Harekala hajabba: संतरे बेचने वाले 'अक्षर संत' को राष्ट्रपति से मिला पद्म श्री सम्मान, जानिए उनके बारे में
नई दिल्ली, 8 नवंबर: राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने कर्नाटक के एक फल विक्रेता हरेकला हजब्बा को सामाजिक कार्यों के लिए पद्म श्री सम्मान से सम्मानित किया है। पद्म पुरस्कार की आधिकारिक वेबसाइट पर हरेकला हजब्बा का परिचय देते हुए लिखा गया है, 'अशिक्षित फल विक्रेता, जिसने अपना जीवन और जीवनभर की कमाई कर्नाटक के दक्षिण कन्नड़ जिले के अपने गांव न्यूपाड़ापू के गरीब बच्चों की शिक्षा के लिए समर्पित कर दिया।' उन्हें यह पुरस्कार देने की घोषणा पिछले साल 25 जनवरी को ही की गई थी, लेकिन कोरोना महामारी की वजह से यह समारोह नहीं हो पाया था।
संतरे बेचने वाले 'अक्षर संत' को मिला पद्म श्री
देश के राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के आधिकारिक ट्विटर हैंडल से पद्म श्री सम्मान पाने वाले एक सामाजिक कार्यकर्ता हरेकला हजब्बा की तस्वीर शेयर की गई है। इसमें उनके बारे में जानकारी दी गई है कि हजब्बा कर्नाटक के मैंगलोर में एक संतरा विक्रेता हैं, जिन्होंने फल बेचकर पैसे जुटाए और अपने गांव में बच्चों के लिए एक स्कूल बनवाया। कर्नाटक के दक्षिण कन्नड़ जिले के न्यूपाड़ापू गांव के रहने वाले हरेकला हजब्बा ने ना सिर्फ अपनी गाढ़ी कमाई स्कूल खोलने में लगाई, बल्कि वह अपनी छोटी बचत का एक हिस्सा भी स्कूल के विकास के लिए समर्पित करते रहे। उन्हें यह पुरस्कार देने की घोषणा पिछले साल जनवरी में ही की गई थी, लेकिन कोविड-19 महामारी के चलते यह समारोह लटक गया था।
अपनी कमाई गरीब बच्चों की शिक्षा पर लगाई
हरेकला हजब्बा जिन्हें खुद कभी भी औपचारिक शिक्षा नहीं मिल पाई, कर्नाटक में उनकी पहचान ग्रामीण शिक्षा में क्रांति लाने के लिए होती है। उन्होंने अपनी छोटी कमाई से जिस स्कूल का सपना देखा, बाद में सरकारी मदद और लोगों की सहायता से वह तैयार हुआ और उसे हजब्बा स्कूल के नाम से जाना जाने लगा। मैंगलोर शहर में उन्हें प्यार से 'अक्षर संत' कहकर बुलाया जाता है। 65 वर्षीय हजब्बा गरीब बच्चों के लिए ही अपने गांव में प्राथमिक पाठशाला की शुरुआत की थी। 2012 में बीबीसी को दिए एक इंटरव्यू में उन्होंने कहा था, 'शिक्षा की कमी के चलते मुझे पहली बार तब कमी महसूस हुई थी, जब एक विदेशी ने मुझ से अंग्रेजी में फलों के दाम पूछे। मैं नहीं जानता था कि वह क्या पूछ रहा था।'
राशन लेने के लिए कतार में थे तो मिली पद्म सम्मान मिलने की सूचना
हजब्बा खुद न पढ़ सकते हैं और ना ही लिख सकते हैं, लेकिन इससे अपने गांव के बच्चों को शिक्षित देखने का उनका हौसला कभी नहीं टूटा। साल 2000 की बात है। उनकी रोजाना की कमाई करीब 150 रुपये थी। लेकिन, उन्होंने बच्चों के लिए एक मस्जिद में प्राइमरी स्कूल की शुरुआत करवाई। जब बच्चों की संख्या बढ़ी तो इसे दूसरी इमारत में शिफ्ट किया गया। आईएफएस प्रवीण कासवान ने पिछले साल उनके संतरे बेचने वाली एक तस्वीर शेयर करते हुए ट्विटर पर लिखा था, 'अधिकारियों ने जब उन्हें पद्म श्री दिए जाने के बारे में जानकारी दी तो हरेकला हजब्बा एक राशन दुकान के बाहर कतार में खड़े थे। '
पहले भी मिल चुके हैं कई प्रतिष्ठित सम्मान
9 साल पहले नवंबर, 2012 में बीबीसी ने उनपर 'अनलेटर्ड फ्रूट सेलर्स इंडियन एजुकेशन ड्रीम' के टाइटल से एक लेख प्रकाशित किया था। सामाजिक कार्यकर्ता और लेखक इस्मत पजीर ने उनके जीवन पर 'हरेकला हजब्बा जीवन चरित्र' नाम से किताब प्रकाशित की है। उनके जीवन की कहानी को मैंगलोर यूनिवर्सिटी के सिलेबस में भी शामिल किया जा चुका है। सीएनएन-आईबीएन और रिलायंस फाउंडेशन की तरफ से वह 'रीयल हीरो' का पुरस्कार भी जीत चुके हैं। कन्नड़ प्रभा नाम के एक स्थानीय अखबार उन्हें पर्सन ऑफ द ईयर का सम्मान भी दे चुका है।