नज़रिया: 'धर्म का सवाल राहुल से ही नहीं सोनिया से भी पूछा गया था'
गुजरात चुनावों के लिए प्रचार के दौरान बुधवार को जब राहुल गांधी सोमनाथ मंदिर गए तो एक बार फिर से उनके धर्म पर बहस शुरू हो गई है.
जैसे कभी सोनिया गांधी के धर्म को लेकर सवाल उठा करते थे, वैसे ही अब उनके बेटे राहुल गांधी के मजहब को लेकर सवाल पूछे जा रहे हैं. बुधवार को जब राहुल गांधी सोमनाथ मंदिर गए तो फिर से इस बात पर बहस शुरू हो गई है.
इस ऐतिहासिक मंदर के रजिस्टर में कांग्रेस के भावी अध्यक्ष का नाम ग़ैर-हिंदू के तौर पर लिखने के साथ ही ट्विटर और दूसरे सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म्स पर माहौल गर्म हो गया. इस मंदिर में सभी ग़ैर-हिंदुओं को अपनी धार्मिक पहचान जाहिर करनी होती है.
बीजेपी आईटी सेल के चीफ़ अमित मालवीय ने ट्वीट करने में जरा भी देरी नहीं की, "आख़िरकार राहुल गांधी अपने धर्म पर तस्वीर साफ़ कर दी. राहुल गांधी ने सोमनाथ मंदिर में उस रजिस्टर पर दस्तख़त किए जो ग़ैर-हिंदुओं के लिए था."
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https://twitter.com/malviyamit/status/935806719728472064
आस्था का सवाल
अमित मालवीय ने पूछा, "आप अगर सोमनाथ मंदिर जाएँ, और आप हिन्दू धर्म से नहीं हैं, तो आपको एक रजिस्टर में इस बात का ख़ुलासा करना पड़ता है. आज राहुल गांधी ने उसी रजिस्टर में अपने नाम को जोड़ दिया. देश के साथ धर्म को ले कर ऐसा छलावा?"
कांग्रेस ने अपने आधिकारिक ट्विटर हैंडल से कहा, "सोमनाथ मंदिर में केवल एक विजिटर बुक थी और कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने उसी पर दस्तख़त किए. कोई भी दूसरी तस्वीर जो शेयर की जा रही है, वो फर्जी है. मुश्किल समय में मुश्किल रास्ते अपनाने पड़ते हैं."
टीवी पत्रकार ब्रजेश कुमार सिंह ने कहा, "राहुल के सोमनाथ मंदिर यात्रा के दौरान उनके मीडिया कोर्डिनेटर मनोज त्यागी ने राहुल गांधी का नाम अहमद पटेल के साथ उस विशेष रजिस्टर में लिखा जो मंदिर आने वाले ग़ैर-हिंदुओं के लिए रखा गया है. चुनावी मौसम में एक बहुत बड़ी गड़बड़ी हुई."
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सोमनाथ मंदिर
मनोज त्यागी ने भी एक बयान जारी किया, "मीडिया वालों को सोमनाथ मंदिर के भीतर ले जाने के लिए मैंने केवल अपना नाम रजिस्टर पर लिखा था. उस वक्त रजिस्टर पर न तो राहुल गांधी का नाम था और न ही अहमद पटेल का. उनके नाम बाद में जोड़े गए होंगे."
लेकिन सोमनाथ मंदिर के जनसंपर्क अधिकारी ध्रुव जोशी ने ज़ोर देकर कहा कि ये मनोज त्यागी ने किया है. उनका कहना था, राहुल गांधी के मीडिया कोर्डिनेटर मनोज त्यागी ने अहमद पटेल और राहुल गांधी के नाम ग़ैर-हिंदुओं वाले रजिस्टर में लिखे. नियमों के तहत प्रवेश द्वार के पास की सुरक्षा चौकी पर सभी ग़ैर-हिंदू आगंतुकों के लिए अपना नाम लिखना ज़रूरी है.
कुछ जगहों पर ये बहस शुरू हो गई है कि क्या राहुल गांधी हिंदू हैं या नहीं. राहुल के लिए ये याद करना ज़रूरी है कि जब राजीव गांधी राजनीति में आ रहे थे तो सोनिया गांधी को भी इस सवाल से गुजरना पड़ा था. साल 1998 में राजनीति में आने के बाद से ही सोनिया गांधी अपने धर्म के मुद्दे पर किसी बहस में पड़ने से इनकार करती रही हैं.
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सोनिया और राजीव
हक़ीकत में आलोचक मानते हैं कि राजनीतिक मजबूरियों की वजह से सोनिया का झुकाव हिंदुत्व की तरफ़ बढ़ा. साल 1999 के आम चुनाव में जब संघ परिवार उनके विदेशी मूल और ईसाई धर्म के मुद्दे पर 'राम राज्य' बनाम रोम राज्य की मुहिम चला रहा था तो भारत के रोमन कैथोलिक ईसाई एसोसिएशन ने अप्रत्याशित रूप से इस बात को ख़ारिज किया कि सोनिया गांधी कैथोलिक थीं.
शादी के बाद राजीव गांधी जब भी किसी पूजा-पाठ की जगह पर जाते थे, सोनिया उनके साथ रहती थीं. उन्होंने सिर पर आंचल रखा यहां तक कि पंडित-पुजारियों के पैर भी छुए. साल 1989 के चुनावों से पहले जब राजीव गांधी देवराहा बाबा से मिले तो वे उनके साथ थीं. उन्होंने झुककर देवराहा बाबा के पैर भी छुए.
देवराहा बाबा लकड़ी के एक मंच पर रहते थे जो ज़मीन से छह फुट ऊंचा बना हुआ था. देवराहा बाबा के आशीर्वाद देने का तरीका भी अनूठा था. वे श्रद्धालु को पैर से मारकर आशीर्वाद देते थे. राजीव और सोनिया गुजरात के अंबाजी मंदिर गए थे. अंबाजी मंदिर की ये सोनिया गांधी की दूसरी यात्रा थी.
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धर्मनिरपेक्षता की गारंटी
इससे पहले 1979 में उन्हें इंदिरा गांधी अपने साथ ले गई थीं. 1979-80 का चुनाव इंदिरा गांधी के लिए करो या मरो का चुनाव था. कहते हैं कि अंबाजी से इंदिरा गांधी को आशीर्वाद मिला और वे सत्ता में वापस लौटीं. साल 1998 के लोकसभा चुनाव में सोनिया गांधी ने कांग्रेस अध्यक्ष की हैसियत से आंध्र प्रदेश के तिरुपति मंदिर में पूजा की.
उन्होंने वहां लिखा कि वे अपने पति और सास के धर्म का पालन करती हैं. हालांकि सोनिया ये कहने से बचीं कि वो एक हिंदू हैं. उनके समर्थन और तिरुपति मंदिर के ट्रस्ट के पूर्व चेयरमैन सुब्बी रामी रेड्डी ने सोनिया के दर्शन का इंतज़ाम किया था. सोनिया को बालाजी का आशीर्वाद मिला.
सोनिया की तिरुपति यात्रा के फौरन बाद कांग्रेस वर्किंग कमिटी ने एक प्रस्ताव पारित कर कहा कि 'हिंदुत्व भारत में धर्मनिरपेक्षता की सबसे असरदार गारंटी है.' साल 1989 में जब राजीव के काठमांडू दौरे के समय सोनिया उनके साथ थीं. इस दौरे को भारत-नेपाल संबंधों को पटरी पर लाने के लिहाज से बेहद अहम माना जा रहा था.
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पशुपतिनाथ मंदिर में...
उस वक्त नेपाल दुनिया की एकमात्र हिंदू राजशाही वाला देश था. ऐतिहासिक पशुपतिनाथ मंदिर जाने के राजीव गांधी के फ़ैसले तक राजीव और किंग बीरेंद्र के बीच सब कुछ ठीक चल रहा था. तिरुपति और पुरी के मंदिरों की तरह ही पशुपतिनाथ मंदिर में भी ग़ैर-हिंदुओं के जाने पर पाबंदी है.
राजीव सोनिया को साथ ले जाने पर ज़ोर दिया लेकिन पशुपतिनाथ मंदिर के पुजारी उन्हें कोई छूट देने के लिए तैयार नहीं हुए. राजा बीरेंद्र ने भी पुजारियों को किसी तरह का आदेश देने में अपनी असमर्थता जाहिर की. ऐसा कहा जाता है कि राजा बीरेंद्र की पत्नी रानी ऐश्वर्या पशुपतिनाथ मंदिर के ट्रस्ट के मामलों में ख़ासा दख़ल रखती थीं.
और रानी ऐश्वर्या ने ही सोनिया गांधी को मंदिर में न जाने देने को लेकर कड़ा रुख अपनाया था. माना जाता है कि राजीव ने इस घटना को अपने अनादर के तौर पर लिया. उन्हें लगा कि राजा बीरेंद्र ने उन्हें अपने तरीके से नीचा दिखाया. राजीव पशुपतिनाथ मंदिर से बिना पूजा किए ही लौट गए.
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विदेशी मूल का मुद्दा
राजीव की इस यात्रा के बाद दोनों देशों के संबंध सुधरने के बजाय और बिगड़ गए. नेपाल की आर्थिक नाकेबंदी कर दी गई और उससे नेपाल पर बहुत बुरा असर पड़ा. वहां भारत विरोधी भावनाएं भड़कने लगीं और राजा बीरेंद्र पर राजशाही विरोधी ताक़तों का दबाव बढ़ने लगा.
फिर उस समय के विदेश सचिव के नटवर सिंह ने गुप्त रूप से नेपाल का दौरा किया और राजा बीरेंद्र से उनकी सीक्रेट मीटिंग और इसके बाद हालात सुधरे. जनवरी, 2001 में कांग्रेस अध्यक्ष ने इलाहाबाद के कुंभ में पवित्र स्नान किया. उन्होंने कुंभ स्नान कर दो संदेश देने की कोशिश की.
पहला ये कि उन्होंने अपने विदेशी मूल के मुद्दे को शांत करना चाहती थीं और दूसरा ये कि उन्होंने इसके साथ ही संघ के हिंदुत्व का उदारवादी विकल्प पेश करने की कोशिश की. गंगा पूजा, गणपति पूजा, कुल देवता पूजा और त्रिवेणी पूजा करतीं सोनिया गांधी की तस्वीरें खूब शेयर की गईं.
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सोनिया का भरोसा
सोनिया गांधी आज भी अपने हाथ में लाल धागा बांधती हैं जो उन्हें एक हिंदू पुजारी ने दिया था. उन्हें इस लाल धागे पर बहुत भरोसा है. सोनिया को लगता है कि ये धागा हर बुरी ताक़त से उनकी हिफाज़त करेगा. परिवार में जब भी कोई अवसर होता है, सोनिया गांधी बनारस से अपने पारिवारिक पंडित को पूजा के लिए बुलाती हैं.
जब प्रियंका गांधी के बेटे रेहान का जन्म हुआ था तो सोनिया ने अपने पंडित को उसके नामकरण संस्कार के लिए बुलाया था.
(ये लेखक के निजी विचार हैं.)