अजीत सिंह: हर सरकार में मंत्री बनने का हुनर रखने वाले आईआईटियन किसान नेता का रिटायरमेंट
अजित सिंह: हर सरकार में मंत्री बनने का हुनर रखने वाला आईआईटीयन किसान नेता
नई दिल्ली। राष्ट्रीय लोकदल के अध्यक्ष अजीत सिंह ने 2019 का चुनाव ना लड़ने का ऐलान किया है। 80 साल के इस नेता ने कहा है कि अब वो सक्रिय राजनीति से दूर रहेंगे। इसके पीछे उन्होंने अपनी उम्र का हवाला देते हुए कहा कि बेहतर है अब वह चुनाव से दूर रहें। पश्चिम यूपी की राजनीति आजादी के बाद से लगातार पहले चौधरी चरण सिंह और उनके बाद अजीत सिंह के इर्द-गिर्द घूमती रही है। चौधरी चरण सिंह की मौत के बाद अजीत सिंह ने कई बार अपनी राजनीति के रंग बदले लेकिन वो हमेशा एक अहम भूमिका में बने रहे। चौधरी परिवार ने हमेशा किसानों की राजनीति की और उन्हें जाटों का बड़ा नेता माना जाता रहा है।
विदेश में पढ़े, 15 साल नौकरी की
मेरठ के में 1939 में पैदा हुए अजीत सिंह को राजनीति विरासत में मिली। उनके पिता चरण सिंह उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री, केंद्र में मंत्री और भारत के प्रधानमंत्री रहे। अजीत सिंह ने करियर के शुरू में इंजीनयरिंग तको चुना। अजीत सिंह ने आईआईटी खडगपुर से इंजीनियरिंग की और इसके बाद अमेरिका के शिकागो से उच्च शिक्षा हासिल की। अमेरिका में ही उन्होंने 15 साल तक नौकरी भी की।
1986 में रखा सक्रिय राजनीति में कदम
अजीत सिंह भारत लौटे और 1986 में वो राज्यसभा पहुंचे। 1987 में चौधरी चरण सिंह की मौत के बाद उनकी विरासत अजीत के कंधों पर आ गई। लोक दल का अध्यक्ष बनाया गया। 1987 में उन्होंने लोकदल (अजीत) बनाया। 1988 में अजीत जनता पार्टी के अध्यक्ष घोषित किए गए। 1989 में जनता दल के महासचिव बने। 1998 में उन्होंने राष्ट्रीय लोकदल बनाया। 1989 में वो बागपत सीट से लोकसभा पहुंचे। इसके बाद 1999 और 2014 में दो बार भाजपा उम्मीदवार से उनकी हार को छोड़ दें तो वो लगातार बागपत सीट का प्रतिनिधित्व करते रहे हैं।
कई सरकारों रहे मंत्री
ऐसा कहा जाता रहा है कि वो हर सरकार में 'फिट' हो जाने का हुनर जानते हैं। 1989 से 2014 तक अलग-अलग पार्टियों की सरकारों में वो मंत्री बनते रहे हैं। 1989 में वीपी सिंह की सरकार में 1991 में नरसिंह राव सरकार में, 1999 की वाजपेयी सरकार और 2011 की मनमोहन सिंह सरकार में वो मंत्री बने। 1989 में वो केंद्रीय उद्योग मंत्री रहे। 1995 में केंद्रीय खाद्य मंत्री रहे। 2001 में वो कृषि मंत्री बने। 2011 में वो नागरिक उड्डयन मंत्री बने। 2014 में पार्टी की हार के बाद वो सरकार से दूर हैं।
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'जाटों के सपने में आकर वोट देने को कह जाते हैं चरण सिंह'
पश्चिमी यूपी में जाटों और चौधरी परिवार के रिश्तों को लेकर कई बातें मशहूर हैं। बताते हैं कि एक बार बागपत क्षेत्र के जाटों की टिकट देने को लेकर अजीत सिंह से खटपट हो गई लेकिन इलेक्शन में वोट रालोद को ही दिया। इसको लेकर कहा जाता है कि दो बातों के चलते जाट किसी और को वोट नहीं देते। एक तो अजीत सिंह के अमेरिका से आने के बाद उन्होंने उनका ख्याल रखने को कहा था और दूसरा वो वोटिंग से पहले सपने में आकर जाटों से कह गए कि वोट अजीत को दे दियो।
अब जिम्मेदारी जयंत पर
चौधरी अजीत सिंह के बाद अब राष्ट्रीय लोकदल की जिम्मेदारी जयंत चौधरी के कंधों पर है। जयंत बीते काफी समय से राजनीति में लोकप्रिय हैं और पिता की तरह ही विदेश से पढ़े हैं। 2009 से 2014 तक वो मथुरा से सांसद रहे हैं। हाल के दिनों में उन्होंने काफी सक्रियता दिखाई है। हाल ही में कैराना उपचुनाव में जीत के बाद उनका कद बढ़ गया है। अजीत सिंह के बाद अब जयंत दादा और पिता की विरासत को किस तरफ ले जाते हैं, इस पर सबकी निगाहें हैं।
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