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मिलिए यूपी की पहली महिला महंत देव्‍यागिरी से जिनके जीवन की एक घटना ने बदल दिया उनका जीवन

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लखनऊ। ईश्‍वर को केवल उनकी कृपा से ही जाना जा सकता है। उनकी कृपा हम पर तभी होती है जब भक्‍त मन, बुद्धि से शरणागत होता है। भगवान के चमत्‍कार निराले होते हैं और हमारे जीवन में कई बार उनकी लीला से ऐसे परिवर्तन आते है जिसे हम समझ नहीं पाते। ऐसा ही कुछ अनुभव है लखनऊ के प्रसिद्ध और प्राचीन मनकामेश्वर मंदिर की महिला महंत देव्‍यागिरी का। महंत देव्‍यागिरी उत्‍तर प्रदेश की पहली और अकेली महिला महंत हैं। महंत देव्‍यागिरी के जीवन में महज 22 वर्ष की उम्र में अचानक कुछ ऐसा हुआ जिसके बाद उन्‍होंने घर बार त्‍याग कर सन्‍यास लेने का प्रण ले लिया 2008 में 28 वर्ष की उम्र में महिला महंत बनकर उन्‍होंने महंत समाज की एक पुरानी परंपरा को तोड़ा और तमाम विरोध के बावजूद उन्‍होंने हार नहीं मानी। वन इंडिया हिंदी ने महंत देव्‍यागिरी से एक्‍सक्लूसिव बात की और उनके महंत जीवन के अब तक के सफर पर बात की। आइए जानते हैं महिला महंत देव्‍यागिरी के जीवन के कुछ अनुभव को ...

मुंबई जाकर करना चाहती थी ये काम

मुंबई जाकर करना चाहती थी ये काम

यूपी के छोटे से शहर बाराबंकी में जन्‍मी देव्‍यागिरी ने बीएससी डिप्‍लोमा ऑफ पैथालॉजी और पोस्‍ट ग्रेजुएशन की पढ़ाई करने के बाद मेडिकल प्रोफेशन में रहकर मानव सेवा करना चाहती थी। वो मुंबई जाकर पैथालॉजिस्‍ट बनकर करियर सवारना चाहती थी। लेकिन बचपन से कुछ अलग करने की चाह रखने वाली देव्‍यागिरी के जीवन में अचानक कुछ ऐसा घटा जिसने उनका जीवन ही बदल दिया।

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इस घटना ने बदल दिया देव्‍यागिरी का पूरा जीवन

इस घटना ने बदल दिया देव्‍यागिरी का पूरा जीवन

देव्‍यागिरी जब मुंबई जाने के लिए घर से निकली तो लखनऊ आने पर उनके मन में तीव्र इच्‍छा जागी कि बाबा भोलेनाथ के दर्शन कर लें। इसके बाद वो मनकामेश्‍वर मंदिर में पहुंची और वहा गर्भग्रह में भोलेनाथ के दर्शन किए और तभी उन्‍हें आंतरिक रूप से कुछ परिवर्तन का आभास हुआ और सब कुछ शून्‍य सा हो गया। अंतर आत्‍मा से आवाज आई अब कही नहीं जाना यही रहना। जिसके बाद देव्‍यागिरी ने अपना पूरा जीवन भगवान भोलेनाथ को समर्पित करने की ठान ली।

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महज 28 साल की उम्र में देव्‍यागिरी ने संभाली मनकामेश्‍वर मंदिर महंत की गद्दी

महज 28 साल की उम्र में देव्‍यागिरी ने संभाली मनकामेश्‍वर मंदिर महंत की गद्दी

मनकामेश्‍वर मंदिर में ऐसी प्रेरणा मिली कि उन्‍होंने सब कुछ त्‍याग कर सन्‍यास लिया। इतना ही नहीं महिला महंत बनकर उन्‍होंने महंत समाज की एक पुरानी परंपरा को तोड़ा और बता दिया भगवान की भक्ति से भक्त को वो रस मिलता है जो कई जन्मों के सद्गुणों से भी नहीं मिलता। देव्‍यागिरी बताती हैं मुझे तो सन्‍यास का एबीसीडी भी नहीं मालूम थी। प्रेरणा तो मुझे भोलेनाथ से मिली। 10 जनवरी 2002 को मेरी प्राथमिक दीक्षा हुई सन्‍यास की दीक्षा थी और दो वर्ष बाद 2004 में मैंने कुंभ के अवसर पर पूर्ण सन्‍यास ले लिया। 2002 में मैं मनकामेश्‍वर मंदिर के गर्भग्रह में विराजमान भोलेनाथ के दर्शन के लिए आई और अंदर से ही ईश्‍वर के द्वारा प्रदत्‍त एक विचार आया और मैंने सन्‍यास ले लिया। शिव भगवान ने मुझे प्रेरित किया। बाद में यहां रहने का निर्णय और सन्‍यास लेने का निर्णय मेरा स्‍वयं का था। महंत केशव गिरी जो मेरे गुरु थे पहले तो उन्‍होंने स्‍वीकार नहीं किया लेकिन बाद में उन्‍होंने स्‍वीकार कर लिया और 9 सितंबर 2008 में महंत जी के बाद से मैं मनकामेश्‍वर मंदिर की महंत बनी और इस पीठ की जिम्‍मेदारी संभाल रही हूं।।

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महंत बनने के बाद संतों और समाज ने जताई आपत्ति

महंत बनने के बाद संतों और समाज ने जताई आपत्ति

महिला महंत बनने के बाद किन चुनौतियों का सामना करना पड़ा और क्या परिर्वतन आया है? महंत देव्‍यागिरी ने कहा ईश्‍वर ने हमें मार्ग दिखाते रहे शुरूआत में महंतों, साधुओं और समाज के ताने सहने पड़े। कोई महिला महंत को बर्दास्‍त नहीं करना चाहता था लेकिन मैंने अपना धैर्य और साहस नहीं छोड़ा और मैं डटी रही। शुरूआत में महिला और पुरूष भक्‍त अलग दृष्टि से देखते थे। लोग कहते थे शादी हो गई होगी बच्‍चा नहीं हुआ होगा इसलिए महंत बन गई या अन्‍य प्रकार की मजबूरी रही होगी। ये खराब नहीं लगता था लेकिन बस ये ख्‍याल आता था कि क्या सन्‍यास ऐसा क्षेत्र है कि इसमें व्‍यक्ति मजबूरी के कारण आता है। मुझे कभी नहीं लगा कि मैंने गलत किया। अगर किसी ने कटाक्ष किया धैर्यपूर्वक सुना और प्रतिक्रिया नहीं दी। मंदिर प्रशासन, भक्‍तों सभी को हमसे अपेक्षाएं होती है जिस पर हर हाल में खरा उतरना होता है। महंत देव्‍यागिरी का कहना है कि जो लोग जो आपकी राह में कांटे बिछाते हैं वो ही आपके सक्‍सेज होने पर अपने आप ही आपके साथ आते हैं इसलिए कभी हार नहीं माननी चाहिए।

महंत बनने पर परिवार वालों ने क्या विरोध किया ?

महंत बनने पर परिवार वालों ने क्या विरोध किया ?

परिवार वालों ने क्या विरोध किया इसके जवाब में महंत देव्‍यागिरी ने कहा जब मैं 22 साल की थी तब मैंने सन्‍यास लिया। परिवार वालों ने विरोध तो नहीं किया सन्‍यास को लेकर बड़ों ने सोचा ही नहीं था तो मेरे अभिभावकों को चिंता थी। क्या करेंगे कैसे रहेंगे। वो नाराज तो नहीं थे लेकिन अभिभावक के मन में जो अपने बच्‍चे के प्रति जो भावनाएं थी वो आहत जरूर थी। वो मैं अब समझ सकती हूं क्योंकि मैंने 5 लड़कियों को गोद लिया है। जब वो मेरी बात नहीं मानते तब मैं अपने माता-पिता की मनोदशा को समझती हूं। देव्‍यागिरी बताती है 2002 की बात थी 2008 तक आते-आते पिता माता बहुत परेशान हो गए थे लेकिन जब मैं महंत बनी तो वो मेरे को लेकर निश्चिंत हो गए।

देव्‍यागिरी ने मनकामेश्‍वर घाट पर करवाया था रोजा इफ्तार

देव्‍यागिरी ने मनकामेश्‍वर घाट पर करवाया था रोजा इफ्तार

मनकामेश्वर घाट पर 2018 में महंत देव्‍यागिरी ने लखनऊ की गंगाजमुनी परंपरा की एक नई मिसाल पेश की थी। मंहत देव्‍यागिरी ने रमजान के महीने में रोजा इफ्तार का आयोजन किया। जहां पर हर धर्म के लोग एक साथ रोजा इफ्तार के रूप में खुशियां बांटते नजर आए। पाक रमजान के 25वें रोजे को एक साथ लगभग हजार लोगों ने रोजा इफ्तार किया। किसी मठ में रोजा इफ्तार का आयोजन पहली बार किया गया था। इस रोजा इफ्तार में ऐशबाग ईदगाह के नायाब इमाम मौलाना खालिद रशीद फरंगी महली के साथ ही मौलाना सुफियान निजामी, नवाब मीर जाफर अब्दुल्लाह, बल बहादुर सिंह के साथ कई मशहूर हस्तियां पहुंची थी। महंत देव्‍यागिरी की इस कार्यक्रम का आयोजन करने का उद्देश्‍य इस देश की अखंडता को एक नया स्वरूप देना और इस संस्कृति को और मजबूत करके भाई चारे को बढ़ावा देना था।

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https://hindi.oneindia.com/photos/cm-mamata-banerjee-offers-prayers-at-durga-temples-then-files-nomination-59984.html
English summary
Meet UP's first lady Mahant Devyagiri, whose life changed an incident, she is Mankameshwara Temple mahant
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