोष करना पड़ा था। साल 2014 के चुनाव में इस सीट पर नंबर 2 पर कांग्रेस और नंबर 3 पर बसपा और नंबर 4 पर आप थी। उस साल यहां कुल मतदाताओं की संख्या 16,77,245 थी, जिसमें से मात्र 10,50,316 लोगों ने अपने मतों का प्रयोग किया था, जिनमें पुरुषों की संख्या 5,76,939 औैर महिलाओं की संख्या 4,73,377 थी।

रामटेक लोकसभा सीट का इतिहास
यह सीट अनुसूचित जाति वर्ग के लिए आरक्षित है, साल 1957 में यहां पहली बार आम चुनाव हुए थे, जिसे कि कांग्रेस ने जीता था और तब से लेकर साल 1998 तक यह क्षेत्र कांग्रेस का ही गढ़ रहा है। यहीं से साल 1984 और 1989 में देश के पूर्व प्रधानमंत्री पी.वी नरसिम्हाराव सांसद चुने गए थे तो वहीं भोंसले राज परिवार के तेजसिंह भोंसले और रानी चित्रलेखा भोंसले भी कांग्रेस की टिकट पर यहां पर चुनाव जीते थे। साल 1999 में यहां से शिवसेना ने पहली बार जीत दर्ज की थी और सुबोध मोहिते यहां से निर्वाचित हुए थे, वो लगातार दो बार इस सीट पर सांसद रहे, साल 2007 में जब यहां उपचुनाव हुआ तो भी यहां शिवसेना की ही जीत हुई थी लेकिन साल 2009 के चुनाव में एक बार फिर से यहां कांग्रेस की वापसी हुई और मुकुल वासनिक यहां से जीतकर लोकसभा पहुंचे थे लेकिन साल 2014 के चुनाव में उन्हें शिवसेना के कृपाल बालाजी तुमाने से शिकस्त झेलनी पड़ी और यहां कांग्रेस हार गई।
रामटेक, परिचय-प्रमुख बातें-
महाराष्ट्र का रामटेक जिला आस्था का केंद्र है, यह नागपुर से 50 किमी. दूर स्थित है, किंवदंती है कि भगवान राम ने अपनी पत्नी सीता और भाई लक्ष्मण के साथ इसी जगह पर वनवास के दौरान विश्राम किया था और इसी वजह से इसका नाम रामटेक है, यह शहर अपने मंदिरों के लिए भी मशहूर है, माना तो ये भी जाता है कि कि इसी जगह पर बैठकर महाकवि कालीदास ने अपना महाकाव्य मेघदूत लिखा था। बेहद ही शांत चित्त वाले इस जिले की आबादी 22 लाख 47 हजार 905 है, जिसमें से 65 प्रतिशत लोग गांवों में और 34 प्रतिशत लोग शहरों में निवास करते हैं।
कृपाल बालाजी का लोकसभा में प्रदर्शन
दिसंबर 2018 की रिपोर्ट के मुताबिक पिछले 5 सालों के दौरान लोकसभा में उनकी उपस्थिति 86 प्रतिशत रही और इस दौरान उन्होंने 42 डिबेट में हिस्सा लिया है और 449 प्रश्न पूछे हैं। आजादी के बाद से यहां लंबा राज करने वाली कांग्रेस पिछला चुनाव यहां हार गई, जिसके पीछे कारण यहां पर स्थानीय लोगों का उसके प्रति गुस्सा था, जबकि शिवसेना की जीत में मोदी लहर का भी हाथ था क्योंकि साल 2014 के लोकसभा का चुनाव भाजपा और शिवसेना ने मिलकर लड़ा था, जिसका फायदा दोनों ही पार्टियों को मिला था, कुल मिलाकर इस सीट पर मुकाबला कांग्रेस और शिवसेना के ही बीच में रहा है इसलिए कोई शक नहीं कि दोनों ही पार्टियां इस सीट को जीतने के लिए एड़ी-चोटी का दम लगाएंगी, देखते हैं शह और मात के इस खेल में इस बार जीत किसको नसीब होती है।