प्रदूषण से ऐसे निपटेगी मोदी सरकार, बायोएथेनॉल संयंत्रों में हो सकता है पराली का इस्तेमाल
नई दिल्ली। जहां एक ओर सरकार दिल्ली में वायु प्रदूषण रोकने की तमाम कोशिशें कर रही है, वहीं अब तेल कंपनियां भी इस प्रयास में अपना योगदान देंगी। पेट्रोलियम मंत्रालय इन दिनों इस बात पर विचार कर रहा है कि बायोएथेनॉल संयंत्रों में पराली का इस्तेमाल किया जाए। पराली के जलाए जाने से निकलने वाला धुआं दिल्ली में प्रदूषण का एक बड़ा कारण है। बताया जा रहा है कि हिंदुस्तान पेट्रोलियम कॉरपोरेशन (एचपीसीएल), इंडियन ऑयल कॉरपोरेशन (आईओसी) और भारत पेट्रोलियम कॉरपोरेशन (बीपीसीएल) जैसी तेल मार्केटिंग कंपनियां जल्द ही एक पराली संग्रहण केन्द्र भी स्थापिन करने की योजना बना रही हैं।
इन संग्रहण केन्द्रों में पराली जमा की जाएगी, जिसका इस्तेमाल दूसरी पीढ़ी के 12 बायोएथेनॉल संयंत्रों में किया जाएगा। यह भी बताया जा रहा है कि तेल कंपनियों को अपने हर संयंत्र के लिए सालाना करीब 1.5 लाख टन बायो मास की जरूरत पड़ेगी। बायो मास में धान और गेहूं की पराली और बांस के डंठल होंगे। इस तरह के दो संयंत्र मौजूदा समय में पंजाब और हरियाणा में बनाए भी जा रहे हैं।
प्रदूषण का समाधान करने के लिए सरकारी कंपनियां इस क्षेत्र में कम से कम 10,000 करोड़ रुपए का निवेश करने की योजना बना रहे हैं। वहीं दूसरी ओर निजी क्षेत्र की कंपनियां भी 16 बायोएथेनॉल संयंत्र बनाने की योजना बना रही है। इस क्षेत्र में कुल 30,000 करोड़ रुपए का निवेश होगा। इस खास योजना से पराली जलाने की समस्या भी खत्म हो जाएगी और प्रदूषण से निपटना आसान हो जाएगा। इन संयंत्रों में रोजाना 500 टन बायो मास की जरूरत होगी और सारी पराली खप जाएगी।
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