लोकसभा चुनाव 2019: गुलबर्गा लोकसभा सीट के बारे में जानिए
नई दिल्ली। कर्नाटक की गुलबर्गा लोकसभा सीट एससी कैंडिडेट के लिए आरक्षित है। यहां से कांग्रेस के मल्लिकार्जुन खड़गे सांसद हैं। 2009 के बाद वह गुलबर्गा से दूसरी बार सांसद चुने गए हैं। खड़गे लोकसभा में कांग्रेस के संसदीय दल के नेता भी हैं। 2014 में उन्होंने भाजपा के रेवुनायक बेलामागी को 74,733 वोटों से हराकर चुनाव जीता था। चुनाव में उनको 51 फीसदी तो भाजपा प्रत्याशी को 43 प्रतिशत वोट मिले थे। भाजपा के पक्ष में माहौल के बावजूद वो आसानी से अपनी सीट जीतने में कामयाब रहे थे।
लोकसभा में खड़गे की उपस्थिति 90 प्रतिशत रही है। उन्होंने 305 सवाल पूछे हैं और 145 डिबेट में हिस्सा लिया है। बता दें कि 76 साल के मल्लिकार्जुन खड़गे कर्नाटक में कांग्रेस के बड़े नेता हैं। वो 1972 से 2008 तक लगातार वह नौ बार लगातार विधायक रहे हैं। इसके बाद खड़गे 2009 में गुलबर्गा लोकसभा सीट से संसदीय चुनाव में उतरे और जीतकर संसद पहुंचे। यूपीए सरकार में वे रेल मंत्री, श्रम और रोजगार मंत्री का कार्यभार संभाल चुके हैं।
कर्नाटक के गुलबर्गा संसदीय क्षेत्र के इतिहास की बात करें तो ये कांग्रेस का गढ़ रहा है। यहां हुए 14 आम चुनावों में कांग्रेस ने 12 बार यहां पर जीत हासिल की है। भारत के दूसरे आम चुनाव यानी 1957 में ये सीट अस्तित्व में आई। तबसे मजह तीन साल के लिए ये सीट कांग्रेस के अलावा किसी पार्टी के पास रही है, नहीं तो हर बार यहां कांग्रेस ही जीती। कांग्रेस के अलावा 1996 से 1998 तक यहां जनता दल के कमरुल इस्लाम और1998 से 1999 तक भाजपा के बसावाराज पाटिल सांसद रहे हैं। 1999 में यहां से इकबाल अहमद जीते, 2004 में एक बार फिर इकबाल ने यहां से जीत दर्ज की। गुलबर्गा सीट 1971 से पहले मैसूर स्टेट का हिस्सा रही है।
गुलबर्गा की कुल आबादी 23,12,555 है। इसमें 65 प्रतिशत आबादी ग्रामीण और 35 फीसदी शहरी इलाके में रहती है। सीट पर एससी आबादी 24 प्रतिशत है। यहां 17,21,990 मतदाता हैं। इसमें 8,78,311 पुरुष और 8,43,679 महिलाएं हैं। 2014 में यहां 58 फीसदी मतदान हुआ।
गुलबर्गा कर्नाटक का एक लोकप्रिय ऐतिहासिक शहर है, जिसे कभी कलबुर्गी के नाम से संबोधित किया जाता था। बाद में इस शहर का नाम बदलकर गुलबर्गा कर दिया गया। कलबुर्गी का शाब्दिक अर्थ होता है पत्थरों का शहर। बताते हैं कि गुलबर्गा शहर 14वीं शताब्दी में बहमनी सुल्तानों के वक्त ये शहर बसा और बाद में 18 वीं से 20 वीं शताब्दी तक हैदराबाद के निजामों के अंतर्गत रहा। इस दौरान कई स्मारक और इमारतें यहां बनीं।