Exclusive: क्यों नीति आयोग में लगेगा महाभारत का तड़का
नई दिल्ली(विवेक शुक्ला) नीति आयोग में मशहूर अर्थशास्त्री बिबेक देबराय को अहम स्थान मिला है। वे नीति आयोग में पूर्णकालिक सदस्य के रूप में काम करेंगे। वे संस्कृत और महाभारत के भी प्रकांड विद्वान हैं। महाभारत का उन्होंने अंग्रेजी में अनुवाद किया। वे बात-बात पर महाभारत के प्रसंगों का उदाहरण देकर अपनी बात रखते हैं। उन्होंने दस खंडों में महाभारत का अंग्रेजी में अनुवाद करके एक वास्तव में बड़ा काम किया है।
न हो महाभारत की अनदेखी
कुछ समय पहले एक साक्षात्कार में डा. देबराय ने कहा था कि महाभारत की अनदेखी करके कोई इँसान भारत को नहीं समझ सकता। अर्थशास्त्री बिबेक देबराय का कहना है कि 1960 से 1970 के दशक में भारत ने अवसर खोया। उस दौरान अनावश्यक सरकारी दखल के कारण लोगों को दिक्कतों का सामना करना पड़ा। जबकि सरकार के कठोर रवैये के कारण 2004 के बाद विकास लगभग अवरुद्ध ही हो गया।
पढ़े कौटिल्य को
देबराय के अनुसार यदि महाभारत और कौटिल्य को पढ़ें तो पता चलता है कि हिंदू उद्यम कभी भी सरकार पर निर्भर नहीं रहे। यदि यह सुनिश्चित हो कि सरकार का दखल नहीं होगा तो भारतीय अर्थव्यवस्था अत्यंत शानदार प्रदर्शन कर सकती है।
लिखते आर्थिक सवालों पर
कोलकाता के रामकृष्ण मिशन, प्रेसिडेंसी कालेज, दिल्ली स्कूल आफ इक्नोमिक्स और कैंम्ब्रिज यूनिवर्सिटी के छात्र रहे बिबेक देबराय अखबारों और पत्रिकाओं में लगातार आर्थिक सवालों पर लिखते रहे हैं।
वे पूर्व में वित्त मंत्रालय में भी अहम पदों पर रहे हैं। जानकारों का कहना है कि वे नीति आयोग में रेलवे के चौतरफा विकास पर खास तौर पर खोकस देंगे। रेलवे से जुड़े सवालों पर उनका खास महारत है।
मन से अध्यापक
वे मन से अध्यापक भी हैं। वे प्रेसिडेंसी कालेज, कोलकाता और दिल्ली के इंडियन इंस्टीच्यूट आफ फारेन ट्रेड में पढ़ा भी चुके हैं।
विकास अवरुद्ध हो गया
अर्थशास्त्री बिबेक देबराय का कहना है कि 1960 से 1970 के दशक में भारत ने अवसर खोया। उस दौरान अनावश्यक सरकारी दखल के कारण लोगों को दिक्कतों का सामना करना पड़ा। जबकि सरकार के कठोर रवैये के कारण 2004 के बाद विकास लगभग अवरुद्ध ही हो गया।