लोकसभा चुनाव 2019: गुना लोकसभा सीट के बारे में जानिए
नई दिल्ली: मध्यप्रदेश की गुना लोकसभा सीट से देश के चर्चित युवा नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया सांसद हैं, वो इस सीट पर लगातार चार बार से एमपी हैं, गुना की जनता उन्हें छोटे सरकार और राजकुमार कहकर संबोधित करती है क्योंकि उनके पिता स्व. माधवराव सिंधिया भी इसी सीट पर सांसद थे। मध्य प्रदेश के उत्तर भाग में स्थित गुना शहर को मालवा का प्रवेश द्वार कहा जाता है, स्वतंत्रता से पहले गुना ग्वालियर राज घराने का हिस्सा था। जिस पर सिन्धिया वंश का अधिकार था, यहां के लोगों का मुख्य व्यवसाय कृषि है, यहां की कुल जनसंख्या 24 लाख 93 हजार 675 है, जिसमें से 76 प्रतिशत आबादी गांवों में और 23 प्रतिशत शहरों में निवास करती है।
गुना लोकसभा सीट का इतिहास बड़ा रोचक रहा है। आजाद भारत में हुए सबसे पहले लोकसभा चुनावों में 1951 में इस सीट से हिंदू महासभा के विष्णु गोपाल देशपांडे ने कांग्रेस के गोपीकृष्ण विजयवर्गीय को हराया था। तब पहले परिसीमन के अनुसार यह लोकसभा क्षेत्र मध्यभारत राज्य के अंतर्गत था। उस वक्त देशपांडे ग्वालियर और गुना दोनों सीटों से चुनाव जीते थे बाद में ग्वालियर सीट रिक्त कर गुना सीट अपने पास रखी थी। 1956 में भाषावार राज्यों के पुनर्गठन के फलस्वरूप नया मध्यप्रदेश अस्तित्व में आया जिसके बाद यह क्षेत्र गुना-शिवपुरी लोकसभा क्षेत्र कहलाया और इसी दौरान ग्वालियर राजमहल राजनीति से जुड़ गया क्योंकि महारानी विजयाराजे सिंधिया कांग्रेस में शामिल हो गई और ग्वालियर राजमहल का भारतीय लोकतंत्र के इतिहास में जुड़ाव हो गया।
1957 में उन्होंने कांग्रेस की ओर से चुनाव लड़ा और विष्णु देशपांडे को लगभग 50 हजार वोटों से करारी शिकस्त दी। 1962 में विजयाराजे सिंधिया ने अपना लोकसभा क्षेत्र परिवर्तन कर ग्वालियर से चुनाव लड़ा और विजयश्री हासिल की वहीं गुना शिवपुरी लोकसभा क्षेत्र में कांग्रेस से रामसहाय शिवप्रसाद पांडे ने 20 हजार वोटों से एक बार फिर विष्णु देशपांडे को हरा दिया। लेकिन बाद में मतभेद के चलते राजमाता ने कांग्रेस छोड़ दी और 1967 में वो यहां स्वतंत्र पार्टी से जीती लेकिन 1971 में यहां बड़ा उलटफेर हुआ और विजयाराजे सिंधिया के सुपुत्र माधवराव सिंधिया यहां जनसंघ के टिकट पर चुनाव जीते और इसके बाद उन्होंने 1977 में निर्दलीय रूप से जीत दर्ज की और इसके बाद उन्होंने कांग्रेस ज्वाइन कर ली और साल 1980 के चुनाव में वो यहां से कांग्रेस के टिकट पर जीतकर लोकसभा पहुंचे तो वहीं राजमाता ने भाजपा ज्वाइन कर ली। 1984 में भी यहां कांग्रेस का राज रहा लेकिन 1989 के चुनाव में बाजी पलट गई और यहां भाजपा जीत गई और एक बार फिर से राजमाता विजयराजे सिंधिया यहां पर भारी मतों से विजयी हुईं वो यहां पर 1998 तक सांसद रहीं लेकिन 1999 के चुनाव में कांग्रेस के साथ-साथ माधवराव सिंधिया की इस सीट पर वापसी हुई।
2001 में हुई एक हवाई दुर्घटना में माधवराव सिंधिया का असामायिक निधन हो जाने के बाद उनके पुत्र ज्योतिरादित्य सिंधिया ने 2004 के चुनावों से सक्रिय राजनीति में पदार्पण किया और गुना को ही संसदीय क्षेत्र चुना, जिसके जवाब में गुना की जनता ने अपने युवराज को सर-आंखों पर बिठाया और तब से लेकर अब तक ज्योतिरादित्य सिंधिया ही इस सीट से सांसद हैं और भाजपा यहां जीत के लिए तरस रही है। कहना गलत ना होगा कि आरंभ से लेकर अब तक गुना शिवपुरी लोकसभा क्षेत्र में सिंधिया परिवार का ही वर्चस्व कायम है।