लोकसभा चुनाव 2019- नालंदा लोकसभा सीट के बारे में जानिए
नई दिल्ली: बिहार की लोकसभा सीट से मौजूदा सांसद कौशलेन्द्र कुमार हैं। साल 2014 के चुनाव में कौशलेन्द्र कुमार को 3,21,982 वोट मिले थे, तो वहीं लोजपा के उम्मीदवार सत्यानन्द शर्मा को 3,12,355 वोट मिले थे। इस चुनाव में इस सीट पर नंबर दो पर लोजपा, नंबर तीन पर कांग्रेस और नंबर चार पर बसपा थी। उस साल इस सीट पर मतदाताओं कीं संख्या 19,51,967 थी, जिसमें से 9,21,761 लोगों ने अपने मतों का प्रयोग किया था, जिसमें पुरुषों की संख्या 5,03,097 और महिलाओं की संख्या 4,18,664 थी। नालंदा संसदीय क्षेत्र के अंतर्गत विधानसभा की सात सीटें हैं।
नालंदा लोकसभा सीट का इतिहास
नालंदा बिहार का एकमात्र संसदीय क्षेत्र है, जहां लालू प्रसाद की पार्टी राष्ट्रीय जनता दल का अभी तक खाता नहीं खुल सका है। नालंदा की सियासत का मतलब है सीएम नीतीश कुमार, उन्होंने जिस पर यहां हाथ रख दिया, जीत उसी की हुई है। मुख्यमंत्री के होम टाउन में 1996 से एक ही धुरी पर राजनीति का पहिया घूम रहा है, किसी और की पैठ यहां अभी तक हो नहीं पाई है।
भगवान बुद्ध की भूमि पर कांग्रेस की कहानी तो 1971 तक ही सुनी गई और उसके बाद भाकपा ने जरूर कुछ जोर जरूर लगाया, लेकिन राजनीति में नीतीश के आने के बाद किसी की चाल और कोई गणित यहां काम नहीं आया और साल 1999 से लेकर साल 2014 तक केवल यहां जेडीयू का ही राज रहा है। नीतीश कुमार खुद भी यहां से 2004 में सांसद चुने गए थे उन्होंने लोजपा के डॉक्टर कुमार पुष्पंजय को भारी मतों से हराया था हालांकि अगले ही वर्ष जब वो बिहार के मुख्यमंत्री बने तो उपचुनाव में जदयू से रामस्वरूप प्रसाद यहां से एमपी चुने गए। पिछली दो बार से नालंदा के मतदाताओं की कृपा जदयू सांसद कौशलेंद्र कुमार पर बरस रही है।
कौशलेंद्र कुमार का लोकसभा में प्रदर्शन
दिसंबर 2018 की रिपोर्ट के मुताबिक सांसद कौशलेंद्र कुमार की पिछले 5 सालों के दौरान सदन में उपस्थिति 97 प्रतिशत रही है और इस दौरान उन्होंने 229 डिबेट में हिस्सा लिया है।
नालंदा लोकसभा सीट, परिचय प्रमुख बातें-
नालंदा अपने प्राचीन इतिहास के लिये विश्व प्रसिद्ध है, यहां विश्व की सबसे प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय के अवशेष आज भी मौजूद हैं। साल 2011 की जनगणना के मुताबिक यहां की जनसंख्या 28,73,415 है, जिसमें 84 प्रतिशत जनसंख्या ग्रामीण इलाकों में और 15 प्रतिशत जनसंख्या शहरों में रहती है, यहां की 92 प्रतिशत आबादी हिंदू धर्म में और 6 प्रतिशत आबादी इस्लाम धर्म में आस्था रखती है, नालंदा ज़िले में कुर्मी जाति का दबदबा होने के कारण इसे स्थानीय लोग कुर्मिस्तान के नाम से भी संबोधित करते हैं।
नीतीश कुमार का सुरक्षित दु्र्ग कहे जाने वाले नालंदा के बारे में कहा जाता है कि यहां के मतदाता सीधे मुख्यमंत्री को देखते हैं, प्रत्याशी को नहीं। तीन दशक का इतिहास बता रहा है कि जदयू की ओर से मैदान में जो भी होगा, नालंदा के लोगों की पहली पसंद होगा फिलहाल यहां राजद का अभी तक कोई वजूद नहीं है, तो वहीं नालंदा संसदीय क्षेत्र में कांग्रेस का आखिरी पिलर 1971 तक सिद्धेश्वर प्रसाद के रूप में खड़ा था, लेकिन 1977 में यह ऐसा उखड़ा कि दोबारा खड़ा नहीं हो पाया। भारतीय लोकदल को भी एक मौका मिला, लेकिन उसके बाद भाकपा का कब्जा हो गया लेकिन CPI की जीत के तिलिस्म को नीतीश कुमार की मदद से वर्ष 1996 में समता पार्टी के टिकट पर जॉर्ज फर्नाडीज ने तोड़ा था लेकिन तब से नालंदा सिर्फ और सिर्फ जेडीयू का होकर रह गया है। अब देखना है कि इस चुनाव में जनता किसे चुनती है?