नई रक्षा खरीद नीति के साथ सरकार ने खत्म की ऑफसेट की पॉलिसी
नई दिल्ली। रक्षा मंत्रालय ने अब उस ऑफसेट नीति को हटा दिया है जिसे लेकर पिछले दिनों उसे नियंत्रक एवं लेखा परीक्षक (कैग) की आलोचना झेलनी पड़ी है। सोमवार को रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने जिस नई रक्षा खरीद नीति को जारी किया है, उसके मुताबिक इंटर-गवर्नमेंटल एग्रीमेंट और गवर्नमेंट-टू-गवर्नमेंट एग्रीमेंट के साथ ही सिंगल वेंडर होने पर ऑफसेट नियम लागू नहीं होगा। हाल ही में कैग ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि राफेल जेट बनाने वाली कंपनी फ्रांस की दसॉल्ट एविएशन घरेलू निवेश के लिए जरूरी शर्तों को पूरा नहीं कर रही है।
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साल 2005 में अपनाई गई ऑफसेट पॉलिसी
जानकारी के मुताबिक रक्षा मंत्रालय का मानना है कि विदेशी उत्पादकों के जरिए भारत को टेक्नोलॉजी हासिल करने में सफलता नहीं मिल सकी है। इसकी वजह से उसने इस नियम को हटाने का फैसला किया। ऑफसेट नियम की वजह से ही 36 राफेल जेट की खरीद के समय दसॉल्ट एविएशन और एमबीडीए को भारत के रक्षा सेक्टर में करीब 30 प्रतिशत तक का निवेश करना जरूरी था। दसॉल्ट एविएशन को राफेल जेट की खरीद के बाद 59,000 करोड़ रुपए मिले थे। डील के तहत ऑफसेट नियम करीब 50 प्रतिशत का था। स्पेशल सेक्रेटरी एंड डायरेक्टर जनरल (एक्यूजिशिन) की तरफ से सोमवार को बताया गया है कि मंत्रालय ने ऑफसेट गाइडलाइंस में बदलाव किए हैं। अब से गर्वनमेंट-टू-गर्वनमेंट, इंटर गवर्नमेंट और सिंगल वेंडर डिफेंस पर ऑफसेट का नियम लागू नहीं होगा। भारत की तरफ से साल 2005 में ऑफसेट नीति को अपनाया गया था। इसका मकसद 300 करोड़ से ज्यादा की विदेशी रक्षा खरीद पर विदेशी वेंडर को कम से कम से 30 प्रतिशत का निवेश करना जरूरी था। कैग ने अपनी रिपोर्ट में यह भी कहा है कि मार्च 2018 तक 46 आफसेट कॉन्ट्रैक्ट को साइन किया गया था और विदेशी वेंडर्स के साथ साइन इन कॉन्ट्रैक्ट्स की कीमत करीब 66,427 करोड़ रुपए थी। अगर ऑफसेट नीति का पालन होता तो इन सभी वेंटर्स को दिसंबर 2018 तक ऑफसेट के तहत 19,223 करोड़ रुपए देने थे।
क्या थी ऑफसेट नीति की शर्त
ऑफसेट पॉलिसी के तहत यह शर्त है कि किसी भी विदेशी कंपनी के साथ हुई डील की कीमत का कुछ हिस्सा भारत में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की तरह आना चाहिए, जिसमें टेक्नोलॉजी ट्रांसफर, एडवांस कंपोनेंट्स की स्थानीय तौर पर मैन्यूफैक्चरिंग या फिर नौकरियां पैदा करने की जिम्मेदारियां शामिल हैं। कैग की रिपोर्ट को संसद में पेश किया गया है। रिपोर्ट में कैग ने कहा है, '36 मीडियम मल्टी रोल कॉम्बेट एयरक्राफ्ट (एमएमआरसीए) से जुड़े चार समझौतों के ऑफसेट में वेंडर दसॉल्ट एविएशन और एमबीडीए ने शुरुआत में यानी सितंबर, 2015 में प्रस्ताव पेश किया था। इस प्रस्ताव के तहत यह तय हुआ था कि वह अपनी ऑफसेट दायित्वों में से 30 प्रतिशत दायित्वों का पालन डीआरडीओ को उच्च श्रेणी की तकनीक देकर पूरा करेगा।'रिपोर्ट में कहा गया है, ' डीआरडीओ को हल्के कॉम्बेट जेट्स के लिए (कावेरी) इंजन को देश में ही विकसित करने लिए उनसे तकनीकी सहायता चाहिए थी, लेकिन आज की तारीख तक वेंडर ने इस टेक्नोलॉजी को ट्रांसफर करने को लेकर कुछ स्पष्ट नहीं किया है।' कैग ने रिपोर्ट में कहा है कि रक्षा मंत्रालय को इस नीति और इसके काम करने के तरीकों की समीक्षा करने की जरूरत है। उन्हें विदेशी आपूर्तिकर्ताओं के साथ-साथ भारतीय उद्योगों की ओर से ऑफसेट का फायदा उठाने में आने वाली समस्याओं की पहचान करने और इन्हें दूर करने के लिए समाधान खोजने की जरूरत है।