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ओबीसी क्रीमी लेयर: यूपी-पंजाब चुनाव के बीच इस नए बदलाव की सुगबुगाहट

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नई दिल्ली, 12 जनवरी: उत्तर प्रदेश और पंजाब में अन्य-पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के वोटरों की तादाद बहुत ही ज्यादा मायने रखती है। ऐसे में क्रीमी लेयर की आय सीमा फिर से निर्धारित करने और इसके लिए 1993 से निर्धारित क्राइटेरिया में बदलाव के बहुत बड़े राजनीतिक मायने हो सकते हैं। लेकिन, तत्थ यह है कि इस तरह के बदलाव की सुगबुगाहट शुरू हो चुकी है। अगर इस संबंध में किसी तरह से बात आगे बढ़ती है तो यह राजनीतक तौर पर बड़ा दिलचस्प मामला बन सकता है। बहरहाल, यह मुद्दा अभी किस स्थिति में है, जरा उस पर गौर कर लेना जरूरी है।

सालाना आय की सीमा बढ़ाने पर चर्चा

सालाना आय की सीमा बढ़ाने पर चर्चा

केंद्रीय सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय जल्द ही ओबीसी क्रीमी लेयर के लिए आय की सीमा मौजूदा 8 लाख रुपये सालाना से बढ़ाकर 12 लाख रुपये करने के प्रस्ताव पर चर्चा शुरू करने की तैयारी कर रहा है। मंत्रालय यह भी देखेगा कि क्या वेतन और कृषि से प्राप्त होने वाली आय भी सालाना आमदनी में जोड़ा जाना चाहिए। इसके बारे में एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा है कि 'मंत्रालय से इस मुद्दे को दोबारा देखने को कहा गया है। जो कैबिनेट नोट पहले लगाया गया था, उसे वापस कर दिया गया है। हम फिर से चर्चा शुरू करेंगे।' इस समय अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के लिए उच्च शिक्षण संस्थानों में और सरकारी नौकरियों में 27% कोटा निर्धारित है। लेकिन, यदि इसके लिए जरूरी है कि लाभार्थियों के माता-पिता की सालाना आय 8 लाख रुपये से ज्यादा न हो और अभी इस सालाना आय में उनका वेतन और खेती से होने वाली आमदनी को शामिल नहीं किया जाता है।(तस्वीरें- प्रतीकात्मक)

ओबीसी क्रीमी लेयर क्या है ?

ओबीसी क्रीमी लेयर क्या है ?

इस समय ओबीसी के तहत आरक्षण का लाभ लेने वालों के लिए उनके माता-पिता की सालाना इनकम की सीलिंग 8 लाख रुपये है और उससे ऊपर सालाना आय वाले ओबीसी के व्यक्ति को 'क्रीमी लेयर' में माना जाता है। ऐसे व्यक्ति को ओबीसी को मिलने वाले आरक्षण का लाभ नहीं मिल सकता। आमतौर पर सालाना आय के इस मापदंड की हर तीन साल में समीक्षा की जाती है। पिछली समीक्षा 2017 में हुई थी, जब मोदी सरकार ने ओबीसी आरक्षण के लिए सालाना आय की सीमा को 6 लाख रुपये से बढ़ाकर 8 लाख रुपये कर दिया था। उससे पहले 2013 में यूपीए की सरकार में इसकी सीमा 4.5 लाख रुपये से बढ़ाकर 6 लाख रुपये की गई थी।

कहां अटका था मामला ?

कहां अटका था मामला ?

लेकिन, 2020 में इसकी समीक्षा से पहले मंत्रालय ने सेवानिवृत सचिव बीपी शर्मा की अगुवाई में एक पैनल गठित किया था। इसे सिर्फ सालाना आय की सीलिंग की ही समीक्षा करने की जिम्मेदारी नहीं दी गई थी, बल्कि 1993 में तय किए गए क्रीमी लेयर के मापदंडों को भी फिर से निर्धारित करना था। इस पैनल को यह तय करना था क्या सकल वार्षिक आय में वेतन और कृषि आय को भी शामिल किया जाए। इससे यह सुनिश्चत होगा कि ओबीसी आरक्षण का लाभ इन जातियों के गरीबों में से भी सबसे गरीब और खासकर ग्रामीण इलाकों के लोगों को सुनिश्चित हो सके। इसकी रिपोर्ट के आधार पर मंत्रालय ने वेतन को भी सकल सालाना आय में शामिल करने का प्रस्ताव रखा था। इस संबंध में कैबिनेट का नोट पहले 2020 में भेजा गया था। लेकिन, फैसला राजनीतिक तौर पर अहम है, जो उस समय नहीं लिया गया। इसकी वजह ये भी हो सकता है कि इसके चलते सरकार के बड़े अफसरों के बच्चे ओबीसी आरक्षण के दायरे से अलग हो सकते हैं; और सरकारी बाबुओं की यह लॉबी बहुत ही मजबूत है। लेकिन, इसपर फिर से मंथन शुरू होना बड़ी बात है।

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यूपी-पंजाब चुनाव के बीच महत्वपूर्ण कदम

यूपी-पंजाब चुनाव के बीच महत्वपूर्ण कदम

लेकिन, केंद्र ने अब जो क्रीमी लेयर और सालाना आय की सीमा पर फिर से विचार करने का मन बनाया है, उसे उत्तर प्रदेश और पंजाब विधानसभा चुनावों को देखते हुए बहुत ही अहम माना जा रहा है। उत्तर प्रदेश में ओबीसी की जनसंख्या करीब 45% है और पंजाब की एक-तिहाई आबादी अन्य पिछड़ा वर्ग के लोगों की है। ऐसे में इसपर लिया गया हर फैसला, बहुत ही दूरगामी परिणाम वाला हो सकता है।

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English summary
UP-Punjab elections-Centre initiated move for raising income limit and changing OBC Creamy Layer criteria
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