नज़रिया: अपने ही बुने जाले में फंसते जा रहे हैं केजरीवाल
सिर्फ़ चार साल की सक्रिय राजनीति में अरविंद केजरीवाल और आम आदमी पार्टी भारतीय इतिहास के पन्नों में दर्ज़ हो गए हैं. और ऐसे दर्ज़ हुए हैं कि उन पर चुटकुले लिखे जा रहे हैं.
उनका ज़िक्र होने पर ऐसे मकड़े की तस्वीर उभरती है, जो अपने बुने जाले में लगातार उलझता जा रहा है.
इस पार्टी ने जिन ऊँचे आदर्शों और विचारों का जाला बुनकर राजनीति के शिखर पर जाने की सोची थी,
सिर्फ़ चार साल की सक्रिय राजनीति में अरविंद केजरीवाल और आम आदमी पार्टी भारतीय इतिहास के पन्नों में दर्ज़ हो गए हैं. और ऐसे दर्ज़ हुए हैं कि उन पर चुटकुले लिखे जा रहे हैं.
उनका ज़िक्र होने पर ऐसे मकड़े की तस्वीर उभरती है, जो अपने बुने जाले में लगातार उलझता जा रहा है.
इस पार्टी ने जिन ऊँचे आदर्शों और विचारों का जाला बुनकर राजनीति के शिखर पर जाने की सोची थी, वे झूठे साबित हुए. अब पूरा लाव-लश्कर किसी भी वक़्त टूटने की नौबत है.
जैसे-जैसे पार्टी और उसके नेताओं की रीति-नीति के अंतर्विरोध खुल रहे हैं, उलझनें बढ़ती जा रही हैं.
केजरीवाल ने मांगी मजीठिया से माफ़ी
मजीठिया से माफ़ी मांगने पर भगवंत मान का इस्तीफ़ा
ठोकर पर ठोकर
केजरीवाल के पुराने साथियों में से काफ़ी साथ छोड़कर चले गए या उनके ही शब्दों में 'पिछवाड़े लात लगाकर' निकाल दिए गए. अब वे ट्वीट करके मज़ा ले रहे हैं, 'हम उस शख़्स पर क्या थूकें जो ख़ुद थूक कर चाटने में माहिर है!'
https://twitter.com/DrKumarVishwas/status/974304633408638976
अकाली नेता बिक्रम मजीठिया से केजरीवाल की माफ़ी के बाद पार्टी की पंजाब यूनिट में टूट की नौबत है. दिल्ली में पहले से गदर मचा पड़ा है. 20 विधायकों के सदस्यता-प्रसंग की तार्किक परिणति सामने है. उसका मामला चल ही रहा था कि माफ़ीनामे ने घेर लिया है.
केजरीवाल की राजनीति में 'मिसफ़िट' हैं विश्वास?
मज़ाक बनी राजनीति
सोशल मीडिया पर केजरीवाल का मज़ाक बन रहा है. किसी ने लगे हाथ एक गेम तैयार कर दिया है. पार्टी के अंतर्विरोध उसके सामने आ रहे हैं. पिछले दो-तीन साल की धुआँधार राजनीति का परिणाम है कि पार्टी पर मानहानि के दर्जनों मुक़दमे दायर हो चुके हैं. ये मुक़दमे देश के अलग-अलग इलाक़ों में दायर किए गए हैं.
पार्टी प्रवक्ता सौरभ भारद्वाज का कहना है कि अदालतों में पड़े मुक़दमों को सहमति से ख़त्म करने का फ़ैसला पार्टी की क़ानूनी टीम के साथ मिलकर किया गया है, क्योंकि इन मुक़दमों की वजह से साधनों और समय की बर्बादी हो रही है. हमारे पास यों भी साधन कम हैं.
हाँ हमने ग़लतियाँ कींः केजरीवाल
माफिया ही माफिया
बताते हैं कि जिस तरह मजीठिया मामले को सुलझाया गया है, पार्टी उसी तरह अरुण जेटली, नितिन गडकरी और शीला दीक्षित जैसे मामलों को भी सुलझाना चाहती है. यानी माफ़ीनामों की लाइन लगेगी. पिछले साल बीजेपी नेता अवतार सिंह भड़ाना से भी एक मामले में माफ़ी माँगी गई थी.
केजरीवाल ने उस माफ़ीनामे में कहा था कि एक सहयोगी के बहकावे में आकर उन्होंने आरोप लगाए थे. पार्टी सूत्रों के अनुसार हाल में एक बैठक में इस पर काफ़ी देर तक विचार हुआ कि मुक़दमों में वक़्त बर्बाद करने के बजाय उसे काम करने में लगाया जाए.
सौरभ भारद्वाज ने पार्टी के फ़ैसले का ज़िक्र किया है, पर पार्टी के भीतरी स्रोत बता रहे हैं कि माफ़ीनामे का फ़ैसला केजरीवाल के स्तर पर किया गया है.
'अरविंद केजरीवाल की जीभ है लंबी'
किसका फ़ैसला?
इस मुक़दमे में केजरीवाल के अलावा आशीष खेतान और संजय सिंह के नाम भी हैं. संजय सिंह की तुरंत प्रतिक्रिया से लगता है कि इस फ़ैसले की जानकारी उन्हें नहीं थी. या वो इससे सहमत नहीं हैं.
पंजाब से पार्टी के विधायक और विपक्ष के नेता सुखपाल सिंह खैरा ने ट्वीट किया, '...हमसे इस बारे में कोई चर्चा नहीं की गई.' पार्टी के पंजाब प्रभारी और सांसद भगवंत मान प्रदेश अध्यक्ष पद से इस्तीफ़ा दे चुके हैं. राज्य की पूरी यूनिट में नाराज़गी है.
केजरीवाल Vs कुमार: ग़ैरों पर करम, अपनों पर सितम क्यों?
सड़क से सत्ता तक
पार्टी का संकट इसलिए खड़ा हुआ, क्योंकि सड़क की राजनीति के फौरन बाद पार्टी ने सत्ता का दामन थाम लिया. सड़क छाप नारों, बयानों और सोशल मीडिया की कीचड़ उछाल छीछालेदर का जितना लाभ उसे मिल सकता था, वह एकबारगी और ज़रूरत से ज़्यादा मिल गया.
आम आदमी पार्टी 'सपनों के सौदागर' की तरह आई. जनता को लगा कि उसके सपनों के नेता सामने खड़े हैं. पर यह सपना टूट रहा है. उसकी भावुक राजनीति न्याय-व्यवस्था के कठोर धरातल पर आ गई है. व्यवस्था का शिकंजा कसता जा रहा है.
ख़बरें हैं कि पार्टी अपने नेताओं पर चल रहे मानहानि के सभी केस ख़त्म कराना चाहती है. इसके लिए उसे दूसरे पक्ष से समझौते करने होंगे. अरविंद केजरीवाल यों भी माफ़ी माँगने के लिए प्रसिद्ध हैं. दिल्ली की जनता से न जाने कितनी बार वो माफ़ी माँग चुके हैं.
मुश्किलों के भंवर से निकल पाएंगे केजरीवाल?
माफ़ी और माफ़ी का फर्क
उस माफ़ी और इस माफ़ी में फर्क है. जिन आरोपों को लेकर ये मुक़दमे चल रहे हैं, वे उनकी राजनीति से पक्की तरह बाबिस्ता रहे हैं. इन आरोपों पर ही उनकी राजनीति आधारित थी.
देश के बेईमान नेताओं की लिस्ट जारी करना उनका शगल रहा है. इस लिहाज से मुक़दमों की संख्या ज़्यादा नहीं है.
उनके बयानों में पिछले साल से कुछ कमी आई है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को लेकर वे जैसे बयान दे रहे थे, वे सामान्य बयान नहीं थे.
ऐसी बातें मुख्यधारा की उस राजनीति से मेल नहीं खाती हैं, जिसमें वे शामिल हो चुके हैं. इन बातों को सड़क छाप कहा जाता है.
मजीठिया ने अमृतसर की एक अदालत में केजरीवाल, संजय सिंह और आशीष खेतान के ख़िलाफ़ मानहानि का केस दायर किया था.
इस मामले में कई पेशियां हो चुकी हैं. अगली तारीख दो अप्रैल की है, जिसमें केजरीवाल के माफ़ीनामे को पेश किया जा सकता है.
मजीठिया को उन्होंने न केवल ड्रग तस्कर बताया, बल्कि पार्टी कार्यकर्ताओं से कहा कि वे गांव-गांव और गली-गली में इस बात के पोस्टर लगाएं. अब व्यावहारिक सत्य उनके सामने है.
उन्होंने आरोप लगाने में जितनी तेज़ी दिखाई, शायद माफ़ी माँगने में भी वे जल्दबाजी कर रहे हैं. सच यह है कि उनके माफ़ी माँगने के बाद पंजाब में आम आदमी पार्टी की राजनीति बुरी तरह पिट जाएगी.
बिक्रम मजीठिया ने कहा है, मैंने केजरीवाल को माफ़ किया, पर क्या केजरीवाल के 'अपने' उन्हें माफ़ कर देंगे?
यह पहला मामला नहीं है जिसमें केजरीवाल ने माफ़ी मांगी है. इससे पहले भी वे कई बार अपने किए पर माफ़ी मांग चुके हैं, पर उन्हें उस माफ़ी और इस माफ़ी में अंतर है. राजनीति में ऐसी माफ़ियाँ बरसों याद रहती हैं.