नीमराना डायलॉग के साथ भारत-पाकिस्तान के बीच ट्रैक II डिप्लोमैसी की शुरुआत, जानें क्या है ये
भारत और पाकिस्तान के रिश्तों में पिछले तीन वर्षों से विराम लगा हुआ है। अब केंद्र की मोदी सरकार ने पाकिस्तान के साथ संबंधों को बहाल करने की प्रक्रिया शुरू कर दी है। सरकार ने पाकिस्तान के साथ बातचीत करने के अपने फैसले को पलटते हुए अब पाक के साथ ट्रैक टू डिप्लोमैसी की प्रक्रिया शुरू कर दी है।
नई दिल्ली। भारत और पाकिस्तान के रिश्तों में पिछले तीन वर्षों से विराम लगा हुआ है। अब केंद्र की मोदी सरकार ने पाकिस्तान के साथ संबंधों को बहाल करने की प्रक्रिया शुरू कर दी है। सरकार ने पाकिस्तान के साथ बातचीत करने के अपने फैसले को पलटते हुए अब पाक के साथ ट्रैक टू डिप्लोमैसी की प्रक्रिया शुरू कर दी है। केंद्र सरकार ने दोनों देशों के बीच नीमराना डायलॉग को नए सिरे से शुरू करने की तैयारी कर दी है। नीमराना डायलॉग भारत और पाकिस्तान के बीच बातचीत की एक पुरानी पहल है। भारत ने इस वार्ता प्रक्रिया को उस समय फिर से आगे बढ़ाया है जब 28 अप्रैल को पूर्व भारतीय डिप्लोमैट्स, रिटायर्ड मिलिट्री ऑफिसर्स और प्रोफेसर्स के प्रतिनिधिमंडल ने पाक का दौरा किया। इस प्रतिनिधिमंडल को भारत-पाकिस्तान के बीच रिश्ते सुधारने के मकसद से पाक भेजा गया था। लेकिन इस बार इस पहल को पाक ने आगे बढ़ाया और इस्लामाबाद में बातचीत हुई। दोनों देशों के बीच अभी तक वार्ता के लिए कोई तीसरा देश चुना जाता था।
1991-92 में हुई नीमराना डायलॉग की शुरुआत
जो प्रतिनिधिमंडल पाकिस्तान गया था उसमे पाकिस्तान मामलों के विशेषज्ञ और विदेश मंत्रालय के पूर्व सचिव विवेक काटजू और एनसीईआरटी के पूर्व प्रमुख जेएस राजपूत खासतौर पर शामिल थे। बातचीत 28 अप्रैल से 30 अप्रैल के बीच हुई थी। पाकिस्तान की तरफ से पूर्व विदेश सचिव इनाम-उल-हक और इशरत हुसैन के अलावा कुछ और लोग शामिल हुए थे। दोनों देशों के बीच जारी वार्ता प्रक्रिया को नीमराना डायलॉग नाम दिया गया क्योंकि 1991-1992 में भारत-पाक के बीच नीमराना किले में पहली बार द्विपक्षीय वार्ता हुई थी। नीमराना एक गैर-सरकारी वार्ता प्रक्रिया है। इस वार्ता के साथ ही यह बात भी अब सही प्रतीत हो रही है कि पाकिस्तान के साथ किसी भी तरह की बातचीत न करने की सरकार की नीति अब अपनी जमीन खो रही है।
क्यों अहम है नीमराना डायलॉग
पूर्व विदेश सचिव कंवल सिब्बल भी नीमराना ग्रुप के सदस्य हैं, उन्हें भी वार्ता के लिए पाकिस्तान भेजा गया था। उन्होंने कहा कि नीमराना एक अहम पहल है क्योंकि इसकी वजह से मुश्किल समय में भी दोनों देशों के रिश्ते हमेशा मजबूत साबित हुए हैं। सिब्बल के मुताबिक नीमराना ने पिछले कुछ समय से काफी मुश्किल समय देखा है। दोनों पक्षों को लगता था कि संबंधों को जिंदा रखने के लिए यह काफी अहम है। सिब्बल ने बताया कि वह पूर्व में डायलॉग के लिए नहीं गए क्योंकि उन्हें लगता कि वर्तमान हालातों में बातचीत का कोई नतीजा नहीं निकलने वाला है।
नाराज पाकिस्तान ने किया इनकार
अधिकारियों की ओर से बताया गया कि इस बार पाकिस्तान का टर्न था कि वह दूसरे लेवल की वार्ता की मेजबानी करे लेकिन पाक के मना करने के बाद ऐसा नहीं हो सका था। इस वार्ता के लिए इनकार करके पाक हमेशा से भारत की उस स्थिति को लेकर नाराजगी जाहिर करना चाहता था जिसके तहत नई दिल्ली की ओर से तब तक बातचीत को बंद रखने की वकालत की गई थी जब तक कि आतंकियों पर पाक कोई नियंत्रण नहीं लगाता है। पाकिस्तान को इस वार्ता का आयोजन करना था लेकिन इस्लामाबाद ने इसे मंजूरी देने से मना कर दिया था जिससे मीटिंग का आयोजन पहले नहीं हो सका। दरअसल मीटिंग के लिए मंजूरी न देकर पाकिस्तान अपनी नाराजगी दिखाना चाहता था।
जुलाई में पाक में हैं चुनाव
पाकिस्तान भारत के उस स्टैंड को लेकर खफा था जिसके तहत भारत पाकिस्तान से तब तक कोई आधिकारिक वार्ता के पक्ष में नहीं है जब तक भारत में आतंकी गतिविधियों को अंजाम देने वालों पर पाकिस्तान नकेल नहीं कसता है। लेकिन बाद में पाकिस्तान ने नीमराना डायलॉग पर आगे बढ़ने का फैसला किया। सूत्रों के मुताबिक भारत ने इसलिए वार्ता का मन बनाया क्योंकि मीटिंग में हिस्सा लेने वाले लोगों को सुरक्षा, अर्थव्यवस्था के अलावा अफगानिस्तान पर भी पाक के मूड का पता लग सकेगा। इसके अलावा जुलाई में पाक में चुनाव होने वाले हैं और ऐसे में इस मीटिंग की अपनी एक राजनीतिक अहमियत है।
2015 को मोदी और नवाज की मीटिंग
इससे पहले 10 जुलाई 2015 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और तत्कालीन पाक पीएम नवाज शरीफ के बीच रूस के ऊफा में हुई मुलाकात इसी डायलॉग का हिस्सा थी। दोनों नेता शंघाई कोऑपरेशन ऑर्गनाइजेशन (एससीओ) समिट से अलग मिले थे और भारत के साथ संबंधों को सुधारने के लिए नवाज शरीफ सरकार की यह दूसरी कोशिश थी। साल 2013 में जब शरीफ पीएम चुने गए थे तो उन्होंने शहरयार खान को भारत में पाक का राजदूत नियुक्त कर ट्रैक टू प्रक्रिया को आगे बढ़ाया था। लेकिन जब साल 2014 में भारत में मोदी सरकार आई तो यह कोशिश पीछे छूट गई।