मिलिए रियल ‘कुली नम्बर वन’ से जिनका बिल्ला नंबर है 36
Real
'Coolie
Number
One'
:
सुपरीहिट
फिल्म
'कुली
नम्बर
वन'
25
साल
पहले
बनी
थी।
इसकी
रीमेक
हाल
की
में
ओटीटी
प्लेटफॉर्म
पर
रिलीज
हुई
है।
एक
कुली
की
फिल्मी
कहानी
को
लोगों
ने
पसंद
किया।
लेकिन
असल
जिंदगी
में
कुली
की
कहानी
बहुत
मार्मिक
है।
कोरोना
काल
में
ट्रेनों
की
आवाजाही
बंद
या
कम
होने
से
इनके
दो
वक्त
के
खाने
पर
आफत
है।
ऐसे
में
अगर
कुली
कोई
महिला
हो
तो
उसकी
मुश्किलों
का
अंदाजा
लगाया
जा
सकता
है।
वैसे
तो
इस
पेशे
में
महिलाएं
गिनती
की
हैं
लेकिन
जो
हैं
वो
किसी
वीरांगाना
से
कम
नहीं
हैं।
घर
और
बाहर
रोज
जिदंगी
की
जंग
लड़ती
हैं
तब
दो
वक्त
की
रोटी
नसीब
होती
है।
ऐसी
ही
एक
वीरांगना
हैं
संध्या
मारावी।
वे
30
साल
की
हैं।
पहले
वे
और
मध्य
प्रदेश
के
कटनी
रेलवे
स्टेशन
पर
मान्यता
प्राप्त
कुली
थीं।
लेकिन
अब
उनका
तबादला
जबलपुर
रेलवे
स्टेशन
पर
हो
गया
है।
उनका
बिल्ला
नम्बर
36
है।
रियल
लाइफ
कुली
नम्बर
वन
तो
यही
हैं।
दो
महीना
पहले
प्रमुख
दवा
निर्माता
कंपनी
मैनकाइंड
ने
संध्या
मरावी
को
नारी
शक्ति
का
प्रतीक
मान
कर
एक
लाख
रुपये
का
पुरस्कार
दिया
है।
एक मर्दानी संध्या मारावी
संध्या मरावी जबलपुर जिले के कुंडम गांव की रहने वाली हैं। उनके पति भोला राम कटनी रेलवे स्टेशन पर कुली थे। 2016 में भोला राम की बीमारी से मौत हो गयी तो परिवार पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा। घर में वही एक अकेले कमाने वाले थे। संध्या के कंधों पर सास और तीन बच्चों की जिम्मेवारी आ गयी। परिवार की गाड़ी कैसे चलेगी ये सवाल मुंह बाए खड़ा हो गया। तब संध्या ने तय किया कि वह अपने पति की जगह पर कुली का काम करेगी। एक दुबली पतली महिला जिस तर तीन छोटे बच्चों की जिम्मेवारी थी, बोझ उठाने का काम कैसे करेगी ? पचास-साठ किलो की वजन कैसे उठाएगी ? सवाल वाजिब थे। फिर भी संध्या ने तय किया कि वह रोटी कमाने के लिए कुली ही बनेगी। संध्या गरीब परिवार की थी लेकिन वह आठवीं तक पढ़ी थी।
कुली बनने के लिए भी लड़नी पड़ी जंग
रेलवे स्टेशन पर सामान ढोने वाले कुली दिखते तो साधारण हैं लेकिन यह काम पाना भी आसान नहीं है। कुली बनने के लिए लाइसेंस की जरूरत होती है जो बहुत मुश्किल से मिलता है। सौ आवेदकों में अगर एक को भी लाइसेंस मिल गया तो बहुत बड़ी बात मानी जाती है। पहले कुली बनने के लिए कोई शैक्षिक योग्यता की जरूरत नहीं थी। लेकिन बाद में आठवीं पास होना जरूरी कर दिया गया। (अब शैक्षणिक योग्यता दसवी पास है) कुलियों की भर्ती के लिए 50 किलो वजन के साथ 200 मीटर दौड़ की परीक्षा होती है। यह परीक्षा पास करने के बाद ही किसी कुली को लाइसेंस के रूप में बिल्ला मिलता है जिसे वह अपनी बांह पर बांधता है। रेलवे के नियम के मुताबिक कोई मान्यताप्राप्त कुली शारीरिक लाचारी या अस्वस्थता के आधार पर अपना बिल्ला बेटा, भाई, भतीजा को हस्तांतरित कर सकता है। संध्या को अपने पति की जगह पर कुली का काम चाहिए था। वह रेलवे अधिकारियों से मिली। कागजी भागदौड़ के बाद उसे बिल्ला नम्बर 36 मिल गया और वह कटनी रेलवे स्टेशन पर कुली का काम करने लगी।
कांटों भरी राह
संध्या को काम तो मिल गया लेकिन उसकी राह कांटों से भरी हुई थी। वह अपने गांव कुंडम से जबलपुर आती। फिर जबलपुर से ट्रेन पकड़कर कटनी। 250 किलोमीटर की यात्रा तय करने के बाद संध्या को मजदूरी का मौका मिलता। काम भी क्या था, बोझ उठाना। एक औरत के लिए यह देह तोड़ने वाला काम था। लेकिन संध्या ने हौसला रखा। वह कुछ पैसे कमाने लगी। जैसे तैसे गृहस्थी चलने लगी। वह रात को लौटती तो अपने बेटे साहिल, हर्षित और बेटी पायल को पढ़ाती भी। अपने परिवार को पालने के लिए एक औरत का यह संघर्ष आश्चर्यजनक था। संध्या ये असाध्य कष्ट इस लिए सह रही थी कि क्यों कि वह अपने बच्चों के भविष्य के लिए फिक्रमंद थी। वह अपने बेटों को कुलिगिरी से दूर रखना चाहती थी। रोज 250 किलोमीटर की यात्रा कुली के काम से भी मुश्किल थी। एक साल तक संध्या अपने गांव से कटनी आती रही। फिर उसने रेलवे अधिकारियों से अपना बिल्ला जबलपुर के लिए स्थानांतरित करने की गुहार लगायी। उसकी मेहनत, समर्पण और साहस देख कर अधिकारी भी प्रभावित थे। एक साल के बाद संध्या जबलपुर रेलवे स्टेशन पर कुली बन गयी।
कुली नंबर 36 के रूप में संध्या ने बनाई अपनी अलग पहचान, रोज तय करती है 45 किलोमीटर का सफर
संध्य़ा का उजाला
संध्या जब जबलपुर आ गयी तो उसने अपने बच्चों की पढ़ाई पर और ध्यान दिया। उसने अतिरिक्त कमाई के लिए पार्ट टाइम जॉब कर लिया। इतने संघर्षों के बाद आज संध्या आत्मनिर्भर हैं। पुरुषों के वर्चस्व वाले पेशे में उन्होंने खुद को स्थापित किया। चलासी-पचास किलो का वजन रोज उठा कर उनहोंने अपनी क्षमता साबित की। उनके काम को कुछ लोग छोटा समझ सकते हैं लेकिन उनकी शख्सियत बेमिसाल है। उनके सपनों को पूरा करने के लिए बच्चे भी दिल लगा कर पढ़ रहे हैं। फिल्म तो इस कुली नम्बर वन पर बननी चाहिए।