कपूर ख़ानदान: फ़िल्म संसार का सम्राट, जिसकी अदाकारी पाकिस्तान के लायलपुर से शुरू हुई
1928 में किसी से पैसे उधार लेकर पृथ्वीराज कपूर अदाकारी में अपना भविष्य बनाने के लिए मुंबई पहुंच गए थे.
राज कपूर ने अपनी फ़िल्मों से सोवियत संघ की लोहे की दीवार तोड़ी और उस समाज के हीरो बन गये. राज कपूर ने फ़िल्म को उद्देश्यपूर्ण बनाया, उनके हीरो और हीरोइन निचली जाति के होते थे जबकि विलेन ऊंची जाति से संबंध रखता था.
जब एक विदेशी पत्रकार ने उनसे सवाल किया कि आपकी उम्र कितनी है तो राज कपूर ने जवाब दिया कि "अभी मेरी उम्र सिर्फ़ सात फ़िल्में हैं."
राज कपूर की ज़िंदगी और मौत फ़िल्में ही थी. अपनी ज़िंदगी का एजेंडा उन्होंने फिल्म 'मेरा नाम जोकर' में यूं बयान किया था कि 'जीना यहां मरना यहां, इसके सिवा जाना कहां'.
कपूर ख़ानदान का रिश्ता भारतीय उपमहाद्वीप के फ़िल्म उद्योग से उतना ही पुराना है जितना कि यहां फ़िल्म का इतिहास. राज कपूर के पिता सरस्वती राज कपूर उर्फ पृथ्वीराज कपूर संयुक्त भारत की पहली बोलती फिल्म 'आलम आरा' के सहायक हीरो थे ये फ़िल्म साल 1931 में प्रदर्शित हुई थी.
लेकिन उन्होंने अपनी एक्टिंग का पहला प्रदर्शन लायलपुर से सटे इलाक़े समुंदरी के गली मुहल्ले से की थी. लायलपुर अब पाकिस्तान में है और इसे इसके नये नाम फ़ैसलाबाद से जाना जाता है. पृथ्वीराज ने अपना यह शौक़ लायलपुर के ख़ालसा कॉलेज में जारी रखा. बाद में वे अपने परिवार के साथ पेशावर चले गये जहां उन्होंने वकालत की शिक्षा प्राप्त करने के लिए एडवर्ड्स कॉलेज में दाख़िला ले लिया.
पृथ्वीराज कपूर की अदाकारी की शुरुआत
पृथ्वीराज कपूर के थिएटर की औपचारिक शुरुआत एडवर्ड्स कॉलेज, पेशावर से हुई थी लेकिन वे मुंबई शिफ्ट होने से पहले पेशावर और लायलपुर में अपनी कला का प्रदर्शन करते रहे.
1928 में वे किसी से पैसे उधार लेकर अदाकारी में अपना भविष्य बनाने के लिए मुंबई पहुंच गए. यह आश्चर्य की बात है कि समुंदरी जो अब फ़ैसलाबाद की तहसील है, उसका अधिकतर हिस्सा देहात है, जहां आज भी कला और संस्कृति का न तो कोई मंच है और न ही कोई भविष्य.
एक सदी पहले अदाकारी में युवा पृथ्वीराज किससे प्रभावित हुए थे, यह एक पहेली है क्योंकि उनके पिता दीवान विशेश्वर नाथ कपूर इंडियन इम्पीरियल पुलिस में अधिकारी थे और दादा केशवमल कपूर समुंद्री के तहसीलदार थे यानी आर्ट उन्हें विरासत में नहीं मिला था.
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रोचक बात यह है कि पृथ्वीराज कपूर के पिता हालांकि प्रोफ़ेशनल अदाकार नहीं थे लेकिन उन्होंने साल 1951 में रिलीज़ होने वाली राज कपूर की मशहूर फ़िल्म 'आवारा' में मेहमान अदाकार के तौर पर जज की भूमिका बहुत अच्छे से निभाई थी.
इस तरह कपूर परिवार फ़िल्म संसार का सामान्य और विशेष तौर पर वह घराना है जिसकी पांच पीढ़ियां फ़िल्म के क्षेत्र से जुड़ी हैं. विशेश्वर नाथ कपूर पहली, पृथ्वीराज कपूर दूसरी, राज कपूर तीसरी, ऋषि कपूर चौथी और रणबीर कपूर पांचवी पीढ़ी के रूप में बॉलीवुड पर राज कर रही हैं.
पृथ्वीराज कपूर ऐसे कलाकार थे जो कई पीढ़ियों के प्रिय अभिनेता बने रहे. 'मुग़ल-ए-आज़म' जैसी फ़िल्म में, जिसे हर दृष्टि से एक असाधारण प्रस्तुति माना जाता है, दिलीप कुमार जैसे नामी कलाकार को पृथ्वीराज कपूर के सामने खड़ा करके उपमहाद्वीप के फ़िल्म दर्शकों को ऐसा महसूस कराया गया था कि जैसे सोहराब ने रुस्तम का सामना किया हो.
एक थप्पड़ ने राज कपूर की जिंदगी बदल दी
राज कपूर ने केदार शर्मा की प्रोडक्शन में बतौर ''क्लैपरबॉय'' काम करना शुरू किया था. यहां से कैमरे के पीछे उनके करियर की शरुआत हुई और इस तरह कैमरे के पीछे काम करना कपूर परिवार की रीत बन गया.
राज कपूर से लेकर रणबीर कपूर तक इस परिवार का कोई सदस्य ऐसा नहीं जिसने फ़िल्म इंडस्ट्री में बतौर असिस्टेंट या बतौर टेक्नीशियन काम ना किया हो.
बहुत कम लोग यह जानते हैं कि राज कपूर की किस्मत एक थप्पड़ ने बदली जो उन्हें डायरेक्टर केदार शर्मा ने तब मारा था, जब फ़िल्म के सेट पर राज कपूर क्लैप मारते हुए अपने बाल संवारने लग जाते और क्लैप ठीक से नहीं दे पा रहे थे, इससे डायरेक्टर का पारा हाई हो गया.
केदार शर्मा ने राज कपूर को मारे हुए थप्पड़ की भरपाई उन्हें अपनी अगली फ़िल्म 'नीलकमल' में बतौर हीरो कास्ट करके किया जिसमें उनके हीरोइन मधुबाला थीं. इस तरह राज कपूर एक ही समय में एक्टर, डायरेक्टर और प्रोड्यूसर के तौर पर काम करने लगे.
फिर वही हुआ जिसका डर था
आवारा, श्री 420, चोरी-चोरी, बरसात, अंदाज़ और आग जैसी फ़िल्मों ने राज कपूर को शोहरत की बुलंदियों पर पहुंचा दिया.
यह बात उल्लेखनीय है कि होम प्रोडक्शन से पहले 'अंदाज़' के अलावा राज कपूर की सभी फ़िल्में औसत दर्जे की फ़िल्में कहलाई थीं.
'अंदाज़' एक ब्लॉकबस्टर फ़िल्म थी जिसमें राज कपूर के सामने नरगिस और दिलीप कुमार जैसे बड़े कलाकार थे. उस समय इसमें भारतीय सिनेमा की सबसे बड़ी त्रिमूर्ति थी. कुछ सफल फ़िल्मों के बाद राज कपूर ने फ़ार्मूला फ़िल्में बनाने के बजाय प्रयोग करने को प्राथमिकता दी और वे फ़िल्मों में नए विषय लेकर आये. फ़िल्म बूट पॉलिश, जागते रहो, जिस देश में गंगा बहती है और अब दिल्ली दूर नहीं जैसी फ़िल्में उन्हीं प्रयोगों की कड़ी में हैं.
साठ के दशक में जब राज कपूर बहुत सी सफलताएं प्राप्त कर चुके थे तो उनके मन में एक ऐसी फ़िल्म बनाने का विचार आया जो उनके जीवन को दर्शाए और वह फ़िल्म थी 'मेरा नाम जोकर'.
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'मेरा नाम जोकर' सिर्फ़ एक फ़िल्म नहीं एक बहुत बड़ा रिस्क था जो राज कपूर के टाइटेनिक को डुबो सकता था. उन्होंने ख़तरों से डरे बगैर इस हाई बजट प्रोजेक्ट को शुरू किया. अपने संबंधों का लाभ उठाते हुए चीन और रूस से सर्कस टीमों को बुलाया और एक बड़े कैनवास पर रंग बिखेरने शुरू किये.
इस फ़िल्म में उस समय के सभी सुपरस्टार नजर आए. यह एक ऐसा प्रोजेक्ट था जो सिमटने ने के बजाय फैलता गया, यहां तक कि फ़िल्म का बजट और समय दोनों बढ़ गए. और फिर वही हुआ जिसका डर था. यह फ़िल्म बॉक्स ऑफ़िस पर हिट होने के बजाय फ्लॉप साबित हुई. आरके प्रोडक्शन को भारी नुकसान उठाना पड़ा.
किस फ़िल्म ने राज कपूर के घाटे की भरपाई कर दी?
आलोचकों और फ़िल्म विशेषज्ञों को यह लगता था कि राज कपूर दोबारा अपने पैरों पर खड़े नहीं हो पाएंगे लेकिन फ़िल्म के घाटे ने राज कपूर की वास्तविक क्षमता को उजागर किया.
राज कपूर की कामयाबी की एक बड़ी वजह यह थी कि वो टीम बनाकर काम करते थे. आरके फ़िल्म्स के हर डिपार्टमेंट में अपने काम के 'पीर कारीगर' शामिल थे. जैसे कि संगीत विभाग शंकर जयकिशन ने संभाल रखा था, गीतकारों में शलैंद्र और हसरत जयपुरी शामिल थे और गायकों में मुकेश, मन्ना डे, लता मंगेशकर और लेखकों की टीम में ख़्वाजा अहमद अब्बास और वीपी साठे शामिल थे.
बॉक्स ऑफ़िस पर 'मेरा नाम जोकर' की विफलता के फौरन बाद उन्होंने अपनी टीम को इकट्ठा किया और अगली फ]fल्म का टास्क दिया. राज कपूर इस फ़िल्म के लिए इस तरह तैयार थे जैसे कि यह उनका बैक-अप प्लान हो.
यह फ़िल्म एक युवा प्रेम की कहानी थी जिसमें वे अपने बेटे ऋषि कपूर को लॉन्च करने वाले थे. फिल्म का नाम था 'बॉबी' और इस फ़िल्म से डिम्पल कापड़िया के कामयाब करियर की शुरुआत हुई.
यह फ़िल्म 1973 में रिलीज़ हुई. इस फ़िल्म ने इतना बिज़नेज किया कि कंपनी के सभी घाटे पूरे हो गये. यह फ़िल्म न सिर्फ ब्लॉकबस्टर बल्कि ट्रेंड सेटर साबित हुई जिसने रोमांस आधारित फिल्मों का नक़्शा बदल दिया.
फ़िल्म 'मेरा नाम जोकर' भले ही बॉक्स ऑफिस हिट नहीं थी लेकिन यह फ़िल्म आज तक अभिनेताओं और फ़िल्मकारों के लिए एक सबक़ जैसी है. देखा जाए तो राज कपूर की हर फ़िल्म एक रिस्क थी.
वो एक प्रगतिशील व्यक्ति थे. जिन संवदेनशील विषयों पर वो सिल्वर स्क्रीन पर लेकर आये, उस ज़माने में कोई सोच भी नहीं सकता था. انڈین فلموں کو متعارف کروایا۔
नेहरू को रूस में राज कपूर के बारे में क्या बताया गया?
राज कपूर ने फ़िल्म मीडियम को सिर्फ दौलत और नाम कमाने का माध्यम नहीं बनाया बल्कि इससे भारतीय समाज को बदलने की कोशिश भी की.
राज कपूर को अपनी फ़िल्म के ज़रिए सोवियत समाज के चारों तरफ खड़ी लोहे की दीवार को काटते हुए उस समाज के हीरो बन गये.
साठ के दशक में भारतीय प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू रूस गये तो वहां बीसियों लोगों ने उनसे राज कपूर के बारे में पूछताछ की. नेहरू जब वापस भारत पहुंचे तो उन्होंने यह बात पृथ्वीराज को बताते हुए कहा कि "आपके बेटे राज कपूर ने भारत का नाम बुलंद किया है, जिसपर हमें गर्व है."
राज कपूर ने भारतीय फ़िल्म को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर दुनिया से जोड़ा और रूस, हंगरी, पोलैंड, क्यूबा, चीन, जापान और अमेरिका समेत अन्य देशों में भारतीय फिल्मों को परिचित कराया.
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राज कपूर के हीरो, हीरोइन निचली जाति और विलेन सवर्ण क्यों होते थे?
राज कूपर की फ़िल्मों के विषय बेबाक होते थे और उनकी जड़ें अपने ही समाज से जुड़ी होती थीं. उनके हीरो और हीरोइन दबे-कुचले वर्ग से होते जबकि विलेन ऊंची जाति से संबंध रखते थे.
सत्यम शिवम सुन्दरम, राम तेरी गंगा मैली और प्रेम रोग ऐसी फ़िल्में हैं जिनके कारण उन्हें अथाह प्रशंसा मिली, वहीं उनकी बहुत आलोचना भी हुई.
स्क्रिप्ट हो, फ़िल्मांकन हो, संगीत हो या प्रोसेसिंग, राज कपूर हरे क्षेत्र की ख़ुद निगरानी करते थे. मेहनत के मामले में उनके मापदंड अपने पिता से भी अधिक कठोर थे. उन्होंने अपने बच्चों के लिए आरके स्टूडियो में एक नियम बनाया था कि पहले किसी और स्टूडियो में काम सीखें, फिर आरके स्टूडियो में क़दम रखें.
राज कपूर की शादी अपनी कज़न कृष्णा कपूर से हुई जिनसे उनके पांच बच्चे पैदा हुए. इनमें तीन बेटे रंधीर कपूर, ऋषि कपूर और राजीव कपूर जबकि दो बेटियां रीमा कपूर और रीतू कपूर शामिल हैं.
रीमा कपूर शादी के बाद रीमा जैन और रीतू कपूर शादी के बाद रीतू नंदा बन गयीं. बाद में रीतू नंदा अमिताभ बच्चन की समधन बनीं.
राज कपूर और कृष्णा कूपर की शादी से बॉलीवुड में कुछ नये अदाकारों का इज़ाफ़ा हुआ जिनमें राजेन्द्र नाथ, प्रेम नाथ और नरेन्द्र नाथ शामिल हैं जोकि कृष्णा कूपर के भाई थे.
शम्मी कपूर को भारत का 'एल्विस प्रेसले' कहा गया
राज कपूर के छोटे भाई शम्मी कपूर एक जुदा अंदाज़ लिये फ़िल्म इंडस्ट्री में आये.
अछूते अंदाज़ के साथ-साथ शम्मी कपूर ने गानों के फ़िल्मांकन का एक नया ट्रेंड परिचित करवाया. उन्होंने धुनों के साथ अपने लचकदार बदन को ऐसा मिलाया कि हर कोई उनका दीवाना हो गया और उन्हें भारत का एल्विस प्रेसले कहा गया. शम्मी कपूर ने आख़िरी बार 2011 में रिलीज़ हाने वाली ब्लॉकबस्टर फिल्म 'रॉक स्टार' में अपने जलवे बिखेरे थे.
गीता बाली और शम्मी कपूर के दो बच्चे थे जिनमें बेटी कंचन और बेटा आदित्य राज कपूर शामिल हैं. आदित्य राज कपूर कुछ फ़िल्मों में अभिनय के बाद बतौर फ़िल्म निर्माता काम कर रहे हैं.
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शशि कपूर को 'हैंडसम कपूर' कहा गया
पृथ्वीराज कपूर के तीसरे बेटे बलबीर राज कपूर थे जिनका फ़िल्मी नाम शशि कपूर था जबकि परिवार में उन्हें 'हैंडसम कपूर' कहा जाता था.
रोचक बात यह है कि शशि कपूर को बतौर हीरो आरके फ़िल्म ने नहीं बल्कि यश चोपड़ा ने लॉन्च किया था. शम्मी कपूर की तरह शुरुआती फ़िल्मों में शशि कपूर को भी बहुत आलोचना का सामना करना पड़ा.
फ़िल्म 'जब जब फूल खिले' शशि कपूर की पहली सफल फ़िल्म थी जिसके बाद हिट फ़िल्मों की एक लाइन लग गयी और फिर वह समय आया जब शशि कपूर की हॉलीवुड से काम का बुलावा मिलने लगा.
याद रहे कि शशि कपूर हॉलीवुड में काम करने वाले पहले अभिनेता थे. उन्होंने ब्रितानी अदाकारा जेनिफर केंडल से शादी की जिनसे उनके दो बेटे कुणाल कपूर और किरण कपूर जबकि एक बेटी संजना कपूर हैं.
ये तीनों बहन भाई फ़िल्मों में अदाकारी के जौहर दिखा चुके हैं. शशि कपूर के नाम पर 'सत्यम शिवम सुंदरम', 'दीवार' और 'कभी-कभी' जैसी कई अमर फ़िल्में हैं.
राज कपूर के बेटों की सफलता और विफलता
पृथ्वीराज कपूर का लगाया हुआ पौधा एक विशाल वृक्ष बन चुका था और अब उसकी शाखाएं फैल रही थीं.
कपूर परिवार की चौथी पीढ़ी की शुरुआत राज कपूर की संतान से हुई. राज कपूर के तीन बेटों में से रंधीर कपूर और ऋषि कपूर अदाकारी में कामायाब रहे जबकि तीसरे बेटे राजीव कपूर सफल अभिनेता के बजाय अच्छे फ़िल्म निर्माता साबित हुए.
रंधीर कपूर ने बतौर बाल कलाकार अपने पिता की सुपर हिट फिल्म 'श्री 420' में काम किया. जीत, कल आज और कल, हीरा लाल और हाथ की सफाई जैसी कई सुपरहिट फिल्में रंधीर कपूर के नाम हैं.
उन्होंने अपने समय की खूबसूरत हीरोइन बबीता कपूर से शादी की जिनसे उनकी दो बेटियां हैं- करिश्मा कपूर और करीना कपूर. इनकी गिनती भी बेहतरीन अदाकाराओं में होती है.
राज कपूर के दूसरे बेटे ऋषि कपूर एक बेहतरीन और कामयाब अदाकार साबित हुए. फ़िल्म विशेषज्ञों के अनुसार राज कपूर के बाद कपूर परिवार में अदाकारी का सबसे अधिक जुनून अगर किसी में पाया जाता था तो वह ऋषि कपूर थे.
'मेरा नाम जोकर' की कास्टिंग के समय जब राज कपूर ने अपनी पत्नी से ऋषि कपूर को कास्ट करने की इच्छा जतायी तो दूसरे कमरे में बैठे ऋषि कपूर यह बातचीत सुन रहे थे. वे तुरंत उठे और काग़ज़ क़लम पकड़ कर उन्होंने ऑटोग्राफ देने की प्रैक्टिस शुरू कर दी. उनके आत्मविश्वास का स्तर ऐसा था. उन्होंने अपने पिता के ड्रीम प्रोजेक्ट 'मेरा नाम जोकर' से बतौर बाल कलाकार करियर शुरू किया और बतौर हीरो उनकी पहली फ़िल्म बॉबी थी.
यह फ़िल्म एक ब्लॉकबस्टर थी जिसकी वजह से ऋषि कपूर को बेहतरी अदाकार का एवॉर्ड भी मिला.
ऋषि कपूर की शादी अभिनेत्री नीतू सिंह से हुई और उनके यहां दो बच्चे रणबीर कपूर और ऋद्धिमा कपूर पैदा हुए.
इनके नाम पर खेल-खेल में, अमर अकबर एंथोनी, हम किसी से कम नहीं, दीवाना और बोल राधा बोल जैसी कई अमर फ़िल्में हैं. ऋषि कपूर ने अपने करियर के आख़िरी दौर में अग्निपथ 2, 102 नॉट आउट और मुल्क जैसी फ़िल्मों में बेहतरीन अभिनय करके अलोचकों की प्रशंसा बटोरी.
राज कपूर के तीसरे बेटे राजीव कपूर का बतौर एक्टर फ़िल्मी करियर कुछ खास नहीं रहा जिसके कारण वे जल्द ही अदाकारी से किनारा करके फ़िल्म निर्माता बन गये. उन्होंने दर्जन भर फ़िल्मों में काम किया जिनमें सिर्फ 'राम तेरी गंगा मैली' उनकी उल्लेखनीय फ़िल्म है.
फ़िल्म हिना जिसे बनाने के दौरान राज कपूर चल बसे थे, इस फ़िल्म को बाद में राजीव कपूर ने ही पूरा किया था. राज कपूर की बेटी रीमा जैन के दोनों बेटे अरमान जैन और आदर जैन भी अदाकारी के पेशे से जुड़े रहे.
कपूर परिवार की पांचवीं पीढ़ी की शुरुआत
कपूर परिवार की पांचवीं पीढ़ी करिश्मा, करीना और रणबीर कपूर हैं.
इस पीढ़ी की शुरुआत रंधीर कपूर की बड़ी बेटी करिश्मा कपूर से हुई. फ़िल्म उद्योग में करिश्मा कपूर की एंट्री ने तहलका मचा दिया था.
बबीता और नीतू सिंह समेत जिन अदाकाराओं ने कपूर परिवार में शादी की, वे बतौर हीरोइन दोबारा फ़िल्मी पर्दे पर नज़र नहीं आयीं, इसलिए यह आम राय बन गयी कि शायद कपूर परिवार अपनी महिलाओं को फ़िल्मों में काम करने की अनुमति नहीं देता.
यह राय उस समय ग़लत साबित हुई जब करिश्मा कपूर को लॉन्च किया गया. वह एक प्रतिभावान अभिनेत्री तो थीं ही मगर उन्होंने डांस में भी माधुरी जैसी अभिनेत्रियों को अच्छी चुनौती दी.
उन्होंने 60 से अधिक फिल्मों में काम किया है जिनमें से अधिकतर फ़िल्में सफल हुईं.
अब वे अलग-अलग रियलिटी शोज़ में जज का काम अंजाम देते नज़र आती हैं. करिश्मा के बाद उनकी छोटी बहन करीना कपूर ने 'रिफ्यूजी' फ़िल्म से अपनी चमक बिखेरी.
साल 2000 से लेकर आजतक उनकी गिनती प्रथम पंक्ति की अभिनेत्रियों में होती है. वो बॉलीवुड की उन कुछ हीरोइनों में शामिल हैं जिनकी शादी के बाद भी बॉक्स ऑफिस पोज़िशन प्रभावित नहीं हुई.
ऋषि कपूर के बाद एक लंबे अरसे तक प्रशंसकों को कपूर परिवार के किसी हीरो का इंतज़ार रहा और और यह इंतज़ार रणबीर कबूर की एंट्री से ख़त्म हुआ.
रणबीर कपूर की प्रतिभा को देखकर लगता है कि वो अपने सभी बड़ों का फ्यूज़न हैं. उनकी गिनती अभी के सफल अभिनताओं में होती है. कपूर परिवार की पांच पीढ़ियों में एक से बढ़कर एक सफल अभिनेता और फ़िल्म निर्माता हुए लेकिन कोई भी शोमैन के क़द तक नहीं पहुंच पाया.
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