लोकसभा चुनाव 2019: दमोह लोकसभा सीट के बारे में जानिए
नई दिल्ली: मध्यप्रदेश की दमोह लोकसभा सीट से मौजूदा सांसद प्रहलाद सिंह पटेल हैं। साल 2014 के चुनाव में इस सीट पर नंबर 2 पर कांग्रेस और नंबर 3 पर बसपा थी। उस साल यहां कुल वोटरों की संख्या 16 लाख 51 हजार 106 थी, जिसमें से मात्र 9 लाख 12 हजार 80 लोगों ने अपने मतों का प्रयोग किया था, जिसमें पुरुषों की संख्या 5,57,919 और महिलाओं की संख्या 3,54,161 थी। इस सीट पर साल 1989 से यहां भाजपा जीतती आ रही है। बुंदेलखंड के तीन जिलों की आठ विधानसभाओं से मिलकर बनी दमोह लोकसभा सीट पर राष्ट्रीय और स्थानीय मुद्दों पर जातिगत समीकरण हमेशा से प्रभावी रहे हैं। इस लोकसभा क्षेत्र में 1984 के बाद से कांग्रेस जीत के लिए तरस रही है। हिन्दू पौराणिक कथाओं के मुताबिक राजा नल की पत्नी दमयंती के नाम पर ही बुंदेलखंड अंचल में बसे इस शहर का नाम दमोह पड़ा। अकबर के साम्राज्य में यह मालवा सूबे का हिस्सा था। यहां की कुल आबादी 25 लाख 9 हजार 956 है, जिसमें से 82 प्रतिशत आबादी गांवों में रहती है तो वहीं 17 प्रतिशत जनसंख्या शहर में निवास करती है।
साल 1962 के चुनाव में यहां पर कांग्रेस जीती थी, इसके बाद 1967 और 1971 में भी यहां कांग्रेस का ही राज रहा लेकिन 1977 के चुनाव में यहां से भारतीय लोकदल ने जीत दर्ज की लेकिन 1980 के चुनाव में कांग्रेस की यहां वापसी हुई और उसका राज 1984 तक रहा लेकिन उसकी सल्तनत को इस सीट पर खत्म किया भाजपा ने और वो 1989 के चुनाव में पहली बार यहां से जीती और इसके बाद से भाजपा ही यहां जीतती आ रही है, 1991 के चुनाव में यहां से भाजपा के टिकट पर डॉ. रामकृष्ण कुसमरिया एमपी चुने गए और वो लगातार चार बार इस सीट पर सांसद रहे, साल 2004 के चुनाव में यहां भाजपा के टिकट पर चंद्रभान भैया , साल 2009 में शिवराज सिंह लोधी और साल 2014 के चुनाव में प्रहलाद सिंह पटेल सांसद बने।
प्रहलाद सिंह पटेल का लोकसभा में प्रदर्शन
नर्मदा स्वच्छत्ता अभियान के तहत मां नर्मदा को दूषित होने से बचाने के लिए नरसिंहपुर जिले में 110 कि.मी.पदयात्रा करने वाले प्रहलाद सिंह पटेल की छवि जमीनी नेता की है, साल 1989 के चुनाव में ये पहली बार सांसद बने थे। दिसंबर 2018 की रिपोर्ट के मुताबिक पिछले 5 सालों के दौरान इनकी लोकसभा में उपस्थिति 94 प्रतिशत रही है और इस दौरान इन्होंने 158 डिबेट में हिस्सा लिया और 435 प्रश्न पूछे हैं।
इस सीट पर जाति का गुणाभाग ही अब तक की हार-जीत की इबारत लिखता आया है। दमोह क्षेत्र में लोधी मतदाता है और कुर्मी मतदाताओं की संख्या लाखों में है और सबसे अधिक दलित-आदिवासी मतदाता है, जबेरा, देवरी, बंडा और बड़ामलहरा विधानसभा क्षेत्र लोधी बाहुल्य तो वहीं पथरिया, रहली और गढ़ाकोटा में कुर्मी वोटर निर्णायक स्थिति में हैं। यही कारण है कि डॉ. रामकृष्ण कुसमरिया चार बार यहां से सांसद रहे और उसके बाद यहां लोधी जाति के प्रत्याशी सांसद चुने गए, जातीय समीकरण के बीच विकास भी यहां बड़ा चुनावी मुद्दा है, लंबे वक्त से यहां भाजपा का शासन है लेकिन अभी भी यहां विकास की गति काफी धीमी है। पहली लोकसभा से लेकर अब तक इस सीट का यदि इतिहास देखा जाए तो भाजपा और कांग्रेस को छोड़कर किसी तीसरे राजनैतिक दल का कोई प्रभाव यहां नहीं रहा है, ऐसे में क्या एक बार फिर से यहां कमल खिलेगा या फिर जनता पंजे पर निशान लगाएगी, ये देखने वाली बात होगी।