इन पांच मुद्दों पर केजरीवाल लोकसभा चुनाव में देंगे राहुल, मोदी को टक्कर
बैंगलोर। दिल्ली विधानसभा चुनाव में जनता ने जिस तरह आम आदमी पार्टी को समर्थन दिया उससे तो यह साफ है कि जनता भी नये राजनीतिक विकल्प के बारे में सोंचने लगी है। खास कर ऐसे लोग जो विकास और गरीबों का हित ध्यान में रखें। चुनाव बाद भी 'आप' ने जिस तरह कांग्रेस से 'बिना शर्त' गठबंधन का ऑफर मिलने पर भी सरकार नहीं बनाई और जनता से राय लेने के लिए उनके बीच जा रहे हैं, उससे इस संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता है कि 'आप' आने वाले दस सालों में प्रमुख राष्ट्रीय पार्टी बन सकती है।
पहले ही विधानसभा में चुनाव में अप्रत्याशित सफलता और जनता के समर्थन से 'आप' के संयोजक अरविंद केजरीवाल अब लोकसभा चुनाव में कांग्रेस और भाजपा को चुनौती देने का मन बना चुके हैं। सूत्रों के अनुसार 'आप' आगामी चुनाव में 200 लोकसभा सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारना चाहती है।
हालांकि राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि लोकसभा चुनाव में 'आप' के सामने बड़ी चुनौतियां है, नेताओं को जनता के बीच पहुंच बनाने के लिए कड़ी मेहनत करनी होगी। जिसके लिए अधिक फंड की जरूरत होगी और कार्यकर्ता को लंबे समय तक लोकसभा क्षेत्र में पार्टी का प्रचार करना होगा, इसके बावजूद 'आप' को हलके में नहीं लिया जा सकता है, टीम केजरीवाल का प्रबंधन उच्चकोटि का है, जिसके दम पर ही उन्होने दिल्ली का किला जीता है, बताया जा रहा है कि टीम केजरीवाल जल्द ही लक्षित विधानसभा क्षेत्र में लगभग 1500 'आप' कार्यकर्ताओं को भेजने का मन बना चुकी हैं।
पार्टी ने कुमार विश्वास को राहुल गांधी के सामने अमेठी से चुनाव मैदान में उतारने का फैसला किया है, वहीं विधानसभा चुनाव में केजरीवाल ने शीला दीक्षित जैसी कद्दावर शख्सियत को मात देकर जता दिया है कि वह प्रमुख चेहरों को निशाना बना कर जनता की नजर में आना चाहते हैं, फिर भी कुछ ऐसे मुद्दे हैं जिनको आधार बना कर 'आप' लोकसभा चुनाव में भी बड़ी सफलता पाने के सपने देख रही है। देखें क्या हैं ये मुद्दे-
कांग्रेस से नाराजगी का फायदा
पिछले पांच दशकों से कांग्रेस को समर्थन दे रहा मुस्लिम वोटर भी अब समझ चुका है कि एक परिवार के नाम पर राजनीति करने वाली पार्टी के लिए वह अब भी सिर्फ 'वोट बैंक' ही है, वहीं बदलते माहौल में उसको भाजपा ही विकल्प दिख रही है, पर बेहतर विकल्प मिलने की स्थिति में मुस्लिम वोटर भाजपा को दरकिनार कर सकता है। अत: केजरीवाल मुस्लिम वोटरों के लिए विकल्प बनकर प्रमुख राष्ट्रीय पार्टियों के लिए चुनौती बन सकती है।
साफ सुथरी छवि का लाभ
भाजपा और कांग्रेस पर जहां भ्रष्टाचार के आरोप लगते रहे हैं वहीं खुद आयकर विभाग में आयुक्त होने के बावजूद केजरीवाल की छवि साफ सुथरी है। अत: जनता किसी भ्रष्टाचारी और माफिया को वोट देने की जगह आप नेता को समर्थन दे सकती है।
क्षेत्रीय पार्टियों के लिए खतरा है 'आप'
देश में क्षेत्रीय पार्टियां जिस तरह सत्ता में रहने के लिए जोड़ तोड़ करती हैं उससे जागरूक और युवा मतदाता वोट देने में रूचि नहीं दिखाता है। एक ईमानदार, जातिवाद से दूर और विकासोन्मुख पार्टी के रूप में मतदाता 'आप' को समर्थन दे सकता है। राजनीतिक विश्लेषक भी 'आप' को क्षेत्रीय पार्टियों के लिए एक बड़ी चुनौती मानते हैं, उनका कहना है कि भ्रष्टाचार और जोड़ तोड़ की राजनीति से ऊबी जनता छद्म लाभ के लिए अपने एजेंडे को ताक पर रखने वाली इन पार्टियों पर 'आप' को प्रमुखता दे सकती है।
युवाओं का विकल्प बन सकती है 'आप'
राजनीतिक परिप्रेक्ष्य में 'आप' ही एक ऐसी पार्टी है जो कि किसी खास धर्म और जाति के समुदाय का प्रतिनिधित्व नहीं करती है। वहीं पार्टी में परिवार वाद भी नहीं है अत: युवाओं को यह एक बेहतर विकल्प नजर आती है। जिसका लाभ 'आप' को मिल सकता है। यह ध्यान देने योग्य है कि दिल्ली की 70 विधानसभा सीटों पर आप ने 42 ऐसे लोगों को टिकट दिया है जो कि 18 से 30 आयु वर्ग के हैं। जहां युवाओं को मौका देने के नाम पर राहुल गांधी बेअसर रहे है, वहीं भाजपा के पास कोई युवा चेहरा नहीं है।
सत्ता के लिए भूख न होना
अभी तक केजरीवाल ने सत्ता लोलुपता नहीं दिखाई है, एक साक्षात्कार के दौरान केजरीवाल ने कहा था कि 'आप' अकेले राष्ट्रीय स्तर पर नहीं आ सकती है, अत: हम विपक्ष में बैठकर राजनीति में सुधार करेंगे। ऐसे में राजनीतिक शुचिता का सपना देखने वाले उनके साथ आसानी से जुड़ सकते हैं।