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मंदसौर फायरिंग में पुलिस-CRPF को मिली क्लीन चिट, कहा- फायरिंग के अलावा नहीं था कोई विकल्प

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नई दिल्ली। मध्य प्रदेश के मंदसौर में जिस तरह से पिछले वर्ष किसानों के प्रदर्शन पर पुलिस ने लाठीचार्ज और फायरिंग की थी उसमे कई किसानों की जान चली गई थी। लेकिन इस मामले में जस्टिस जेके जैन कमिशन ने सीआरपीएफ और पुलिस जवानों को क्लीन चिट दे दी है। पिछले वर्ष 6 जून 2017 को मध्य प्रदेश के मंदसौर में किसानों के प्रदर्शन में पांच लोगों की जान चली गई थी, जबकि एक प्रदर्शनकारी की मौत लाठीचार्ज की वजह से डलोडा में हुई थी, जोकि प्रदर्शन स्थल से 20 किलोमीटर दूर था।

पुलिस, सीआरपीएफ को क्लीन चिट

पुलिस, सीआरपीएफ को क्लीन चिट

इस मामले में यह रिपोर्ट 9 महीने की देरी के बाद पेश की गई है, जिसमे में कहा गया है कि पुलिस फायरिंग आवश्यक हो गई थी, क्योंकि भीड़ बेकाबू होने लगी थी, अगर फायरिंग नहीं की जाती तो किसानों का प्रदर्शन और भी उग्र हो सकता था। रिपोर्ट में डीएम स्वतंत्र कुमार सिंह और एसपी ओपी त्रिपाठी पर किसी भी तरह का आरोप नहीं लगाया गया है, बल्कि पुलिस के सूचना तंत्र पर सवाल खड़ा किया गया है और इसे काफी कमजोर बताया गया है।

रायफल से जवानों को मारने की कोशिश

रायफल से जवानों को मारने की कोशिश

कमीशन ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि किसी भी किसान कर्ज माफी, या फिर फसल की उच्च लागत की मांग नहीं की थी, इस मांग को जिला स्तर पर ही पूरा किया जा सकता था। रिपोर्ट के अनुसार पुलिस फायरिंग का पहला मामला पिपिलियामंडी के बाही पार्श्वनाथ में सामने आया था, जहां भीड़ा ने सीआरपीएफ के आठ जवानों को समर्पण के लिए मजबूर किया था और उनपर पत्थर फेंकना शुरू कर दिया था। इसके बाद इन लोगों ने दो अन्य जवान विवेक मिश्रा और उदय प्रसाद को भी बंधक बना लिया और उन्हें उनकी ही रायफल से पीटने लगे। तीन अन्य सिपाही जो उन्हें बचाने के लिए आए उनके साथ भी यही सलूक किया गया।

जिंदा जलाने की कोशिश के सबूत नहीं

जिंदा जलाने की कोशिश के सबूत नहीं

रिपोर्ट के अनुसार प्रदर्शनकारियों को कई बार चेतावनी दी गई, लेकिन चेतावनी के बाद भी प्रदर्शनकारी हिंसा से बाज नहीं आ रहे थे, जिसके बाद आखिरकार जब पुलिस और सीआरपीएफ के पास कोई विकल्प नहीं बचा तो फायरिंग करनी पड़ी, जिसमे दो प्रदर्शनकारियों की जान चली गई, जबकि तीन लोग घायल हो गए थे। हालांकि रिपोर्ट में कहा गया है कि उन्हे इस बात का कोई सबूत नहीं मिला है कि प्रदर्शनकारी सीआरपीएफ के जवानों को जिंदा जला देना चाहते थे।

फायरिंग के अलावा कोई विकल्प नहीं

फायरिंग के अलावा कोई विकल्प नहीं

इस पूरे प्रकरण पर रिपोर्ट में कहा गया है कि कुल 1500-2000 लोगों की भीड़ इस प्रदर्शन में शामिल थी जोकि पिपिलियामंडी पुलिस स्टेशन जा रहे थे। इन लोगों ने पूरी बिल्डिंग को घेर लिया था और इसे जला देना चाहते थे, यहां गौर करने वाली बात यह है कि इस वक्त पुलिस स्टेशन में पुलिसवाले भी मौजूद थे। जब प्रदर्शनकारियों को आंसू गैस के गोले और लाठीचार्ज नहीं रोक पाई तो उनपर फायरिंग के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा। जिसमे तीन लोगों की जान चली गई और तीन लोग घायल हो गए।

प्रदर्शनकारियों के पास हथियार के सबूत नहीं

प्रदर्शनकारियों के पास हथियार के सबूत नहीं

जस्टिस जैन ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि उन्हें इस बात का कोई सबूत नहीं मिला है जो यह साबित करे कि भीड़ के पास किसी भी तरह का हथियार था और उसने पुलिस पर इससे हमला किया हो। वरिष्ठ वकील आनंद मोहन माथुर जोकि पीड़ितों का पक्ष रख रहे हैं, उन्होंने इस पूरी रिपोर्ट की आलोचना की है। उनका कहना है कि मैं इस रिपोर्ट से पूरी तरह से असंतुष्ट हूं। हमे इस बात का मौका नहीं दिया गया कि घटना के वक्त क्या हुआ इस बारे में बता सके। मुझे अनिल ठाकुर जोकि थाना प्रभारी है, से पूछताछ की भी इजाजत नहीं दी गई।

कांग्रेस ने रिपोर्ट पर उठाया सवाल

कांग्रेस ने रिपोर्ट पर उठाया सवाल

वहीं प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ ने भी इस रिपोर्ट पर सवाल खड़ा करते हुए कहा कि दोषियों को बचाने की कोशिश हो रही है। उन्होंने कहा कि इस रिपोर्ट के बाद किसानो को न्याय मिलने की उम्मीद अब कम होती जा रही है। वहीं किसानों ने भी इस रिपोर्ट से असंतुष्टि जाहिर की है। इस घटना में अपने भाई को खोने वाले अभिषेक पाटीदार का कहना है कि हमे अब इस तंत्र में भरोसा नहीं है, हम एख साल से न्याय का इंतजार कर रहे थे, लेकिन इस रिपोर्ट ने हमारी उम्मीदों पर पानी फेर दिया है।

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English summary
Mandsaur Firing probe panel gives clean chit to the police and CRPF. It says there was no other option but firing.
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