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Kargil Vijay Diwas: मनोज पांडे: ऐसा वीर जिसने परमवीर चक्र के लिए ज्वाइन की थी सेना

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नई दिल्ली, 26 जुलाई। 'पर्वत पर कितने सिंदूरी सपने दफन हुए होंगे, बीस बसंतों के मधुमासी जीवन हवन हुए होंगे', कारगिल शहीदों को नमन करती ये लाइनें वीर रस के सशक्त हस्ताक्षर डॉ हरिओम पंवार ने लिखी हैं, जिसे पढ़कर आप अंदाजा लगा सकते हैं कि आज से 23 साल पहले कारगिल पर फतेह हासिल करने के लिए कितने वीरों ने अपनी जान न्यौछावर की थी, कितनी मांओं की गोद सूनी हुई थीं तो कितनों के माथे का सिंदूर मिटा था।

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कैप्टन मनोज पांडे गोरखा बटालियन के जवान थे

कैप्टन मनोज पांडे गोरखा बटालियन के जवान थे

बर्फीली घाटियों के बीच दुश्मन पाकिस्तानियों को धूल चटाने वाले वीरों में एक वीर कैप्टन मनोज पांडे भी थे, जिन्होंने भारत माता की रक्षा करते हुए हंसते-हंसते हुए जान न्यौछावर कर दी थी। उनके रगों में हिंदुस्तानी मोहब्बत का खून और दिल में देश के लिए कुछ कर गुजरने का जज्बा बचपन से ही था। आपको बता दें कि कैप्टन मनोज पांडे जीआर गोरखा राइफल के पहली बटालियन के जवान थे।

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तुम आर्मी क्यों ज्वाइन करना चाहते हो?

तुम आर्मी क्यों ज्वाइन करना चाहते हो?

एनडीए के इंटरव्यू के दौरान जब उनसे पूछा गया था तुम आर्मी क्यों ज्वाइन करना चाहते हो? तो उन्होंने तपाक से उत्तर दिया कि 'परमवीर चक्र के लिए', जिस पर सारे पैनल वाले हैरान रह गए थे।

'मैं कोशिश करूंगा कि मुझे जीवित रूप में मिले'

उन्होंने वापस उनसे सवाल किया कि तुम्हें पता है कि ये कब दिया जाता है? तो इस पर मनोज पांडे ने कहा था कि 'हां पता है, बहुत सारे लोगों को मरणोपरांत मिला है, मैं कोशिश करूंगा कि मुझे जीवित रूप में मिले।' हालांकि उन्हें परमवीर चक्र मिला तो लेकिन मरणोपरांत ही, लेकिन आप उनके बारे में अंदाजा लगा सकते हैं कि एक देशभक्त की सोच कैसी होती है? वो अदम्य साहस का साक्षात उदाहरण रहे हैं, जिन्होंने बचपन से काफी गरीबी देखी थी।

'मेहनत से ही मंजिल हासिल की जा सकती है'

'मेहनत से ही मंजिल हासिल की जा सकती है'

25 जून 1975 को उत्तर प्रदेश के सीतापुर के रुधा गाँव में जन्मे मनोज पांडे के पिता एक पान की दुकान चलाया करते थे। वो अपने मां-बाप की पहली संतान थे इसलिए उन्होंने हमेशा अपने भाईयों को यही समझाया कि मेहनत से ही मंजिल हासिल की जा सकती है इसलिए मन लगाकर पढ़ाई करो और यही आपको सफलता दिलाएगी।

'मेरा भईया मातृभूमि का सेवा करना चाहता था'

उनकी मां मोहिनी उन्हें प्यार से भईया बुलाती थीं। वो कहती थीं 'मेरा भईया हमेशा कहता था कि वो देश का सिपाही बनना चाहता है और मातृभूमि का सेवा करना चाहता है और उसने ये पूरा भी किया।'

 मरने के बाद भी पूरा किया अपना वादा

मरने के बाद भी पूरा किया अपना वादा

उन्होंने अपनी मां से वादा किया था कि वो अपने 24वें जन्मदिन पर अपने घर जरूर आएंगे, वो आए भी लेकिन तिरंगे में लिपट कर, किसी को क्या पता था कि वो अपना वादा यूं मरकर भी निभाएंगे। आपको बता दें कि कारगिल युद्ध के दौरान मनोज पांडे ने कारगिल के बटालिक सेक्टर में खालूबर हिल्स के जुबार टॉप पर हुए हमले के दौरान अपने प्राणों की आहुति दी थी।

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'कारगिल विजय दिवस'

'कारगिल विजय दिवस'

गौरतलब है कि 1999 में कारगिल-द्रास सेक्टर में पाकिस्तानी घुसपैठियों से भारत को वापस लेने के लिए भारतीय सेना द्वारा 'ऑपरेशन विजय' शुरू किया गया था। सेना के जवानों ने 26 जुलाई 1999 को पाकिस्तान को हराया था। तब से ऑपरेशन विजय में भाग लेने वाले सैनिकों की याद में हर साल 26 जुलाई को 'कारगिल विजय दिवस' मनाया जाता है। इसी युद्ध के दौरान कैप्टन मनोज पांडे को उनके साहस और नेतृत्व के लिए मरणोपरांत परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया था।

Comments
English summary
Kargil Vijay Diwas is commemorated every 26 July in India, to observe India's victory over Pakistan in the Kargil War for ousting Pakistani Forces from their occupied positions on the mountain tops of Northern Kargil District in Ladakh in 1999.Manoj Pandey,Such a heroic who had joined the army for Param Vir Chakra, fulfilled his promise even after death.read heroic saga.
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