MP उपचुनावः नेपानगर में भाजपा-कांग्रेस दोनों की मुश्किल राह, इस बार बदले हैं समीकरण
भोपाल। मध्यप्रदेश में 28 सीटों पर हो रहे उपचुनाव में नेपानगर (Nepanagar) सीट कुछ खास है। यहां पर पिछले 15 सालों बाद 2018 में जीत मिली भी तो ज्यादा दिन रह नहीं सकी। कांग्रेस के टिकट पर जीती सुमित्रा देवी कास्डेकर ने कांग्रेस और विधायकी दोनों छोड़ दी और भाजपा का दामन थाम लिया। हालांकि कास्डेकर ने तब कांग्रेस का हाथ नहीं छोड़ा जब सिंधिया के जाने के बाद कांग्रेस में भगदड़ मची थी। कास्डेकर ने कुछ समय बाद त्यागपत्र देकर भाजपा का दामन थामा था।
अब कास्डेकर भाजपा के टिकट पर मैदान में हैं तो कांग्रेस ने रामिकशन पटेल को मैदान में उतारा है। हालांकि रामकिशन पर कांग्रेस पहले भी दांव लगा चुकी है लेकिन कभी उन्हें जीत नहीं मिली है।
15
साल
बाद
जीती
थी
कांग्रेस
नेपानगर
सीट
2008
में
अनुसूचित
जाति
के
लिए
आऱक्षित
हो
गई
थी।
कास्डेकर
ने
2018
के
विधानसभा
चुनाव
में
भाजपा
की
मंजू
दादू
को
1264
वोट
से
हराकर
इस
सीट
पर
15
साल
बाद
कांग्रेस
को
जीत
दिलाई
थी।
इसके
पहले
लगातार
भाजपा
के
राजेंद्र
श्यामलाल
दादू
और
उनकी
पुत्री
इस
सीट
से
चुनाव
जीतती
रहीं
हैं।
राजेंद्र
दादू
का
सड़क
हादसे
में
निधन
के
बाद
मंजू
राजेंद्र
दादू
ने
उपचुनाव
लड़ा
था
और
भारी
बहुमत
से
जीत
हासिल
की
थी।
इस
दौरान
उन्हें
पिता
के
निधन
की
सहानुभूति
का
लाभ
मिला
था।
वैसे अगर इस सीट पर देखें तो भाजपा की स्थिति काफी मजबूत रही है। 1998 से लेकर अब तक 5 आम चुनाव और एक उपचुनाव हो चुके हैं जिसमें 4 में भाजपा को जीत मिली है जबकि कांग्रेस ने के हिस्से दो बार विजयश्री आई है।
दादू
परिवार
का
चलता
रहा
सिक्का
1998
और
2003
में
ये
सामान्य
सीट
रही
जिसमें
एक-एक
बार
भाजपा
और
कांग्रेस
दोनों
को
जीत
मिल
चुकी
है।
2008
में
यह
विधानसभा
अनुसूचित
जनजाति
(ST)
के
लिए
आरक्षित
कर
दी
गई
थी
तब
से
यह
सीट
भाजपा
के
राजेंद्र
दादू
और
उनकी
पुत्री
मंजू
दादू
के
ही
कब्जे
में
थी।
15
साल
बाद
2008
में
कांग्रेस
ने
इसे
भाजपा
से
छीन
लिया
जब
2018
में
कांग्रेस
की
सुमित्रा
देवी
कास्डेकर
ने
मंजू
दादू
को
1264
वोटों
के
नजदीकी
अंतर
से
शिकस्त
दे
दी।
इसके
पहले
राजेंद्र
दादू
के
हादसे
में
निधन
के
बाद
हुए
उपचुनाव
में
मंजू
दादू
ने
भारी
बहुमत
से
जीती
थी
लेकिन
आम
चुनाव
में
मंजू
दादू
हार
गईं।
अब
कास्डेकर
और
मंजू
दादू
दोनों
भाजपा
में
हैं
ऐसे
में
समीकरण
भी
बदलें
होंगे।
कास्डेकर
और
भाजपा
के
लिए
यह
महत्वपूर्ण
होगा
कि
मंजू
दादू
यहां
पार्टी
प्रत्याशी
के
लिए
कितने
मन
से
प्रचार
में
जुटती
हैं।
मंजू
आदिवासी
कोरकू
समाज
की
हैं
और
इस
क्षेत्र
में
70
हजार
आदिवासी
वोटर
हैं।
हालांकि मंजू दादू ने ही कास्डेकर के भाजपा में आने का स्वागत किया था लेकिन ये वही मंजू दादू हैं जिन्होंने कास्डेकर के विधायक रहते हुए उनके पीए पर नकली नोटों के रैकेट में शामिल होने का आरोप लगाया था। मामला उज्जैन हाईकोर्ट में चल रहा है।
तीसरी
बाद
दांव
लगा
रहे
रामकिशन
कांग्रेस
प्रत्याशी
रामकिशन
पटेल
तीसरी
बार
यहां
से
दांव
आजमा
रहे
हैं
लेकिन
वो
कभी
यहां
से
जीत
हासिल
नहीं
कर
सके
हैं।
वहीं
उन्हें
कांग्रेस
में
टिकट
के
दावेदारों
के
विरोध
का
भी
सामना
करना
पड़
सकता
है।
कांग्रेस
के
लिए
जरूरी
होगा
कि
वह
सभी
नाराज
पक्षों
को
भी
साथ
रख
सके
तभी
बात
बनेगी।
रामकिशन
पटेल
के
लिए
पूर्व
प्रदेश
अध्यक्ष
और
केंद्रीय
मंत्री
अरुण
यादव
भी
जुटेंगे।
नेपानगर
अरुण
यादव
के
पूर्व
संसदीय
क्षेत्र
का
हिस्सा
है।
पलायन
होगा
मुद्दा
नेपानगर
औद्योगिक
क्षेत्र
के
रूप
में
अपनी
पहचान
रखता
रहा
है।
एशिया
की
पहली
और
सबसे
बड़ी
पेपर
मिल
यही
हैं
लेकिन
बंद
है
जिसके
चलते
यहां
के
लोग
कमाने
के
लिए
बाहर
का
रुख
कर
रहे
हैं।
ऐसे
में
प्रत्याशियों
को
रोजगार
और
पलायन
के
मुद्दे
पर
जनता
के
सवालों
का
सामना
करना
पड़ेगा।
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