नागपुर में राष्ट्रवाद को लेकर संघ को प्रणब मुखर्जी ने दी ये सीख, संबोधन की बड़ी बातें
नागपुर। पूर्व राष्ट्रपति और कांग्रेस के कद्दावर नेता प्रणब मुखर्जी गुरुवार को नागपुर स्थित राष्ट्रीय स्वयंसेवक (आरएसएस) के कार्यक्रम में शामिल हुए। प्रणब मुखर्जी ने अपने इस भाषण के दौरान कई बार राष्ट्रवाद शब्द का जिक्र किया। प्रणब मुखर्जी ने कहा, 'मैं यहां पर राष्ट्र, राष्ट्रवाद और देशभक्ति समझाने आया हूं।' पूर्व राष्ट्रपति ने अपने भाषण में तिलक, टैगोर, महात्मा गांधी, जवाहरलाल नेहरू समेत अन्य विद्वानों को कोट करते हुए राष्ट्रवाद और देश पर अपनी राय रखी।
राष्ट्रवाद किसी भी देश की पहचान है
प्रणब मुखर्जी ने कहा, 'राष्ट्रवाद किसी भी देश की पहचान है। देशभक्ति का मतलब देश की प्रगति में आस्था है। उन्होंने कहा कि राष्ट्रवाद सार्वभौमिक दर्शन 'वसुधैव कुटुम्बकम्, सर्वे भवन्तु सुखिनः, सर्वे सन्तु निरामयाः' से निकला है। प्रणव मुखर्जी ने कहा कि, भारत के दरवाजे सभी के लिए खुले हुए हैं। भारत यूरोप और अन्य दुनिया से पहले ही एक देश था। अगर हम भेदभाव और नफरत करेंगे, तो यह हमारी पहचान के लिए खतरा बन जाएगा।
हमारा राष्ट्रवाद किसी क्षेत्र, भाषा या धर्म विशेष के साथ बंधा हुआ नहीं है
प्रणब मुखर्जी ने कहा कि हमारे राष्ट्रवाद में विभिन्न विचारों का सम्मिलन हुआ है। उन्होंने कहा कि घृणा और असहिष्णुता से हमारी राष्ट्रीयता कमजोर होती है। मुखर्जी ने राष्ट्र की अवधारणा को लेकर सुरेंद्र नाथ बनर्जी तथा बालगंगाधर तिलक के विचारों का उल्लेख करते हुए कहा कि हमारा राष्ट्रवाद किसी क्षेत्र, भाषा या धर्म विशेष के साथ बंधा हुआ नहीं है। उन्होंने कहा कि हमारे लिए लोकतंत्र सबसे महत्वपूर्ण मार्गदशर्क है।
भेदभाव और नफरत से भारत की पहचान को खतरा है
प्रणब मुखर्जी ने कहा कि, भारत की आत्मा सहिष्णुता में बसती है। इसमें अलग रंग, अलग भाषा, अलग पहचान है। हिन्दू, मुस्लिम, सिख, इसाई की वजह से यह देश बना है। भेदभाव और नफरत से भारत की पहचान को खतरा है। नेहरू ने कहा था कि सबका साथ जरूरी है। नफरत से देश को सिर्फ नुकसान पहुंचा है। उन्होंने कहा कि, बातचीत से ही विभिन्न विचाराधारा के लोगों की समस्याओं का समाधान संभव है। हमें लोकतंत्र गिफ्ट के रूप में नहीं मिला।
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