Navjot Singh Sidhu:क्या है वो मामला जिसमें SC ने अपना ही फैसला पलटा, एक साल की सजा सुनाई
नई दिल्ली, 19 मई: क्रिकेटर से राजनेता बने नवजोत सिंह सिद्धू को आज सुप्रीम कोर्ट से बहुत बड़ा झटका लगा है। अदालत ने चार साल पहले सुनाए गए अपने ही एक फैसले को पलटकर उन्हें एक साल 'कठोर कैद' की सजा सुना दी है। मामला रोड रेज का है, जिसमें पंजाब के पटियाला में एक बुजुर्ग शख्स की मौत हो गई थी। सुप्रीम कोर्ट ने तीन दशक से भी ज्यादा पुराने इस मामले में आज सिद्धू को जेल भेजने की सजा सुनाई है। सर्वोच्च अदालत ने यह फैसला सिद्धू की याचिका पर ही सुनाई है, जिसमें उन्होंने पीड़ित परिवार की पुनर्विचार याचिका को चुनौती दी थी।
34 साल पुराने रोड रेज मामले में सिद्धू को जेल
पंजाब में कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू को सुप्रीम कोर्ट ने 34 साल पुराने रोड रेज के मामले में एक साल की 'कठोर कारावास' की सजा सुनाई है। दो महीने पहले उनके नेतृत्व में पंजाब चुनाव में कांग्रेस की लुटिया डूबी थी, इस महीने क्रिकेटर से राजनेता बने सिद्धू को देश की सर्वोच्च अदालत से इतना बड़ा झटका लगा है। 58 वर्षीय कांग्रेस नेता को अदालत के सामने सरेंडर करना होगा, हालांकि उनके पास अभी भी इस फैसले के खिलाफ अपील करने का विकल्प बचा हुआ है। (पहली तस्वीर सौजन्य: सिद्धू के ट्विटर से)
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क्या है वो मामला जिसमें सिद्धू को मिली एक साल की सजा
27 दिसंबर, 1988 का वाक्या है। पार्किंग की जगह को लेकर सिद्धू की पंजाब के पटियाला निवासी गुरनाम सिंह के साथ एक बहस हो गई थी। आरोपों के मुताबिक सिद्धू और उनके साथ मौजूद रूपिंदर सिंह संधू ने कथित तौर पर 65 वर्षीय गुरनाम सिंह को उनकी कार से खींच लिया और उनके साथ मारपीट की। बाद में उनकी मौत हो गई। 11 साल बाद यानी 1999 में इस मामले में पटियाला सेशंस कोर्ट ने सिद्धू और उनके सहयोगी को सबूतों के अभाव और संदेह का लाभ देते हुए बरी कर दिया था।
पुलिस और अभियोजन पक्ष की क्या दलील थी ?
अभियोजन पक्ष के मुताबिक सिद्धू और उनके साथी रूपिंदर सिंह संधू पटियाला के शेरनवाला गेट के पास मारूति जिप्सी पर थे। जबकि, बुजुर्ग गुरनाम सिंह दो और लोगों के साथ एक मारूति कार में सवार थे। इस दौरान दोनों गाड़ियों की पार्किंग को लेकर सिद्धू और गुरनाम का झगड़ा हो गया। गुरनाम सिंह गिर गए और बाद में अस्पताल में उनकी मौत हो गई। पुलिस के पास दर्ज रिकॉर्ड के अनुसार इस वारदात के बाद सिद्धू और उनके साथी फरार हो गए थे। लेकिन, पीड़ित परिवार की शिकायत के आधार पर सिद्धू और उनके दोस्त पर केस दर्ज किया गया था।
हाई कोर्ट ने 3 साल की सजा सुनाई थी
मृतक गुरनाम सिंह के परिवार वालों ने सेशंस कोर्ट के फैसले को पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट में चुनौती दी थी। 2006 में हाई कोर्ट ने सेशंस कोर्ट के फैसले को पलटते हुए सिद्धू और उनके साथी को गैर-इरादतन हत्या का दोषी माना और 3-3 साल कैद की सजा सुना दी। अदालत ने दोनों पर एक-एक लाख का जुर्माना भी ठोका था। इस फैसले के खिलाफ सिद्धू ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था।
सुप्रीम कोर्ट ने पहली बार में बरी कर दिया
इसके बाद सिद्धू के वकीलों ने सुप्रीम कोर्ट में दलील दी थी कि गुरनाम सिंह की मौत के कारण को लेकर डॉक्टरों की राय साफ नहीं है। इसपर सुप्रीम कोर्ट ने 2018 में इनके पक्ष में फैसला सुनाते हुए इन्हें गैर-इरातन हत्या के आरोपों से बरी कर दिया। इतना ही नहीं सर्वोच्च अदालत ने उनकी तीन साल की सजा को महज 1,000 रुपये के जुर्माने में बदल दिया।
सुप्रीम कोर्ट ने अब अपना ही फैसला पलटा
लेकिन, पीड़ित परिवार ने सुप्रीम कोर्ट से अपने फैसले पर पुनर्विचार करने की अपील की थी। पीड़ित परिवार ने सिद्धू पर लगे गंभीर आरोपों को ध्यान में रखकर विचार करने की गुहार लगाई थी। लेकिन, सिद्धू ने पीड़ित परिवार की पुनर्विचार याचिका को चुनौती दी। गुरुवार का फैसला सिद्धू की ही याचिका पर आया है, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने अपना ही फैसला पलटते हुए नवजोत सिंह सिद्धू को दोषी ठहराया है और एक साल कैद की सजा सुनाई है।
16 साल तक भारतीय क्रिकेट के हिस्सा रहे हैं सिद्धू
नवजोत सिंह सिद्धू 1983 से लेकर 1999 तक भारतीय क्रिकेट टीम के हिस्सा रहे हैं। जिस दौरान पटियाला में रोड रेज का यह वाक्या हुआ था, वह भारतीय क्रिकेट के चमकते सितारे थे। 1987 के रिलायंस वर्ल्ड कप में भी वह भारतीय टीम में शामिल थे। 1999 में क्रिकेट से संन्यास लेने के बाद उन्होंने कमेंट्री में भी बाजी लगाई और उन्हें काफी कामयाबी मिली। आगे चलकर अपने खास अंदाज की वजह से उन्हें टेलीविजन पर कॉमेडी शो में जज बनकर भी जलवा बिखेरने का मौका मिला है।
राजनीति में गिरता चला गया ग्राफ
इस दौरान उन्होंने बीजेपी से राजनीति में भी नाम कमाया और उन्हें अमृतसर लोकसभा सीट से जीतकर संसद में जाने का भी मौका मिला। उन्हें भाजपा ने राज्यसभा में भी भेजा। लेकिन,उन्होंने पिछले पंजाब विधानसभा चुनाव से पहले बीजेपी से इस्तीफा देकर कांग्रेस का हाथ थामा और 2017 के पंजाब विधानसभा चुनाव में विधायक बने और कैप्टन अमरिंदर सिंह सरकार में मंत्री भी बने। लेकिन, बीच में ही उन्होंने मंत्री पद भी छोड़ दिया और उसके बाद अपनी ही सरकार के खिलाफ हमलावर हो गए। राहुल गांधी और प्रियंका गांधी के आशीर्वाद से उन्हें पंजाब में प्रदेश कांग्रेस का ताज लेने में भी दिक्कत नहीं हुई, लेकिन इस साल फरवरी-मार्च में हुए विधानसभा चुनाव में वे अपनी सीट पर भी बुरी तरह से हार गए और कांग्रेस पार्टी का तो लगभग सफाया ही हो गया।