लोकसभा चुनाव 2019- भदोही लोकसभा सीट के बारे में जानिए
नई दिल्ली: उत्तर प्रदेश की भदोही लोकसभा सीट से इस वक्त भारतीय जनता पार्टी के वीरेन्द्र सिंह मस्त सांसद हैं, जिन्होंने साल 2014 में ये सीट बसपा को हराकर हासिल की थी। अपनी आकर्षक कालीनों के लिए पुरे विश्व में मशहूर भदोही हस्तकला के क्षेत्र में एक अलग ही मुकाम रखता है। भदोही में करीब 32 लाख लोग बुनाई के काम से जुड़े हुए है, 'कारपेट सिटी' के रूप के अलावा भदोही अपनी टोकरी और बनारसी साड़ियों की वजह से भी जाना जाता है लेकिन आज भी ये जिला पूर्ण विकास के लिए तरस रहा है।
भदोही लोकसभा सीट, परिचय- प्रमुख बातें
संत रविदास नगर के नाम से विख्यात भदोही 10,56 वर्ग किलोमीटर में फैला है, यहां की साक्षरता दर 57.67% है जिनमें पुरुषों की साक्षरता दर 67.75% और महिलाओं की साक्षरता दर 47.12% है, इस संसदीय सीट में यूपी विधानसभा की पांच सीटें आती है, जिनके नाम हैं प्रतापपुर, ज्ञानपुर, हंडिया, औराई और भदोही, इनमे से औराई की विधानसभा सीट अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है। यह लोकसभा सीट 2008 में परिसीमन के बाद अस्तित्त्व में आई थी। इस सीट पर पहली बार 2009 में आम चुनाव हुए थे, जिसे बहुजन समाज पार्टी के गोरखनाथ पाण्डेय ने जीता था और वो भदोही के पहले एमपी बने थे। साल 2014 में यहां भारतीय जनता पार्टी के वीरेन्द्र सिंह मस्त विजयी हुए।
वीरेन्द्र सिंह मस्त
तीसरी बार लोकसभा के लिए निर्वाचित हुए वीरेन्द्र सिंह सोलहवीं लोकसभा में कृषि सम्बन्धी मामलों की स्थाई समिति के सदस्य भी रहे हैं, पिछले 5 सालों के दौरान उनकी उपस्थिति लोकसभा में 91 प्रतिशत रही है और इन्होंने 26 डिबेट में हिस्सा लिया है और 9 प्रश्न पूछे हैं। उन्हें भदोही की जनता ने इससे पहले 10वीं और 12वीं लोकसभा में भी अपना प्रतिनिधि बनाया था। वे सार्वजनिक उपक्रम, कोयला और गंगा एक्शन प्लान की समितियों भी भूमिका निभा चुके हैं। पेशे से किसान वीरेन्द्र सिंह मस्त भारतीय जनता पार्टी के किसान मोर्चा के अध्यक्ष हैं।
साल 2014 में यहां पर 1834598 मतदाताओं ने अपने मतों का इस्तेमाल किया था, जिसमें पुरुष मतदाताओं की संख्या 55 प्रतिशत और महिला मतदाताओं की संख्या 44 प्रतिशत थी। इस सीट पर नंबर 2 पर बसपा, नंबर 3 पर सपा और नंबर 4 पर JDU और 5 पर कांग्रेस थी। भदोही एक हिंदू बाहुल्य इलाका है, यहां की 86 प्रतिशत आबादी मुस्लिम और 12 प्रतिशत हिंदुओं की है। भाजपा और बसपा के बीच जीत का अंतर मात्र 16 प्रतिशत वोटों का था।
इस सीट पर भाजपा की वापसी काफी हद तक इस बात पर भी निर्भर करेगी कि यहां वीरेन्द्र सिंह ने कितना विकास कार्य किया है। वहीं दूसरी ओर विरोधी दल भी यहां जीतने के लिए हर संभव कोशिश करेंगे लेकिन इस खेल में बाजी उसी के हाथ लगेगी जिसे जनता का प्यार और साथ मिलेगा, अब जनता का मू़ड क्या है, ये तो लोकसभा के चुनावी परिणाम ही बताएंगे लेकिन निसंदेह इस बार इस सीट पर हमें रोचक मुकाबला देखने को मिलेगा।